इस युग में शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत हो गया हैं और बदलते हुए जीवन-मूल्यों के साथ-साथ शिक्षा के उद्धेश्य भी बदल गये हैं। शिक्षा व्यवसाय से जुड़ गई हैं और छात्र-छात्राएं व्यवसाय की तैयारी के रूप में ही इसे ग्रहण करते है। उनके लिए व्यवसायिक भविष्य को उज्ज्वल बनाने की दृष्टि से विषय का चयन करना अत्यन्त समस्यापूर्ण हो गया हैं। इसके अलावा शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश अथवा अच्छा व्यवसाय प्राप्त करने के लिए उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हैं। अतः इस संदर्भ में अन्य तथ्यों को ध्यान में रखने के साथा-साथ असफलता एवं समय की बर्बादी से बचने के लिए ज्योतिष सिद्धान्तों के आधार पर लिया गया निष्कर्ष ही विषय एवं व्यवसाय के चयन में उपयोगी या लाभकारी सिद्ध हो सकता हैं।
1 – सर्वप्रथम जातक के बचपन से ही उसकी कुण्डली विषय की पढाई व केरियर चयन में सहायक होती हैं ।
2 – जातक की कुण्डली से तय करना चाहिए कि वह नौकरी करेगा या व्यवसाय ।
3 – जातक की 20 से 40 वर्ष की उम्र के बीच की ग्रह दशा का सुक्ष्म अध्ययन कर यह देखना चाहिए की दशा किस प्रकार के कार्यक्षेत्र का संकेत दे रही हैं ।
4 – आगामी गोचर या दशा कार्यक्षेत्र में तरक्की का संकेत दे रहा हैं या नहीं ? इसका भी परिक्षण कर लेना चाहिए ।
शिक्षा में महत्वाकांक्षा –
जन्म कुण्डली का नवम भाव धर्म त्रिकोण स्थान हैं जिसके स्वामी देव गुरू बृहस्पति हैं यह भाव शिक्षा में महत्वाकांक्षा व उच्च शिक्षा तथा उच्च शिक्षा किस स्तर की होगी को दर्शाते हैं यदि इसका सम्बन्ध पंचम भाव से हो जाए तो अच्छी शिक्षा तय करते हैं ।
शिक्षा का स्तर –
जन्म कुण्डली का पंचम भाव बुद्धि, ज्ञान, कल्पना, अतिन्द्रिय ज्ञान, रचनात्मक कार्य, याददाश्त व पूर्व जन्म के संचित कर्म को दर्शाता हैं । यह शिक्षा के संकाय का स्तर तय करता हैं।
शिक्षा किस प्रकार होगी –
जन्म कुण्डली का चतुर्थ भाव मन का भाव हैं । यह इस बात का निर्धारण करता हैं कि आपकी मानसिक योग्यता किस प्रकार की शिक्षा में होगी । जब भी चतुर्थ भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में गया हो या नीच राशि, अस्त राशि, शत्रुराशि में बैठा हो व कारक ग्रह (चन्द्रमा) पीड़ित हो तो शिक्षा में मन नहीं लगता हैं ।
शिक्षा का उपयोग –
जनम कुण्डली का द्वितीय भाव वाणी, धन संचय, व्यक्ति की मानसिक स्थिति को व्यक्त करता हैं तथा यह दर्शाता हैं कि शिक्षा आपने ग्रहण की हैं वह आपके लिए उपयोगी हैं या नहीं हैं। यदि इस भाव पर पाप ग्रह का प्रभाव हो तो व्यक्ति शिक्षा का उपयोग नहीं करता हैं ।
जातक को बचपन से किस विषय की पढाई करवानी चाहिए इस हेतु हम मुलतः निम्न चार पाठ्यक्रम (विषय) ले सकते हैं – गणित , जीव विज्ञान, कला और वाणिज्य –
गणित –
गणित के कारक ग्रह बुध का संबंध यदि जातक के लग्न, लग्नेश या लग्न नक्षत्र से होता हैं तो वह गणित में सफल होता हैं । यदि लग्न, लग्नेश या बुध बली एवं शुभ दृष्ट हो, तो उसके गणित में पारंगत होने की संभावना बढ़ जाती हैं । शनि एवं मंगल किसी भी प्रकार से संबंध बनाएं तो जातक मशीनरी कार्य में दक्ष होता हैं । इसके अतिरिक्त मंगल और राहु की युति, दशमस्थ बुध एवं सूर्य पर बली मंगली की दृष्टि, बली शनि एवं राहु का संबन्ध, चन्द्र व बुध का संबंध, दशमस्थ राहु एवं षष्ठस्थ यूरेनस आदि योग तकनीकी शिक्षा के कारक होते हैं ।
जीवविज्ञान –
