उत्तम एवं सर्वगुण संतान उत्पन्न करने के लिए हमारे पूर्वजों ने कुछ संस्कारों को करने हेतु अनिवार्य कहा है। जिन्हें संतान उत्पन्न करने से पूर्व करना चाहिए प्रत्येक पति पत्नी की पारस्परिक इच्छा, अभिलाषा होती है कि वह एक बुद्धिमान, मेधावी, धैर्यवान, भाग्यवान संतान के माता-पिता बने, परंतु मालूम न होने के कारण कि एक सर्वगुण संतान का माता-पिता कैसे बना जा सकता है वह चूक जाते हैं और संतान जनम के बाद जीवन भर उससे कष्ट पाते हैं। इसलिए आइये जानें कि सर्वगुण संपन्न संतान प्राप्त करने हेतु उसके जनम लेने से पूर्व किस योजना बद्ध तरीकों को अपनाना चाहिए। पुरातन विधाओं में संस्कार शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया गया है। बृहदारण्यक, छान्दोग्य, कौषीतिकि उपनिषदों में इसका अर्थ संस्करोति, अर्थात उन्नतिकारक कहा गया है। पाणिनी ने इसका अर्थ ‘उत्कर्ष साधन हि संस्कार’ यानि उत्कर्ष करने वाला माना है। अद्वैत वेदांत में यह आत्मा के ऊपर स्मृतियों का अध्यारोप है तो वैशेषिक दर्शन में यह चैबीस गुणों में से एक है। उत्तम एवं सर्वगुण संतान उत्पन्न करने के लिए हमारे पूर्वजों ने कुछ संस्कारों को करने हेतु अनिवार्य कहा है। जिन्हें संतान उत्पन्न करने से पूर्व करना चाहिए जिनका प्रयोग निम्न है- 1. गर्भाधान संस्कार: वास्तव में सहवास एक भावात्मक संबंध है। इसलिए यदि यह दिव्य, उदांत एवं उन्नत भावना से परिपूर्ण होगा तो संतान का मन तन भी दिव्य एवं स्वस्थ होगा। इसी दिव्य एवं उन्नत भावना को उत्पन्न करने हेतु सहवास काल में यह गर्भाधान संस्कार किया जाता है। भोग एवं संभोग इन दो शब्दों में केवल शब्दों का ही अंतर नहीं वरन् अर्थों में भी मर्म निहित है। केवल कामवासना या क्षणिक यौन संतुष्टि के लिए किये जाने वाला सहवास भोग होता है जबकि स्वस्थ, सुयोग्य एवं दीर्घायु संतान की उत्पति हेतु किया जाने वाला सहवास संभोग कहलाता है। यदि आप चाहते हैं कि आपकी संतान अल्पायु, विकलांग रोगी मूढ न होकर बलवान, बुद्धिमान एवं दीर्घायु हो तो सहवास (गर्भाधान संस्कार) निम्न अनुसार करना चाहिए- जब गर्भाधान करना हो तो कम से कम 3 दिन पूर्व से सुपाच्य, सात्विक आहार लेना, पर्याप्त विश्राम करना, विचारधारा अच्छी और सात्विक रखना तथा मधुर व चिकनाई युक्त पदार्थों एवं फलों के रस का सेवन करना चाहिए। पुत्र प्राप्ति की इच्छा हो तो गर्भाधान हेतु सहवास ऋतुकाल की 8वीं 10वी और 12वीं रात्रि में तथा यदि पुत्री की कामना हो तो 9, 11, 13 की रात्रि में तथा इसी के साथ साथ रिक्ता तिथियों एवं अमावस्या नहीं होनी चाहिए एवं दिन सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार होना चाहिए तथा नक्षत्र गंडांत एवं पति पत्नी के जनम नक्षत्र से 23वां नक्षत्र नहीं होना चाहिए। जिसे वैनाशिक नक्षत्र कहते हैं। कारण व्याघात, वैधृति, व्यतिपात तथा परिघ नहीं होना चाहिए। लग्न से केंद्र में एवं त्रिकोण में शुभ ग्रह, त्रिषडाय में पापग्रह तथा लग्न पर पुरुष ग्रह की दृष्टि और विषम राशि या नवांश में चंद्रमा होना चाहिए। इसी को गर्भाधान संस्कार कहते हैं। इसके अतिरिक्त इस गर्भाधान संस्कार के पश्चात 60 दिन और 90 दिन के भीतर पुंसवन एवं सीमंत संस्कार भी करना चाहिए। इस संस्कारों के करने से