कर्ज पर आजादी प्राप्त करें
ऐसा क्यों होता है कि कभी-कभी कर्ज चुकने का नाम ही नहीं लेता?कर्ज षब्द का भाव है कि किसी से उधार कुछ धन लिया और बाद मे उस पर कुछ अतिरिक्त धन देकर मुलधन को वापस कर देना । ये सबसे बुरी बीमारी है और अगर एक साल ब्याज की किस्त किसी कारण वष नही दें पाया तो अगले वर्श उस ब्याज को मूलधन मे जोड दिया जाता है और इस प्रकार ब्याज के उपर ब्याज देना पडता है । इसी प्रकार हम हर रोज या हर माह जैसा निष्चित किया गया है उनके हिसाब के मुताबिक ब्याज व मुलधन नही दे सके तो एक दिन ऐसा आऐगा कि हम कर्ज से इतने दब जायेंगे कि पूरी जिन्दगी दबे रहेंगे न खाना अच्छा खा सकेंगे और बच्चो का सही ढंग से पालन पोशण कर पाएंगे । और एक दिन जब कर्ज से ज्यादा दब जायेगें और किसी भी स्थिति मे चुकता नही कर पाएगें तो हमे दिवालिया घोशित कर दिया जाएगा कोई भी आदमी आदर से नही देखेगा और उसे दुनियां के लोग बडी घृणा से देखते है । लोग उसे कुछ भी देना पसन्द नही करते है ।शास्त्रों में मंगलवार और बुधवार को कर्ज के लेन-देन के लिए निषेध किया है। मंगलवार को कर्ज लेने वाला जीवनभर कर्ज नहीं चुका पाता तथा उस व्यक्ति की संतान भी इस वजह परेशानियां उठाती हैं।जीवन में प्रत्येक व्यक्ति को कभी न कभी अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए कर्ज लेना ही पड़ता है। कई बार व्यक्ति कर्ज को जल्दी चुकाने की इच्छा रखता है, लेकिन कर्ज का अंत नहीं आता है। कर्ज के लेन-देन में वार का भी विशेष महत्व होता है।
यदि व्यक्ति को किसी कारणवश कर्ज लेना पड़े तो वार देखकर लेना हितकर रहेगा।
कर्ज को न बढने दो इसे रोज चुकाओ बिना नागा किए भजन सुमिरन करो ताकि ब्याज और मुलधन दोनो को चुका दिया जाए ।
‘‘करि रोज भजन तु भाई । कर्मो की करि लै लाई’’ ‘‘फसलॅ पहुंच जाय खलियान’’
रोज़मर्रा की जिंदगी और घर-गृहस्ती के कामों के लिए इंसान कमोबेश ऋण लेता रहता है| यह कर्ज तब तक भार नहीं लगता है, जब तक वह चुकता रहता है| लेकिन समस्या तब बढ़ जाती है, जब कर्ज लेकर कर्जा चुकाएं या कर्जे पर कर्जा बढ़ता चला जाए| ऐसा क्यों होता है और ज्योतिष की दृष्टी से इसके कारण निवारणों पर ध्यान दिया जाए तो यह पता चलता है कि इस तरह के कुछ योग होते हैं जिनमे कर्ज चुकने में ही नहीं आता है|
धन-नाश योग: ——
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल ग्रह को कर्ज का कारक ग्रह माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार मंगलवार को कर्ज लेना निषेध माना गया है। वहीं बुधवार को कर्ज देना अशुभ है क्योंकि बुधवार को दिया गया कर्ज कभी नही मिलता। मंगलवार को कर्ज लेने वाला जीवनभर कर्ज नहीं चुका पाता तथा उस व्यक्ति की संतान भी इस वजह परेशानियां उठाती हैं।जन्म कुंडली के छठे भाव से रोग, ऋण, शत्रु, ननिहाल पक्ष, दुर्घटना का अध्ययन किया जाता है| ऋणग्रस्तता के लिए इस भाव के आलावा दूसरा भाव जो धन का है, दशम-भाव जो कर्म व रोजगार का है, एकादश भाव जो आय का है एवं द्वादश भाव जो व्यय भाव है, का भी अध्ययन किया जाता है| इसके आलावा ऋण के लिए कुंडली में मौजूद कुछ योग जैसे सर्प दोष व वास्तु दोष भी इसके कारण बनते हैं| इस भाव के कारक ग्रह शनि व मंगल हैं|
