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त्रयोदषी का श्राद्ध-षनि प्रदोष

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त्रयोदषी का श्राद्ध-षनि प्रदोष  –

ज्योतिषषास्त्र में कालपुरूष के जन्मांग में सूर्य हैं राजा, बुध हैं मंत्री, शनि हैं जज, राहु और केतु प्रशासक हैं, गुरू हैं मार्गदर्शक, चंद्रमा हैं मन और शुक्र है वीर्य। जब कभी भी कोई व्यक्ति अपराध करता है तो राहु और केतु उसे दण्डित करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। पर शनि के न्यायालय में सबसे पहला दण्ड प्राप्त होता है। इसके बाद अच्छे व्यवहार से और सदाचरण से शनि को प्रसन्न करके बचा जा सकता है। शनि के दया के व्यवहार से प्रसन्न होते हैं। वहीं निर्दयता, झूठ या पाखंड उनकी अप्रसन्नता का कारण होता है।
आष्विन का महिना पितृदोष से उत्पन्न पाप श्राप से मुक्ति कराने वाला तथा श्री की प्राप्ति कराने वाला महिना है। इस महिने में शनिवार के दिन अगर त्रयोदषी पड़े तो इसमें घर की साफ-सफाई करके प्रातःकाल स्नान कर सभी प्रकार के कष्टों की निवृत्ति के लिए तथा अक्षय कल्याण की प्राप्ति के लिए सूर्यास्त के बाद दरवाजे पर दीया रोशन करें तथा पूजन स्थल पर पूर्व की ओर मुख करके सामने कलश स्थापित कर उसमें गेंहू और नगदी रखकर तर्पण करें। उसके पश्चात् रात्रिकाल में ओं शं शनैश्चराय नमः का 11 हजार जाप कर अगले दिन प्रातः स्नान करें फिर तिल जौ आदि से दशांश हवन करें पश्चात् जरूरत मदों को भोजन करावें तथा यथाशक्ति आचार्य तथा याचकों को दान करें। ऐसा करने से भगवान शनि की कृपा होती है और जीवन में पितरदोष से उत्पन्न हानि तथा कष्टों से मुक्ति प्राप्त होकर सफलता मिलती है।

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