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शक्तिसूत्राणि

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शक्तिसूत्राणि

          अथ शक्तिसूत्राणि
          भगवदगस्त्यविरचितानि ।
          
          अथातः शक्तिजिज्ञासा ॥ १॥

          यत्कर्त्री ॥ २॥

          यदजा ॥ ३॥

          नान्तरयोऽत्र ॥ ४॥

          तत्सान्निध्यात् ॥ ५॥

          तत्कल्पकत्वमौपाधिकम् ॥ ६॥

          समानधर्मत्वात् ॥ ७॥

          तच्च प्रातिभासिकम् ॥ ८॥

          यद्बन्धः ॥ ९॥

          यदारोपाध्यासादैक्यम् ॥ १०॥

          शब्दाधिष्टानलिङ्गम् ॥ ११॥

          नानावान् ॥ १२॥

          तच्च कालिकम् ॥ १३॥

          अखण्डोपाधे ॥ १४॥

          यामेव भूतानि विशन्ति ॥ १५॥

          यदोतं यत्प्रोतम् ॥ १६॥

          तद्विष्णुत्वात् ॥ १७॥

          ततो जगन्ति कियन्ति ॥ १८॥

          नानात्वेऽप्येकत्वम्विरुद्धम् ॥ १९॥

          विचारात् ॥ २०॥

          यस्माददृश्यं दृश्यञ्च ॥ २१॥

          दृष्टित्वव्यपदेशाद्वा ॥ २२॥

          अविनाभावित्वात् ॥ २३॥

          भिन्नत्वे नानियाम्यत्वे ॥ २४॥

          अतथाविधा ॥ २५॥

          यत्कृतिः ॥ २६॥

          इच्छाज्ञानक्रियास्वरूपत्वात् ॥ २७॥

          न सन्नासत् ॥ २८॥

          सदसत्त्वात् ॥ २९॥

          तद्भ्रान्तिः ॥ ३०॥

          यत्सत् ॥ ३१॥

          इदानीमुपाधिविचारः क्रियते ॥ ३२॥

          लीयत तत्रैकदेशप्रवादः ॥ ३३॥

          यस्मात्तारतभ्यम् जन्तूनाम् ॥३४॥

          सौम्यं जननमरणयोः ॥ ३५॥

          पौनःपुन्यात् ॥ ३६॥

          यदेव संसारः ॥ ३७॥

          ऊर्णनाभिः ॥ ३८॥

          सादृश्यानन्त्यम् ॥ ३९॥

          तत्सिद्धिरेव सिद्धिः ॥ ४०॥

          तद्वत्त्वात् ॥ ४१॥

          यच्चैतन्यभेद (भदे) प्रमाणम् ॥ ४२॥

          तद्बुद्धेः ॥ ४३॥

          तन्नाशे तन्नाशः ॥ ४४॥

          भूतभौतिकौ ॥ ४५॥

          अन्यथाज्ञेयत्वं भावात् ॥ ४६॥

          तन्निर्लेपः पुष्करपर्णतत्त्ववत् ॥ ४७॥

          सतः ॥ ४८॥

          पुष्पगन्धवत् ॥ ४९॥

          मूक्तः सर्वो बद्धः सर्वः ॥ ५०॥

          यद्विलासात् ॥ ५१॥

          तत् स्रष्टु (?) त्वानुमितेः ॥ ५२॥

          अङ्गान्तरं व्यभिचरितम् ॥ ५३॥

          नो दोषः ॥ ५४॥

          यद्देयद्यत्पुराणः (sic)॥ ५५॥

          भ्राम्यते जन्तुः ॥ ५६॥

          भ्रश्यते स्वर्गात् ॥ ५७॥

          आरोग्यस्य ॥ ५८॥

          निर्विकारे क्रियाभावात् ॥ ५९॥

          बन्धमोक्षयोश्च ॥ ६०॥

          सर्वत्र चिन्त्यम् ॥ ६१॥

          शून्यत्वो वा निगलवत् (sic)॥ ६२॥

          पीतविषवद्विरोधोपलब्धेः ॥ ६३॥

          तद्योगातू तद्योगः ॥ ६४॥

          तद्भोगे तद्भोग इति ॥ ६५॥

          तत्त्यागस्तद्व्यप्यत्वत् ॥ ६६॥

          बन्धनैयत्त्यापत्तेः ॥ ६७॥

          नास्तीति भ्रमः ॥ ६८॥

          अस्तीत्यतिरिक्तमपि ॥ ६९॥

          पक्षान्तरासिद्धेः ॥ ७०॥

          तदभावाभावात् ॥ ७१॥

          लिङ्गमलिङ्ग्यं  तल्लिङ्गम् ॥ ७२॥

          प्राबल्यात् ॥ ७३॥

          वशीकृतेशित्वात्कामिनीत्वान्मोहकत्वाद्वा ॥ ७४॥

          यन्मातापितरौ ॥ ७५॥

          बीजोत्पत्तेरैन्द्रजालिकम् ॥ ७६॥

          न तज्जातेः ॥ ७७॥

          निर्गुणत्वात् ॥ ७८॥

          तत्कामित्वाद्व्यासः ॥ ७९॥

          तत्परो जैमिनिः ॥ ८०॥

          तत्स्वाभिन्नो हयाननश्च ॥ ८१॥

          उक्तवानगस्त्यः ॥ ८२॥

          तद्वेदी वैष्कलायनः ॥ ८३॥

          कण्ठः कर्त्तृत्वम् ॥ ८४॥

          पराशरः प्राबल्यम् ॥ ८५॥

          वशिष्ठो मोहनम् ॥८६॥

          शुकस्त्वात्मनम् ॥ ८७॥

          मातरं नारदः ॥ ८८॥

          मन्वानास्तरन्ति संसारम् ॥ ८९॥

          उक्तलिङ्गैः सद्भिः प्रमाणैः ॥ ९०॥

          तत्तु तित्तिरिः ॥ ९१॥

          छन्दोकाश्च (?) गाश्च ॥ ९२॥

          मारीचस्तद्वादी ॥ ९३॥

          यच्छिवः ॥ ९४॥

          हरिरन्तर्गुरुर्बहिः ॥ ९५॥

          कालो भेदे दुरुद्बोध्यः ॥ ९६॥

          तल्लेशाः ॥ ९७॥

          दहरव्यापित्वात् ॥ ९८॥

          तत्परात्तद्बहिः ॥ ९९॥

          एवं ब्रह्मविदः ॥ १००॥

          अधर्मात्तद्बन्धः ॥ १०१॥

          धर्मो हि वृत्तौ ॥ १०२॥

          न मोहे हिंसा च यस्याः ॥ १०३॥

          अतश्चित्तप्रमादः ॥ १०४॥

          गौर्भरिणीमाठरायणोः (sic)॥ १०५॥

          न हि वेदो न हि वेद तद्विदः ॥ १०६॥

          विन्दति वेदान्प्रकृतिम् ॥ १०७॥

          तरति तां तस्मात् ॥ १०८॥

          ब्रह्मभूयाय कल्पते ब्रह्मभूयाय कल्पत इति ॥ १०९॥

          विदित्वैवं तरति ॥ ११०॥

          यत्कृत्वा ॥ १११॥

          जैमिनिरनात्मेति ॥ ११२॥

          गौणीति प्राचुर्यात् ॥ ११३॥

          
                    ॥ इति शक्तिसूत्राणि ॥
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