दूसरे भाव का स्वामी बुध यदि गुरु के साथ अष्टम भाव में हो तो यह योग बनता है| जातक पिता के कमाए धन से आधा जीवन काटता है या फिर ऋण लेकर अपना जीवन यापन करता है| सूर्य लग्न में शनि के साथ हो तो जातक मुकदमों में उलझा रहता है और कर्ज लेकर जीवनयापन व मुकदमेबाजी करता रहता है| 12 वें भाव का सूर्य व्ययों में वृद्धि कर व्यक्ति को ऋणी रखता है| अष्टम भाव का राहू दशम भाव के माध्यम से दूसरे भाव पर विष-वमन कर धन का नाश करता है और इंसान को ऋणी होने के लिए मजबूर कर देता है| इनके आलावा कुछ और योग हैं जो व्यक्ति को ऋणग्रस्त बनाते हैं|
— उपर बताएं पाप ग्रह अगर मंगल को देख रहे हों तो भी कर्जा होता है।
—- कुंडली में खराब फल देने वाले घरों (छठे, आठवें या बारहवें) घर में कर्क राशि के साथ हो तो व्यक्ति का कर्ज लंबे समय तक बना रहता है।
—– षष्ठेश पाप ग्रह हो व 8 वें या 12 वें भाव में स्थित हो तो व्यक्ति ऋणग्रस्त रहता है|
—छठे भाव का स्वामी हीन-बली होकर पापकर्तरी में हो या पाप ग्रहों से देखा जा रहा हो|
—-अगर कुंडली में मंगल कमजोर हो यानि कम अंश का हो तो ऋण लेने की स्थिति बनती है।
—- अगर मंगल कुंडली में शनि, सूर्य या बुध आदि पापग्रहों के साथ हो तो व्यक्ति को जीवन में एक बार ऋण तो लेना ही पड़ता है।
— दूसरा व दशम भाव कमजोर हो, एकादश भाव में पाप ग्रह हो या दशम भाव में सिंह राशि हो, ऐसे लोग कर्म के प्रति अनिच्छुक होते हैं|
— यदि व्यक्ति का 12 वां भाव प्रबल हो व दूसरा तथा दशम कमजोर तो जातक उच्च स्तरीय व्यय वाला होता है और 5. निरंतर ऋण लेकर अपनी जरूरतों की पूर्ति करता है|
— आवास में वास्तु-दोष-पूर्वोत्तर कोण में निर्माण हो या उत्तर दिशा का निर्माण भारी व दक्षिण दिशा का निर्माण हल्का हो तो व्यक्ति के व्यय अधिक होते हैं और ऋण लेना ही पड़ता है|
उपाय—-
—— नित्य गोपाल विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें|
—— रविवार तक 10 वर्ष से कम उम्र की कन्याओं को भोजन कराएं।
—– हर मंगलवार लाल गाय को गुड़ खिलाएं।
—- शनिवार को ऋणमुक्तेश्वर महादेव का पूजन करें।
—– मंगल की भातपूजा, दान, होम और जप करें।
—-विधि-विधान पूर्वक लक्ष्मी-यन्त्र की स्थापना कर लक्ष्मी-स्तोत्र व कवच का पाठ करें या कराएं|
—– मंगल एवं बुधवार को कर्ज का लेन-देन न करें।
—– लाल, सफेद वस्त्रों का अधिकतम प्रयोग करें।
— श्रीगणेश को प्रतिदिन दूर्वा और मोदक का भोग लगाएं।
– लक्ष्मी- गायत्री मंत्र ‘ॐ महालक्ष्म्मै च विद्महे, विष्णु पत्नये च धीमहि, तन्नो लक्ष्मिः प्रचोदयात’ का जप करें या कराएं|
– श्रीगणेश का अथर्वशीर्ष का पाठ प्रति बुधवार करें।
– शिवलिंग पर प्रतिदिन कच्चा दूध चढ़ाएं।
अपनी राशी अनुसार जाने उधार और कर्ज से बचने के लिए उपाय—
मेष- घोड़े को हरा चारा खिलाए या रोगीयों को औषधि का दान दें।
वृष- विद्यार्थियों को अध्ययन की सामग्री दान दें।
मिथुन- हरे पौधों को पानी दें या तोते को हरी मिर्च खिलाए।
कर्क- 10 वर्ष से कम उम्र वाली कन्या को मिठाई खिला कर भेंट दें।
सिंह- किन्नर को हरी चुडिय़ां दान दें।
कन्या- गाय को हरे मूंग खिलाए और हरे वस्त्र पहनें।
