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आपकी आय और आपकी कुंडली में योग –

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किसी जातक का आजीविका का साधन क्या हो सकता है। यह उसकी कुंडली से जाना जा सकता है। कई बार देखने में आता है कि जातक की षिक्षा किसी क्षेत्र में होती है और उसकी नौकरी का क्षेत्र उस षिक्षा से बिल्कुल भी विपरीत क्षेत्र में होता है। इस सबका कारण जातक की कुंडली से जाना जा सकता है। कोई जातक नौकरी करेगा या किसी और को नौकरी में रखने की क्षमता रखेगा, इसका पता जातक की कुंडली से जाना जा सकता है। कालपुरूष की कुंडली में दषमभाव को कर्म का भाव कहा जाता है तथा इस भाव का स्वामी ग्रह होता है शनि तथा एकादष भाव को आय का भाव कहा जाता है तथा इस ग्रह का स्वामी ग्रह भी होता है शनि। अतः कर्म और आय दोनों का स्वामी होता है शनि। किसी व्यक्ति की शनि की स्थिति तथा दषा उस व्यक्ति के कर्म तथा आय का तरीका तय करता है। अतः शनि की अनुकूल स्थिति तथा गोचर में शनि की दषा से कर्म तथा आय की शुरूआत मानी जाती है। शनि की उच्च राषि तुला तथा नीच राषि मेष मानी जाती है। मेष राषि से शनि जैसे-जैसे तुला राषि की ओर अग्रसर होता है, अपनी उच्चता की ओर बढ़ता जाता है इसके विपरीत जैसे-जैसे शनि तुला से मेष की ओर अग्रसर होता है, अपनी नीच राषि की ओर बढ़ता है। अर्थात् मेष से तुला की ओर बढ़ने पर किसी जातक की कुंडली में शनि की जो स्थिति होगी वही उसके कर्म तथा आय का साधन निर्धारित करती है। चूॅकि शनि की तीसरी, सातवी और दसवीं दृष्टि होती है अतः जातक की कुंडली में शनि जहाॅ हो, उसके साथ अपनी तीसरी दृष्टि, सांतवी दृष्टि और दसवीं दृष्टि के अनुरूप सम्मिलित फल प्रदान करता है। जैसे यदि किसी जातक की कुंडली में शनि वृष राषि में हों तो मेष से तुला की ओर बढ़ने पर उच्चता की ओर अग्रसर हैं चूॅकि वृष राषि भौतिक वस्तुओं, धन तथा कुटुंब का भाव होता है अतः जातक के आय का साधन भौतिक वस्तुएॅ, धन या पारिवारिक कर्म, तीसरी दृष्टि कर्क राषि पर होने से कर्क राषि का कारक माता, मकान, चावल, चांदी, जनता और वाहन होता है तथा धन तथा समृद्धि प्राप्ति का साधन, खेती अथवा कर्क से संबंधित समस्त कार्य या इन से संबंधित क्षेत्र, शनि की सातवीं दृष्टि वृष्चिक राषि, जिसका स्वामी मंगल होता है, जो भूमि, संपत्ति तथा विक्रय का कारक होता है अतः संपत्ति बेचना या पैतृक बटवारा या पारिवारिक कार्य अथवा इससे संबंधित कार्य से कमीषन प्राप्त करने अथवा दवाईयाॅ औजार इत्यादि का कार्य करेगा। शनि की दसवीं दृष्टि कुंभ राषि पर होगी, जिसका स्वामी स्वयं शनि होता है, जोकि भाई, दोस्त के सहयोग से कार्य करेगा साथ ही संचार के साधनों की राषि है अतः जीविकापार्जन हेतु संचार के अच्छे से अच्छे साधन का प्रयोग, तकनीकी साधन प्रयुक्त करेगा। इस प्रकार मेष में कार्य की स्थिति की अपेक्षा वृष राषि में बेहतर होगी। इस प्रकार तुला में उच्च अर्थात् कार्य करवाने में समक्ष होगा। इस प्रकार किसी जातक की शनि की स्थिति तथा गोचर में शनि की दषा को अनुकूल बनाकर कार्य तथा आय के साधन को मजबूत किया जा सकता है।