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जया एकादषी व्रत

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जया एकादषी व्रत –

शुद्ध भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादषी को जया एकादषी के रूप में मनाया जाता है। इस एकादषी के व्रत को करने से अनेकों पापों को नष्ट करने में समर्थ माना जाता हैं। माना जाता है कि शुद्ध भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादषी को भगवान श्री कृष्ण ने भगवतगीता का उपदेष दिया था। इस दिन श्री कृष्ण ने कर्मयोग पर विषेष बल देते हुए अर्जुन को कर्मरत रहने का उपदेष दिया था। इस दिन भगवान श्री दामोदर की तथा भगवतगीता की पूजा का विधान है। इस व्रत के दिन मिट्टी का लेप कर स्नान कर मंदिर में श्री विष्णु पाठ करना चाहिए। इस व्रत में दस चीजों के त्याग का महत्व है जिसमें जौ, गेहूॅ, उडद, मूंग, चना, चावल और मसूर दाल, प्याज ग्रहण नहीं करना चाहिए। मौन रहकर गीता का पाठ या उपदेष सुनना चाहिए। पाप से बचना तथा हानि पहुॅचाने से बचना चाहिए। व्रत की समाप्ति पर दान-दक्षिणा कर फलो का भोग लगाया जाता है। व्रत की रात्रि जागरण करने से व्रत से मिलने वाले शुभ फलों में वृद्धि होती है।
कथा – पुराण के अनुसार एक बार सत्यवादी राजा हरिष्चंद्र ने स्वप्न में ऋषि विष्वामित्र को अपना राज्य दान में दे दिया। प्रातःकाल राजा ने ऋषि को अपना राज्य सौप ने हेतु निवेदन किया। ऋषि ने दक्षिणा में पाॅच सौ स्वर्ण मुद्राएॅ और चाही। राजा ने चुकान के लिए अपनी पत्नी और बेटे को बेचना पड़ा जिसे एक डोम ने खरीदा। इस प्रकार राजा तथा उनका परिवार डोम के अंदर श्मषान में कार्य करने लगे। इसी समय उनके पुत्र की सांप के काटने से मृत्यु हो गई। राजा दुखी होकर ऋषि गौतम से सलाह लेने गए और उनकी सलाह पर एकादषी का व्रत किया। जिससे भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उनके राज्य, बेटा तथा सभी सुख एवं पृथ्वी पर अजर अमर होने का आर्षीवाद दिया।

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