तुला- जरूरतमंद को हरे वस्त्र दान दें।
वृश्चिक- कुल देवी देवता को कांसे का दीपक लगांए।
धनु- जीवनसाथी को आभूषण या पन्ना रत्न पहनाएं।
मकर- किसी को ऋण दें या ऋण दिलाने में मदद करें।
कुंभ- किसी वृद्ध को हरे वस्त्र का दान दें।
मीन- गणेश जी को दूर्वा चढ़ाए।
कर्ज और वार का संबंध —-
-सोमवार- सोमवार की अधिष्ठाता देवी पार्वती हैं। यह चर संज्ञक और शुभ वार है। इस वार को किसी भी प्रकार का कर्ज लेने-देने में हानि नहीं होती है।
-मंगलवार- मंगलवार के देवता कार्तिकेय हैं। यह उग्र एवं क्रूर वार है। इस वार को कर्ज लेना शास्त्रों में निषेध बताया गया है। इस दिन कर्ज लेने के बजाए पुराना कर्ज हो तो चुका देना चाहिए।
-बुधवार- बुधवार के देवता विष्णुहैं। यह मिश्र संज्ञक शुभ वार है, मगर ज्योतिष की भाषा में इसे नपुंसक वार माना गया है। यह गणेशजी का वार है। इस दिन कर्ज देने से बचना चाहिए।
– गुरुवार- गुरुवार के देवता ब्रह्माहैं। यह लघु संज्ञक शुभ वार है। गुरुवार को किसी को भी कर्ज नहीं देना चाहिए, लेकिन इस दिन कर्ज लेने से कर्ज जल्दी उतरता है।
-शुक्रवार- शुक्रवार के देवता इन्द्र हैं। यह मृदु संज्ञक और सौम्य वार है। कर्ज लेने-देने दोनों दृष्टि से अच्छा वार है।
-शनिवार- शनिवार के देवता काल हैं। यह दारुण संज्ञक क्रूर वार है। स्थिर कार्य करने के लिए ठीक है, परंतु कर्ज लेन-देने के लिए ठीक नहीं है। कर्ज विलंब से चुकता है।
– रविवार- रविवार के देवता शिव हैं। यह स्थिर संज्ञक और क्रूर वार है। रविवार को न तो कर्ज दें और न ही कर्ज लें।
कर्ज के पिंड से छुटकारा नहीं हो रहा हो तो प्रत्येक बुधवार को गणेशजी के सम्मुख तीन बार ‘ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र’ का पाठ करें और यथाशक्ति पूजन करें।
धनहीनता के ज्योतिष योग—-
ज्योतिष में फलित करते समय योगों का विशेष योगदान होता है। योग एक से अधिक ग्रह जब युति, दृष्टि, स्थिति वश संबंध बनाते हैं तो योग बनता है। योग कारक ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा व प्रत्यन्तर दशादि में योगों का फल मिलता है। योग को समझे बिना फलित व्यर्थ है। योग में योगकारक ग्रह का महत्वपूर्ण भूमिका होती है। योगकाकर ग्रह के बलाबल से योग का फल प्रभावित होता है। अब यहां ज्योतिष योगों कि चर्चा करेंगे जो इस प्रकार हैं।धनहानि किसी को भी अच्छी नहीं लगती है। आज उन ज्योतिष योगों की चर्चा करेंगे जो धनहानि या धनहीनता कराते हैं। कुछ योग इस प्रकार हैं-
-धनेश छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो या भाग्येश बारहवें भाव में हो तो जातक करोड़ों कमाकर भी निर्धन रहता है। ऐसे जातक को धन के लिए अत्यन्त संघर्ष करना पड़ता है। उसके पास धन एकत्रा नहीं होता है अर्थात् दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि धन रुकता नहीं है।
– जातक की कुंडली में धनेश अस्त या नीच राशि में स्थित हो तथा द्वितीय व आठवें भाव में पापग्रह हो तो जातक सदैव कर्जदार रहता है।
– जातक की कुंडली में धन भाव में पापग्रह स्थित हों। लग्नेश द्वादश भाव में स्थित हो एवं लग्नेश नवमेश एवं लाभेश(एकादश का स्वामी) से युत हो या दृष्ट हो तो जातक के ऊपर कोई न कोई कर्ज अवश्य रहता है।
