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श्रीकृष्ण और गीता: जीवन बदल देने वाला वह ज्ञान जो आज भी उतना ही सच है!

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श्रीकृष्ण और श्रीमद्भगवद्गीता: जीवन का सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शन

भारत के धार्मिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक इतिहास में श्रीकृष्ण जैसा अद्भुत व्यक्तित्व दूसरा नहीं मिलता। वे केवल भगवान नहीं, बल्कि एक ऐसे मित्र, मार्गदर्शक, कूटनीतिज्ञ, दार्शनिक और जीवन-गुरु हैं, जिनकी सीख हर युग, हर व्यक्ति और हर परिस्थिति में प्रासंगिक बनी रहती है।
श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया दिव्य उपदेश ही श्रीमद्भगवद्गीता है — विश्व का सबसे महान ग्रंथ, जिसे केवल धार्मिक नहीं, बल्कि जीवन-प्रबंधन का शास्त्र माना जाता है।

गीता हमें सिखाती है कि मानव जीवन संघर्षों से भरा है, लेकिन सही दृष्टिकोण, सही कर्म और सही सोच व्यक्ति को हर कठिनाई से ऊपर उठा सकती है। इस लेख में हम जानेंगे कि श्रीकृष्ण ने गीता में क्या कहा, क्यों कहा और आज के जीवन में इसका क्या महत्व है।

गीता का जन्म: युद्धभूमि पर दिया गया अमृतज्ञान

कुरुक्षेत्र का मैदान—चारों तरफ महाभारत का महायुद्ध, शंखों की गूँज, हथियारों की चमक और रिश्तेदारों की लाशें।
ऐसे समय में अर्जुन निराश, दुविधा से भरा हुआ और मानसिक रूप से टूट चुका था।
कर्म और धर्म के बीच उलझा अर्जुन युद्ध करने से मना कर देता है।

यही वह क्षण था जब श्रीकृष्ण ने उसे जीवन का ऐसा दिव्य ज्ञान दिया, जो आज भी हर इंसान के लिए मार्गदर्शक है।
यही उपदेश 18 अध्यायों में श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में प्रकट हुआ।

गीता के मुख्य सिद्धांत – जो जीवन बदलने की शक्ति रखते हैं

1. कर्मयोग – कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो

गीता का सबसे लोकप्रिय और सार्थक संदेश है:

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”

अर्थ—
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने पर है, फल पर नहीं।

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आज की तनावपूर्ण जीवनशैली में गीता का यह सिद्धांत हमें सिखाता है कि:

  • मेहनत करो, लेकिन अपेक्षा मत पालो।

  • परिणाम से जुड़ाव ही दुख का कारण है।

  • कर्म को पूजा समझकर करो, बाकी ईश्वर पर छोड़ दो।

यह विचार सफलता के साथ शांति भी देता है।

2. आत्मा अमर है – मृत्यु केवल परिवर्तन है

श्रीकृष्ण कहते हैं:

“न जायते म्रियते वा कदाचित्…”
आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।

व्यक्ति का शरीर बदलता है, आत्मा नहीं।
यह ज्ञान भय, शोक और मृत्यु का डर खत्म कर देता है।
आज तनाव और डिप्रेशन के दौर में यह शिक्षा मानव मन को स्थिर रखती है।

3. सही निर्णय वही है जो धर्म के अनुसार हो

धर्म का अर्थ यहाँ कर्तव्य है, न कि केवल पूजा-पाठ।
हर व्यक्ति के जीवन में कई भूमिकाएँ होती हैं—
पिता, पुत्र, पत्नी, भाई, कर्मचारी, नागरिक…

श्रीकृष्ण कहते हैं—
अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभाना ही सच्चा धर्म है।

अर्जुन का युद्ध करना उसका कर्तव्य था, इसलिए श्रीकृष्ण ने उसे प्रेरित किया कि वह व्यक्तिगत भावनाओं से ऊपर उठकर धर्म-स्थापना के लिए युद्ध करे।

4. मन ही दोस्त, मन ही दुश्मन

श्रीकृष्ण का सबसे अद्भुत मनोवैज्ञानिक संदेश:

“मनुष्य अपने मन का ही मित्र है और वही मन उसका शत्रु भी बन जाता है।”

यह सत्य आज के समय में बिल्कुल सही बैठता है।
अधिकतर समस्याएँ—तनाव, डर, क्रोध, ईर्ष्या—मन से ही उत्पन्न होती हैं।
गीता कहती है:

  • मन को साधो

  • विचारों को नियंत्रित करो

  • और सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ो।

5. श्रीकृष्ण का ज्ञान केवल आध्यात्मिक नहीं..