सूर्य का जल राशिस्थ होना, छठे एवं दशम भाव/भावेश के बीच संबंध, सूर्य एवं मंगल का संबंध आदि चिकित्सा क्षेत्र में पढ़ाई के कारक होते हैं । लग्न/लग्नेश एवं दशम/दशमेश का संबंध अश्विनी, मघा या मूल नक्षत्र से हो तो चिकित्सा क्षेत्र में सफलता मिलती हैं।
कला –
पंचम/पंचमेश एवं कारक गुरू का पीड़ित होना कला के क्षेत्र में पढाई का कारक होता हैं। इन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पढाई पूरी करवाने में सक्षम होती हें । पापी ग्रहों की दृष्टि-युति संबंध कला के क्षेत्र में पढाई में अवरोध उत्पन्न करता हैं । लग्न व दशम का शनि व राहु से संबंध राजनीतिक क्षेत्र में सफलता दिवलाता हें। 10 वें भाव का संबंध सूर्य, मंगल, गुरू या शुक्र से हो तो जातक जज बनता हैं ।
वाणिज्य –
लग्न/लग्नेश का संबंध बुध के साथ-साथ गुरू से भी हो तो जातक वाणिज्य की पढाई सफलतापूर्वक करता हैं ।
अच्छी शैक्षणिक योग्यता के महत्वपूर्ण योग:-
1. द्वितीयेश या बृहस्पति केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो।
2. पंचम भाव में बुध की स्थिति अथवा दृष्टि या बृहस्पति और शुक्र की युति हो।
3. पंचमेश की पंचम भाव में बृहस्पति या शुक्र के साथ युति हो।
4. बृहस्पति , शुक्र और बुध में से कोई केन्द्र या त्रिकोण में हो।
शैक्षणिक योग्यता का अभाव या न्यूनता: –
1. पंचम भाव में शनि की स्थिति और उसकी लग्नेश पर दृष्टि हो।
2. पंचम भाव पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि या अशुभ ग्रहों की स्थिति हो।
3. पंचमेश नीच राशि में हो और अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो।
विभिन्न ग्रहों के शिक्षा सम्बन्धी प्रतिनिधित्व का विवरण अंकित किया जा रहा हैं जिसके आधार पर ग्रहों की उपरोक्त भावों में स्थिति को देखकर जातक के लिए उपयुक्त विषय का चयन किया जा सकता हैं।
सूर्य: – चिकित्सा, शरीर विज्ञान, प्राणीशास्त्र, नेत्र-चिकित्सा, राजभाषा, प्रशासन, राजनीति, जीव विज्ञान।
चन्द्र: – नर्सिंग, नाविक शिक्षा, वनस्पति विज्ञान, जंतु विज्ञान (जूलोजी), होटल प्रबन्धन, काव्य, पत्रकारिता, पर्यटन, डेयरी विज्ञान, जलदाय
मंगल: – भूमिति, फौजदारी, कानून, इतिहासस, पुलिस सम्बन्धी प्रशिक्षण, ओवर-सियर प्रशिक्षण, सर्वे अभियांत्रिकी, वायुयान शिक्षा, शल्य चिकित्सा, विज्ञान, ड्राइविंग, टेलरिंग या अन्य तकनीकी शिक्षा, खेल कूद सम्बन्धी प्रशिक्षण , सैनिक शिक्षा, दंत चिकित्सा
गुरू: – बीजगणित, द्वितीय भाषा, आरोग्यशास्त्र, विविध, अर्थशास्त्र, दर्शन, मनोविज्ञान, धार्मिक या आध्यात्मिक शिक्षा।
बुध: – गणित, ज्योतिष, व्याकरण, शासन की विभागीय परीक्षाएं, पर्दाथ विज्ञान, मानसशास्त्र, हस्तरेखा ज्ञान, शब्दशास्त्र (भाषा विज्ञान), टाइपिंग, तत्व ज्ञान, पुस्तकालय विज्ञान, लेखा, वाणिज्य, शिक्षक प्रशिक्षण।
शुक्र: – ललितकला (संगीत, नृत्य, अभिनय, चित्रकला आदि), फिल्म, टी0वी0, वेशभूषा, फैशन डिजायनिंग, काव्य साहित्य एवं अन्य विविध कलाएं।
शनि: – भूगर्भशास्त्र, सर्वेक्षण, अभियांत्रिकी, औद्योगिकी, यांत्रिकी, भवन निर्माण, मुद्रण कला (प्रिन्टिंग)।
राहु: – तर्कशास्त्र, हिप्नोटिजम, मेस्मेरिजम, करतब के खेल (जादू, सर्कस आदि), भूत-प्रेत सम्बन्धी ज्ञान, विष चिकित्सा, एन्टी बायोटिक्स, इलेक्ट्रोनिक्स।
केतु: – गुप्त विद्याएं, मंत्र-तंत्र सम्बन्धी ज्ञान।
वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति के कारण व्यवसायों एवं शैक्षणिक विषयों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही हैं। अतः ज्योतिष सिद्धान्तों के आधार पर ग्रहों के पारस्परिक सम्बन्धों को ध्यान में रखते हुए विचार किया जा सकता हैं।