-किसी की कुंडली में लाभेश छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो तो जातक निर्धन होता है। ऐसा जातक कर्जदार, संकीर्ण मन वाला एवं कंजूस होता है। यदि लग्नेश भी निर्बल हो तो जातक अत्यन्त निर्धन होता है।
-षष्ठेश एवं लाभेश का संबंध दूसरे भाव से हो तो जातक सदैव ऋणी रहता है। उसका पहला ऋण उतरता नहीं कि दूसरा चढ़ जाता है। यह योग वृष, वृश्चिक, मीन लग्न में पूर्णतः सत्य सिद्ध होते देखा गया है।
-धन भाव में पाप ग्रह हों तथा धनेश भी पापग्रह हो तो ऐसा जातक दूसरों से ऋण लेता है। अब चाहे वह किसी करोड़पति के घर ही क्यों न जन्मा हो।
-किसी जातक की कुंडली में चन्द्रमा किसी ग्रह से युत न हो तथा शुभग्रह भी चन्द्र को न देखते हों व चन्द्र से द्वितीय एवं बारहवें भाव में कोई ग्रह न हो तो जातक दरिद्र होता है। यदि चन्द्र निर्बल है तो जातक स्वयं धन का नाश करता है। व्यर्थ में देशाटन करता है और पुत्रा एवं स्त्राी संबंधी पीड़ा जातक को होती है।
– यदि कुंडली में गुरु से चन्द्र छठे, आठवें या बारहवें हो एवं चन्द्र केन्द्र में न हो तो जातक दुर्भाग्यशाली होता है और उसके पास धन का अभाव होता है। ऐसे जातक के अपने ही उसे धोखा देते हैं। संकट के समय उसकी सहायता नहीं करते हैं। अनेक उतार-चढ़ाव जातक के जीवन में आते हैं।
-यदि लाभेश नीच, अस्त य पापग्रह से पीड़ित होकर छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तथा धनेश व लग्नेश निर्बल हो तो ऐसा जातक महा दरिद्र होता है। उसके पास सदैव धन की कमी रहती है। सिंह एवं कुम्भ लग्न में यह योग घटित होते देखा गया है।
-यदि किसी जातक की कुण्डली में दशमेश, तृतीयेश एवं भाग्येश निर्बल, नीच या अस्त हो तो ऐसा जातक भिक्षुक, दूसरों से धन पाने की याचना करने वाला होता है।
– किसी कुण्डली में मेष में चन्द्र, कुम्भ में शनि, मकर में शुक्र एवं धनु में सूर्य हो तो ऐसे जातक के पिता एवं दादा द्वारा अर्जित धन की प्राप्ति नहीं होती है। ऐसा जातक निज भुजबल से ही धन अर्जित करता है और उन्नति करता है।
– यदि कुण्डली का लग्नेश निर्बल हो, धनेश सूर्य से युत होकर द्वादश भाव में हो तथा द्वादश भाव में नीच या पापग्रह से दृष्ट सूर्य हो तो ऐसा जातक राज्य से दण्ड स्वरूप धन का नाश करता है। ऐसा जातक मुकदमें धन हारता है। यदि सरकारी नौकरी में है तो अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित या नौकरी से निकाले जाने का भय रहता है। वृश्चिक लग्न में यह योग अत्यन्त सत्य सिद्ध होता देखा गया है।
-यदि धनेश एवं लाभेश छठे, आठवें, बारहवें भाव में हो एवं एकादश में मंगल एवं दूसरे राहु हो तो ऐसा जातक राजदण्ड के कारण धनहानि उठाता है। वह मुकदमे, कोर्ट व कचहरी में मुकदमा हारता है। अधिकारी उससे नाराज रहते हैं। उसे इनकम टैक्स से छापा लगने का भय भी रहता है।
मूलतः धनेश, लाभेश, दशमेश, लग्नेश एवं भाग्येश निर्बल हो तो धनहीनता का योग बनता है।
उक्त धनहीनता के योग योगकारक ग्रहों की दशान्तर्दशा में फल देते हैं। फल कहते समय दशा एवं गोचर का विचार भी कर लेना चाहिए।