गीता केवल धर्म का ग्रंथ नहीं, बल्कि लाइफ-मैनेजमेंट की बाइबिल है।

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इसमें जीवन के हर पहलू के उत्तर मिलते हैं:

  • कामयाबी कैसे मिले?

  • डर और तनाव से कैसे बचें?

  • सही निर्णय कैसे लें?

  • असफलता में कैसे स्थिर रहें?

  • रिश्तों को कैसे निभाएँ?

इसलिए दुनिया के बड़े-बड़े नेता, वैज्ञानिक और विचारक गीता पढ़ते हैं।

गीता के 18 अध्याय – जीवन के 18 सिद्धांत

गीता के प्रत्येक अध्याय एक प्रकार की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं:

  1. अर्जुन विषाद योग — जीवन का भ्रम

  2. सांख्य योग — ज्ञान का महत्व

  3. कर्म योग — कर्म की शक्ति

  4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग — सही समझ

  5. कर्म-संन्यास योग — त्याग का अर्थ

  6. ध्यान योग — मन की साधना

  7. ज्ञान-विज्ञान योग — ब्रह्म का रहस्य

  8. अक्षर ब्रह्म योग — मृत्यु का रहस्य

  9. राजविद्या-राजगुह्य योग — परम रहस्य

  10. विभूति योग — भगवान की शक्तियाँ

  11. विश्वरूप दर्शन योग — विराट रूप

  12. भक्ति योग — भक्ति का महत्व

  13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ योग — शरीर व आत्मा

  14. गुणत्रय विभाग योग — तीन गुण (सत्व, रजस, तमस)

  15. पुरुषोत्तम योग — सर्वोच्च पुरुष

  16. दैवासुर संपत्ति योग — दैवी व आसुरी गुण

  17. श्रद्धात्रय विभाग योग — श्रद्धा का महत्व

  18. मोक्ष-संन्यास योग — मुक्ति का मार्ग

ये सभी अध्याय मिलकर मनुष्य को संपूर्ण जीवन जीने की कला सिखाते हैं।

गीता आधुनिक जीवन में क्यों ज़रूरी है?

आज का समय भाग-दौड़, तनाव, प्रतिस्पर्धा और अस्थिरता से भरा हुआ है।
ऐसे में गीता के सिद्धांत हमें आंतरिक शक्ति देते हैं:

✔ तनाव कम होता है

✔ निर्णय क्षमता बढ़ती है

✔ आत्मविश्वास मजबूत होता है

✔ नकारात्मकता दूर होती है

✔ आत्म-साक्षात्कार की ओर व्यक्ति बढ़ता है

इसलिए गीता आज भी उतनी ही उपयोगी है जितनी अर्जुन के समय थी।

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श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी सीख – दूसरों के लिए जीना ही सच्चा धर्म

श्रीकृष्ण का जीवन स्वयं एक उदाहरण है:

  • उन्होंने बचपन में गांव की रक्षा की

  • महाभारत में पांडवों का साथ देकर अन्याय का अंत किया

  • मित्रता, प्रेम, नीति, राजनीति—हर क्षेत्र में सर्वोत्तम उदाहरण बने

उन्होंने हमेशा कहा—

“लोकसंग्रह” यानी मानवता और समाज के लिए काम करना ही सच्चा धर्म है।

व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसका कर्म समाज के लिए उपयोगी बने।

क्या सीखते हैं हम श्रीकृष्ण और गीता से?

🔹 क्रोध से विनाश होता है

🔹 लोभ से दुख बढ़ता है

🔹 अहंकार से ज्ञान नष्ट होता है

🔹 कर्तव्य से बढ़कर कुछ नहीं

🔹 धैर्य और संयम सफलता की चाबी हैं

🔹 योग — मन, बुद्धि और कर्म का संतुलन है

🔹 सच्ची भक्ति सेवा और सच्चाई में है

🔹 जो होता है, अच्छे के लिए होता है

इन सिद्धांतों को यदि कोई जीवन में उतार ले, तो उसका जीवन संघर्षों से ऊपर उठकर सफलता, शांति और आनंद से भर जाता है।

निष्कर्ष: गीता – हर प्रश्न का उत्तर
श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शन है।
इसमें मानव जीवन की हर समस्या का समाधान मिलता है।
श्रीकृष्ण का संदेश समय को लांघ कर आज भी उतना ही प्रभावी और सत्य है। यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन थोड़ा-सा भी गीता पढ़े या उसकी सीखों को अपनाए, तो उसका जीवन सकारात्मक ऊर्जा, संतुलन, बुद्धि, साहस और शांति से भर जाता है। श्रीकृष्ण का संदेश सदियों से मार्गदर्शक रहा है और आगे भी मानवता को रास्ता दिखाता रहेगा।