स्नान -दान-श्राद्ध की अमावस्या –
भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आष्विन मास की प्रति तथा आष्विन मास की अमावस्या तक का समय अपने पितरों तथा पूर्वजो को पूजन, याद करने तथा उनकी मुक्ति हेतु दान करने का होता है। इस माह में किए गए दान एवं पूण्य जीवन में सुख तथा समृद्धिदायी होती है साथ ही कष्टों को दूर करने वाली होती है। आष्विन मास के अमावस्या को पितृपक्ष का अंतिम दिन माना जाता है। पूरे 15 दिवस चलने वाले इस पितरतर्पण का विसर्जन आष्विन मास की अमावस्या को किये जाने का विधान है। इस दिन किए गए सभी दान एवं श्राद्ध पितरों की मुक्ति का माना जाता है। इस दिन ब्राम्हणों को भोजन तथा दान देकर तृप्त करने से पितरों की मुक्ति होना माना जाता है। इस दिन प्रातःकाल नदी के स्नान से निवृत्त होने के उपरांत सभी प्रकार के भोज एवं दानसामग्री लेकर संकल्प के साथ दान करने के उपरांत सायंकाल द्वार पर दीपक जलाकर एक दोनें में पूरी, खीर आदि पकवान रख दिए जाते हैं, जिसमें खाद्य सामग्री पितरों की रास्ते की भूख मिटाने तथा दीपक उनके रास्ते को प्रज्जवलित करने हेतु रखा जाता है। इस प्रकार िपतरों को विदा करने से जीवन में ग्रहदोष की निवृत्ति होकर परिवार सुखी होता है।