भ्रूण के पुलिंग होने में सहायता मिलती है तथा स्त्री, पुरुष के रज में कोई दोष हो तो उसका भी निराकरण होता है। जब गर्भ की पुष्टि हो जाये तो नवमास तक पति पत्नी को संयुक्त रूप से जहां आवश्यकता हो निम्न क्रियाएं करनी चाहिए। इस क्रियाओं को करने से मनोवांछित संतान की प्राप्ति होने में सहायता मिलती है। मुख्य क्रिया – प्रतिदिन अपने ईष्ट का स्मरण 5 मिनट दोनों समय करें। स्मरण के पश्चात जैसी संतान की इच्छा हो उसी प्रकार की संतान प्रदान करने का निवेदन ईष्ट से करें। मास मासेश क्रियात्मक कार्य 1. प्रथम मास शुक्र पति पत्नी विचार शुद्ध रखें। गुस्सा न करें। धूएं से दूर रहें। यदि दोनों में से कोई धूम्रपान करते हो तो न करें। 2. द्वितीय मास मंगल इस मास में भ्रूण में हड्डी, मज्जा आदि का निर्माण प्रारंभ होता है। इन्हें मजबूत करने के लिए प्रतिदिन लाल मसूर की दाल खाये तथा कुछ बीज लाल मिर्च या लाल मिर्च डालकर खाये। क्रोध न करें। 3. तृतीय मास गुरु वाथरूम और घर के नल ठीक रखें। घर को सुंदर सजायें और सुगंधित रखें। घर में कीड़े मकोड़े छिपकली आदि न रहने दें। ढोकला खाये या घी, वेसन के लड्डु खायें। इससे गुरु बलवान होंगे तथा राहु का बल कम होगा। 4. चतुर्थ मास सूर्य सूर्य भगवान की आराधना करें। माता-पिता सूर्योदय से पहले उठें और फिर सूर्य के सामने बैठकर 5-10 मिनट तक इस मंत्र का जप करें। ‘ऊं ह्रीं हंसः। यदि सूर्य न मिले या न दिखे तो समाचार पत्र या पंचांग से सूर्योदय का समय देखकर पूर्व की ओर मुंह करके मंत्र जाप करें। आवश्यक नहीं है कि इस क्रिया को करते समय स्नान किये ही हों। इस क्रिया को करने से संतान को कभी अवसाद रोग नहीं होगा एवं आत्मबली होगी। 5. पंचम मास चंद्र चंद्र मंत्र का जप करें। सूर्यास्त के बाद बाये हाथ में चांदी का कड़ा पहनें। दिन में दूध जरूर पीएं मुंह में दांत के नीचे इलाइची या सौंफ दबाये रखें। इसको करने से संतान का मस्तिष्क तेज और उर्वरक होगा। 6. षष्ठ मास शनि प्रत्येक शनिवार को कुष्ठ रोगी को कुछ खाद्य वस्तु दें। पति घर में खासकर रसोई में झाडू पोंछा करें। दूध मलाई का प्रयोग करें। इसके अतिरिक्त जिस प्रकार के कैरियर की संतान चाहते हो उस प्रकार से संबंधित साहित्य युगल पढ़ें, उनपर चर्चा करें। वैज्ञानिक वार्तालाप करें। 7.सप्तम मास बुध रात दिन में ठंडा भोजन करने का प्रयास न करें। हरी साग सब्जी अधिक खायें। धूप में बैठकर गरी का तेल शरीर में लगायें। ऊं बुं बुधायः मंत्र का जप करें। इसको करने से संतान बुद्धिमान होगी। 8. अष्टम मास गुरु नहाने के पानी में आधा घंटे पहले बेलपत्र डालकर उस पानी से स्नान करें। हल्दी का प्रयोग करें। बादी चीजें न खाये। समझदारी, ज्ञानवर्द्धक वार्तालाप करें। इसको करने से संतान समझदार, तेज एवं गुणवान होगी। 9. नवम मास चंद्र रसीले फलों का सेवन करें। प्रयास करें कि सफेद वस्त्र ही धारण करें। लाल, ग्रे या डार्क भेड के कपड़ों एवं रंगों से परहेज करें। पानी खूब पीएं। तांबे के बरतन में जलभर कर सिरहाने बाये तरफ रखकर सोयें। सुबह इस जल को भूमि में डाल दें। अच्छी-अच्छी बातें करें। इसको करने से संतान कष्ट रहित उत्पन्न होगी तथा वह स्वस्थ और सर्वगुण संपन्न होगी।
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