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वर्तमान युग में दांपत्य जीवन

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दाम्पत्य पुरुष और प्रकृति के संतुलन का पर्याय है। यह धरती और आकाश के संयोजन और वियोजन का प्रकटीकरण है। आकाश का एक पर्याय अंबर भी है जिसका अर्थ वस्त्र है। वह पृथ्वी को पूरी तरह अपने आवरण में रखता है। वह पृथ्वी के अस्तित्व से अछूता नहीं रहना चाहता। पुरुष और आकाश में कोई भिन्नता नहीं है। आकाश तत्व बृहस्पति का गुण है। स्त्री की कुंडली में सप्तम भाव का कारक गुरु ही है। गुरु अर्थात गंभीर, वह जो अपने दायित्व के प्रति गंभीर रहे। क्या आज के पति अपने धर्म का पूर्ण निर्वाह कर पा रहे हैं? आर्थिक युग के इस दौर में स्त्री घर छोड़कर बाहर निकल रही है। ऐसे में स्वाभाविक है वायरस (राहु) का फैलना जिससे निर्मित होता है गुरु चांडाल योग। इस विषय में ज्योतिष के सिद्धांत क्या कहते हैं, इसी का विवरण यहां दिया जा रहा है। यदि लग्न या चंद्र से सातवें भाव में नवमेश या राशि स्वामी या अन्य कारक ग्रह स्थित हों या उस पर उनकी दृष्टि हो तो शादी से सुख प्राप्त होगा और पत्नी स्नेहमयी और भाग्यशाली होगी । यदि द्वितीयेश, सप्तमेश और द्वादशेश केंद्र या त्रिकोण में हों तथा बृहस्पति से दृष्ट हों, तो सुखमय वैवाहिक जीवन व पुत्रवती पत्नी का योग बनाते हैं। यदि सप्तमेश और शुक्र समराशि में हांे, सातवां भाव भी सम राशि हो और पंचमेश और सप्तमेश सूर्य के निकट न हों या किसी अन्य प्रकार से कमजोर न हों, तो शीलवती पत्नी और सुयोग्य संतति प्राप्त होती है। यदि गुरु सप्तम भाव में हो, तो जातक पत्नी से बहुत प्रेम करता है। सप्तमेश यदि व्यय भाव में हो, तो पहली पत्नी के होते हुए भी जातक दूसरा विवाह करेगा, सगोत्रीय शादी भी कर सकता है। इस योग के कारण पति और पत्नी की मृत्यु भी हो सकती है। यदि सप्तमेश पंचम या पंचमेश सप्तम भाव में हो, तो जातक शादी से संतुष्ट नहीं रहता अथवा उसके बच्चे नहीं होते। स्त्री की कुंडली में सप्तम भाव में चंद्र और शनि के स्थित होने पर दूसरी शादी की संभावना रहती है जबकि पुरुष की कुंडली में ऐसा योग होने पर शादी या संतति नहीं होती है। लग्न में बुध या केतु हो, तो पत्नी बीमार रहती है। सातवें भाव में शनि और बुध स्थित हों, तो वैधव्य या विधुर योग बनता है। यदि सातवें भाव में मारक राशि और नवांश में चंद्र हो, तो पत्नी दुष्ट होती है। यदि सूर्य राहु से पीड़ित हो, तो जातक को अन्य स्त्रियों के साथ प्रेम प्रणय के कारण बदनामी उठानी पड़ सकती है। सूर्य मंगल से पीड़ित हो, तो वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है पति पत्नी दोनों एक दूसरे से घृणा करते हैं। जातक रक्तचाप और हृदय रोग से पीड़ित होता है। पुरुष के सप्तम भाव में मंगल की मेष या वृश्चिक राशि हो या मंगल का नवांश हो, यदि सप्तमेश नवांश लग्न से कमजोर हो अथवा राहु या केतु हो तो वह युवावस्था में ही अपनी पत्नी को त्याग देगा या पथभ्रष्ट हो जाएगा। यदि शुक्र और मंगल नवांश में स्थान परिवर्तन योग में हों, तो जातक विवाहेतर संबंध बनाता है। जातका के सप्तम भाव में यदि शुक्र, मंगल और चंद्र हों, तो वह अपने पति की स्वीकृति से विवाहेतर संबंध बनाएगी या अन्य पुरुष के साथ रहेगी। शादी के लिए कुंडली मिलान की प्रणाली का सहारा लिया जाना चाहिए, इससे कुछ हद तक प्रेम और वैवाहिक सौहर्द की स्थिरता को कायम रखा जा सकता है। पत्री मंे मंगल और शुक्र की स्थिति का विश्लेषण सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। संभव है कि शुक्र व मंगल की युति हो अथवा न भी हो, लेकिन