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पुष्य नक्षत्र

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पुष्य नक्षत्र कर्क राशि के 3-20 अंश से 16-40 अंश तक है। यह नक्षत्र सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। सौरमंडल में इसका गणितीय विस्तार 3 राशि, 3 अंश, 20 कला से 3 राशि, 16अंश, 40 कला तक है। यह नक्षत्र विषुवत रेखा से 18अंश, 9 कला, 56विकला उत्तर में स्थित है. मुख्य रूप से इस नक्षत्र के तीन तारे हैं, तो तीर के समान आकाश में दृष्टिगोचर होते हैं। इसके तीर की नोंक अनेक तारा समूहों के पुंज के रूप में दिखाई देती है. पुष्य को ऋग्वेद में तिष्य अर्थात शुभ या माँगलिक तारा भी कहते हैं। सूर्य जुलाई के तृ्तीय सप्ताह में पुष्य नक्षत्र में गोचर करता है। उस समय यह नक्षत्र पूर्व में उदय होता है। मार्च महीने में रात्रि 9 बजे से 11 बजे तक पुष्य नक्षत्र अपने शिरोबिन्दु पर होता है। पौष मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है। इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है। पुष्य-नक्षत्र शरीर के आमाशय, पसलियों व फेफड़ों को विशेष रूप से प्रभावित करता है. यह शुभ ग्रहों से प्रभावित होकर इन्हें दृढ़, पुष्ट और निरोगी बनाता है. पुष्य नक्षत्र के देवगुरु वृहस्पति ज्ञान-विज्ञान व नीति-निर्धारण में व्यक्ति को अग्रणी बनाते हैं. यह नक्षत्र शनिदशा को दर्शाता है. शनि स्थिरता का सूचक है.
इसलिए पुष्य नक्षत्र में किये गये कार्य स्थायी होते हैं. पुष्य नक्षत्र का योग सर्वविध दोषों को हरनेवाला और शुभ फलदायक माना गया है। अगर पुष्य नक्षत्र पाप ग्रह से युक्त या ग्रहों से बाधित हो और ताराचक्र के अनुसार प्रतिकूल हो, तो भी विवाह को छोड़ कर शेष सभी कार्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. इस नक्षत्र के स्वामी शनि ग्रह हैं और इसके देवता गुरू माने जाते हैं। इन दोनों ग्रहों के प्रभाव के कारण इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति जीवन में खूब तरक्की करते हैं लेकिन इसमें इनकी मेहनत और लगनशीलता का बड़ा योगदान होता है। बचपन में किये गये संघर्ष के कारण कम उम्र में ही दुनियादारी और जीवन के उद्देश्यों को समझ जाते हैं।
पुष्य नक्षत्र को सभी नक्षत्रों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता हैए इसे नक्षत्रों का राजा भी कहा जाता है। ऐसे में पुष्य नक्षत्र में जन्मा जातक भी सभी नक्षत्रों से अलग होता रहता है।
ऐसा जातक व्यावहारिक, स्पष्टवादी, शीघ्रता से बोलने वाला, आलोचक, विश्वासपूर्ण पद प्राप्त करने वाला, अधिकारी, मंत्री, राजा, तकनीकी मस्तिष्क का, अपने कार्य में निपुण तथा सबके द्वारा प्रशंसित होता है। यह साधारण सी बात पर चिंतित हो जाएंगे किंतु विषम परिस्थितियों का साहसपूर्ण सामना करते हैं। यह ईश्वर भक्त तथा दार्शनिक विचारों के होते हुए भी सांसारिक कार्यों में सफल माने जाते हैं।
पुष्य नक्षत्र में जन्म होने से जातक शांत हृदय, सर्वप्रिय, विद्वान, पंडित, प्रसन्नचित्त, माता-पिता का भक्त, ब्राह्मणों और देवताओं का आदर और पूजा करने वाला, धर्म को मानने वाला, बुद्धिमान, राजा का प्रिय, पुत्रयुक्त, धन वाहन से युक्त, सम्मानित और सुखी होता है। पुष्य नक्षत्र में जन्म होने से जातक मध्यम कद लंबा, गौर श्याम वर्ण, चिंतनशील, सावधान, तत्पर, आत्मकेंद्रित, क्रमबद्ध और नियमबद्ध, अल्पव्ययी, रूढ़ीवादी, सहिष्णु, बुद्धिमान तथा समझदार होता है। विद्वानो के मत से पुष्य नक्षत्र के दौरान किए गए कार्यो में निश्चित सफलता प्राप्त होती हैं। शास्त्रों में पुष्य योग को 100 दोषों को दूर करने वाला, शुभ कार्य उद्देश्यों में निश्चित सफलता प्रदान करने वाला एवं बहुमूल्य वस्तुओं कि खरीदारी हेतु सबसे श्रेष्ठ एवं शुभ फलदायी योग माना गया है।
गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र के संयोग से सर्वार्थ अमृतसिद्धि योग बनता है। रविवार को पुष्य नक्षत्र पडऩे से रवि पुष्य योग बनता है जो सबसे अच्छा बताया गया है।
शनिवार के दिन पुष्य नक्षत्र के संयोग से सर्वाद्धसिद्धि योग होता है। पुष्य नक्षत्र को ब्रह्माजी का श्राप मिला था। इसलिए शास्त्रोक्त विधान से पुष्य नक्षत्र में विवाह वर्जित माना गया है।

