रोहिणी व्रत महत्व
जैन धर्म शास्त्रों के अनुसार, प्रत्येक महीने के 27 वें दिन रोहिणी नक्षत्र पड़ता है। इस दिन जैन धर्म के अनुयायी रोहिणी व्रत मनाते हैं। रोहिणी व्रत पर परमपूज्य भगवान वासु स्वामी की पूजा-उपासना की जाती है। अतः साधक श्रद्धा भाव से परमपूज्य भगवान वासु स्वामी की भक्ति करते हैं। इस दिन जैन मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।
शुभ मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के अनुसार, 14 जुलाई को रोहिणी व्रत देर तक 10 बजकर 27 मिनट तक है। अतः साधक अपनी सुविधा अनुसार परमपूज्य भगवान वासु स्वामी की पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
पूजा विधि
रोहिणी व्रत यानी 14 जुलाई के दिन ब्रह्म बेला में उठकर घर की साफ-सफाई करें। अब नित्य कर्मों से निवृत होकर स्नान-ध्यान करें। अगर सुविधा है, तो गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें और नवीन वस्त्र धारण करें। अब आचमन कर व्रत संकल्प लें। तदोउपरांत, सूर्यदेव को जल दें। अब भगवान वासुपूज्य स्वामी की पूजा फल, फूल, दूर्वा आदि से करें। अंत में आरती-अर्चना कर सुख और समृद्धि की कामना करें।
रोहिणी व्रत के नियम
- इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना बहुत आवश्यक होता है।
- माना जाता है तीन, पांच और सात साल निश्चित रूप से इस व्रत का पालन करना चाहिए। इस व्रत की उचित अवधि पांच वर्ष की मानी जाती है। जिन अनुयायियों द्वारा पांच वर्ष की अवधि तक व्रत का पालन करना संभव नहीं हो पाता। इसके लिए पांच माह का समय भी उत्तम माना गया है।
- रोहिणी व्रत को कितने समय तक करना इसका निर्णय स्वंय लिया जाता है। इस समय अवधि में व्रत करने का संकल्प लेने के पश्चात, इस व्रत का उद्यापन तभी किया जाता है, जब अवधि पूर्ण होे जाती है। इसलिए दृढ़ निश्चय के बाद ही संकल्प लेना चाहिए।
- व्रत का उद्यापन हो जाने के बाद गरीबों को भोजन कराना चाहिए और दान करना चाहिए। इसी के साथ साथ पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ वासुपूज्य की पूजा करनी चाहिए।
- भगवान वासुपूज्य जी के दर्शनों के साथ ही व्रत का उद्यापन उचित माना जाता है।
- इस दिन भगवान वासुपूज्य की ताम्र, पंचरत्न या स्वर्ण की मूर्ति की स्थापना की जाती है और पूरा दिन भगवान की आराधना करके स्थापित मूर्ति का पूजन किया जाता है।
- पूजा के पूर्ण हो जाने के बाद नैवेद्य, वस्त्र और पुष्प अर्पित करके फल और मिठाई का भोग लगाया जाता है।
- इस व्रत को करते समय मन में ईर्ष्या और द्वेष जैसे भावों को नहीं लाना चाहिए।