अंतग्र्रस्त नक्षत्र का स्वामी अनिष्ट ग्रह हो सकता है। ऐसे में तलाक और अलगाव की समस्या उत्पन्न हो सकती हैैं। मंगल आवेश में वृद्धि करता है और शुक्र सम्मोहक पहलुओं से जोड़ता है। अतः जन्मांक में यदि ऐसे पहलू दिखें, तो माता पिता बच्चों का पालन पोषण अनुशासित ढंग से करें, उन्हें समझाएं कि क्षणिक आनंद और भोग विलास की तरफ आकर्षित न हों। शुक्र वैभव, रोमांश, मधुरता आदि सम्मोहक पहलुओं का द्योतक है। यह लैंगिक सौहार्द और सम्मिलन, कला, अनुरक्ति, पारिवारिक सुख, साधारण विवाह, वंशवृद्धि, जीवनी शक्ति, शारीरिक सौंदर्य और प्रेम का कारक है। मंगल बल, ऊर्जा, आक्रामकता का द्योतक है। जब शुक्र के साथ मंगल की युति हो, तो विषय वासना की प्रचुरता रहती है। अतः आवश्यक है कि जब वर व कन्या की कुंडलियां देख रहे हों, तब मंगल शुक्र की युति, स्थान परिवर्तन, दृष्टि संबंध और विपरीत स्थिति में बृहस्पति की अनुकूल स्थिति का शुभ प्रमाण अवश्य देखें। शरीर सौष्ठव में शुक्र, मंगल की युति शारीरिक सुंदरता के लिए महत्वपूर्ण है। किंतु गुरु और शनि के सौम्य प्रभाव का अभाव हो, तो कमी भी आ सकती है। शुक्र व मंगल व्यक्ति को भौतिकवादी, मनोरंजनप्रिय, शौकीन, आडंबरी और विषयी बनाते हैं। यदि ये दोनों विपरीत दृष्टि दे रहे हों, तो विषय संबंधी कठिनाई और वैवाहिक जीवन में समस्या आती है। शुक्र यदि उŸाम नक्षत्र या राशि में हो, तो मंगल का रूखापन (ज्वलन शक्ति) कम हो जाता है। लेकिन यदि राहु की युति हो, तो वह जातक को व्यभिचारी बना देती है। यदि अंतग्र्रस्त नक्षत्र, गुरु, बुध या चंद्र न हो, तो जातक में या जातका कामुकता प्रबल होती है शुभ विवाह के लिए केतु, शुक्र और मंगल का युति या दृष्टि संबंध अशुभ है । शुक्र पुरुष की कुंडली में दाम्पत्य का कारक है। गुरु स्त्री की कुंडली में शुभ वर समझा जाता है। जैसा कि ऊपर कहा गया है, शुक्र पौरुष शक्ति, सुंदरता मधुरता एवं प्रेम का द्योतक है। यह घर में आग्नेय कोण में पूर्वी आग्नेय और दक्षिणी आग्नेय के मध्य भाव का स्वामी है। यह स्थान अग्नि देवता से आरंभ होकर यम की हद तक पहुंच जाता है। आग्नेय एवं वायव्य कोणों में दोष होना दाम्पत्य सुख में बाधा उत्पन्न करता है। शयनकक्ष दक्षिणी आग्नेय कोण में नहीं बनाना चाहिए। कभी-कभी तलाक और अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। दहेज के मुकदमे आदि चालू हो जाते हैं। स्त्री की कुंडली में गुरु की स्थिति शुभ होती है। पूर्वी ईशान से उत्तरी ईशान तक के मध्य भाग में गुरु का समावेश रहता है। गुरु आकाश तत्व अर्थात कर्ण ज्ञानेंद्रिय का कारक है। स्त्रियों को सुनने की क्षमता बहुत समृद्ध रखनी चाहिए। उस स्थान पर शंका (राहु), अहंकार (शौचालय), वाचालता (सीढ़ी), रजोगुण(बुध), (चं) चंचलता को व्यवस्थित रखना चाहिए। पूर्वी ईशान कोण से उŸारी वायव्य तक यदि दोष हो, तो स्त्रियों में दोष व्याप्त हो जाता है। इस दोष के फलस्वरूप कहीं कहीं विवाह भी नहीं हुए हैं। सुखी दाम्पत्य के लिए पति पत्नी को दरार युक्त बिस्तर पर शयन नहीं करना चाहिए। शयनकक्ष में खुला पानी, खुला शीशा आदि न रखें। आग्नेय कोण में जूठे बर्तन, झाडू इत्यादि न रखें। ईशान कोण शिव का स्थान माना जाता है। शिव आदि पुरुष हैं और आग्नेय कोण शक्ति का स्थान है, जो आदि नारी हैं। यही ब्रह्मांड के सुयोग्य पति पत्नी और हम सबके माता पिता हंै। देखने वाली बात यह है कि शिव (पुरुष) ने शक्ति के स्थान में और शक्ति ने शिव के स्थान में संतुलन बनाया। श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक ये दोनों परम पूज्य हैं।

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