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पुष्य नक्षत्र पुरुष नक्षत्र है:
भले ही इसमें नारीत्व के गुण, संवेदनशीलता व ममता कुछ अधिक मात्रा में हों. इस नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता गुरु पुरुष देवता है. इस नक्षत्र में शरीर का मुख व चेहरा आता है. चेहरे के भावों का पुष्य से विशेष संबंध है। यह नक्षत्र पित्त प्रकृ्ति का है। इस नक्षत्र की दिशा पश्चिम, पश्चिम-उत्तर तथा उत्तर दिशा है. इस बात का भी ध्यान रखें कि कर्क राशि की दिशा उत्तर तो नक्षत्रपति शनि को पश्चिम दिशा का स्वामी माना जाता है।

स्वामी शनि:
पुष्य नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि होने से विद्वानों ने इसे तमोगुण प्रधान माना है। अत: यह तामसिक नक्षत्र है. पुष्य जल तत्व प्रधान नक्षत्र है। यह चन्द्रमा की राशि कर्क में स्थित है. चन्द्रमा व कर्क राशि दोनों ही जल तत्व प्रधान हैं, पुन: नक्षत्र का देवता गुरु भी स्थूल व कफ प्रधान होने से जल तत्व की प्रधानता को दर्शाता है. विद्वानों ने पुष्य नक्षत्र को देवगण माना है।

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पुष्य नक्षत्र उध्र्वमुखी:
पुष्य नक्षत्र उध्र्वमुखी होने से जातक महत्वाकांक्षी व प्रगतिशील होता है, पौष चन्द्र मास का उत्तरार्ध, जो जनवरी मास में पड़ता है, को पुष्य नक्षत्र का मास माना जाता है। शुक्ल व कृ्ष्ण पक्ष की दशमी का संबंध पुष्य नक्षत्र से माना जाता है. इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि व राशि स्वामी चन्द्र होने से जातक कर्तव्यनिष्ठ, दायित्व निर्वाह में कुशल व परिश्रमी होता है. इस नक्षत्र को जन समुदाय को प्रभावित करने वाला नात्र माना गया है। पुष्य नक्षत्र के प्रथम चरण का अक्षर ‘हू’ है. द्वितीय चरण का अक्षर ‘हे’ है. तृ्तीय चरण का अक्षर ‘हो’ है. चतुर्थ चरण का अक्षर ‘ड’ है. पुष्य नक्षत्र की योनि मेष है। पुष्य नक्षत्र को ऋषि मरीचि का वंशज माना गया है।

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* अर्थ- पोषण
* देव- बृहस्पति
* इसे ‘‘ज्योतिष्य और अमरेज्य’’ भी कहते हैं। अमरेज्य शब्द का अर्थ है- देवताओं का पूज्य।
* इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है, पर इसके गुण गुरु के गुणों से अधिक मिलते हैं।
* पुष्य में बृहस्पति का व्रत और पूजन किया जाता है।
* पुष्य नक्षत्र के देवता शनि को माना जाता है।
* पीपल के पेड को पूष्य नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है और पुष्य नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग पीपल वृक्ष की पूजा करते है।
* इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर के खाली हिस्से में पीपल वृक्ष के पेड़ को भी लगाते है।

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