
नागेश्वर की तपस्या और महाकाल का वरदान
श्री महाकाल धाम अम्लेश्वर की एक और पौराणिक कथा
प्राचीन काल में अम्लेश्वर के घने जंगलों में खारून नदी के तट पर एक सर्पराज, नागेश्वर, निवास करते थे। नागेश्वर एक शिवभक्त थे और उनकी तपस्या से आसपास का क्षेत्र पवित्र हो गया था। लेकिन एक बार, एक शक्तिशाली दानव, मेघासुर, ने अम्लेश्वर पर आक्रमण कर दिया। मेघासुर ने खारून नदी के प्रवाह को रोक दिया, जिससे क्षेत्र में सूखा पड़ गया। जंगल सूखने लगे, और जीव-जंतु प्यास से तड़पने लगे। गाँववासियों का जीवन संकट में पड़ गया।
नागेश्वर ने इस आपदा को देखकर भगवान शिव की आराधना करने का निश्चय किया। उन्होंने खारून नदी के तट पर एक प्राचीन शिवलिंग के समक्ष अपनी कुंडली लपेटकर कठोर तप शुरू किया। वह बिना अन्न-जल के “ॐ नमः शिवाय” का जाप करने लगे। उनकी तपस्या इतनी तीव्र थी कि पृथ्वी काँपने लगी और खारून नदी की लहरें गूंजने लगीं। नौ दिन और नौ रात की तपस्या के बाद, भगवान शिव महाकाल के रूप में प्रकट हुए। उनकी आँखों से अग्नि की ज्वालाएँ निकल रही थीं, और उनका त्रिशूल दानवों के लिए काल बन गया।
महाकाल ने मेघासुर का वध किया और खारून नदी को फिर से प्रवाहित कर दिया। नदी का जल फिर से निर्मल और जीवनदायी हो गया। नागेश्वर ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे इस क्षेत्र में सदा के लिए निवास करें। महाकाल ने प्रसन्न होकर कहा, “हे नागेश्वर, तुम्हारी भक्ति अटल है। मैं इस स्वयंभू शिवलिंग में सदा वास करूँगा और खारून नदी के तट पर भक्तों की रक्षा करूँगा।” इसके बाद, महाकाल ने नागेश्वर को वरदान दिया कि उनकी संतानें इस क्षेत्र की रक्षा करेंगी और खारून नदी को कभी हानि नहीं होगी।
*कथा का परिणाम*: इस घटना के बाद, अम्लेश्वर में श्री महाकाल धाम की महिमा और बढ़ गई। खारून नदी के तट पर यह मंदिर भक्तों के लिए और भी पवित्र हो गया। स्थानीय लोग मानते हैं कि यहाँ सर्पदोष की शांति के लिए पूजा करने से विशेष फल मिलता है, क्योंकि नागेश्वर की भक्ति ने इस स्थान को और पवित्र बनाया।
*कथा का भाव और महत्व*:
– *स्वयंभू शिवलिंग की महिमा*: यह कथा अम्लेश्वर के स्वयंभू शिवलिंग की उत्पत्ति और उसकी आध्यात्मिक शक्ति को और गहराई से दर्शाती है।
– *खारून नदी का महत्व*: खारून नदी को इस कथा में जीवन का स्रोत और पवित्रता का प्रतीक बताया गया है, जो अम्लेश्वर की आध्यात्मिक पहचान को मजबूत करता है।
– *महाकाल की रक्षक शक्ति*: यह कथा भगवान महाकाल की भक्तों और प्रकृति की रक्षा करने वाली शक्ति को रेखांकित करती है, जो इस तीर्थ स्थल को भक्तों के लिए और भी श्रद्धेय बनाती है।
– *नागेश्वर का योगदान*: नागेश्वर की भक्ति और सर्पदोष निवारण के लिए इस स्थान की विशेष मान्यता को दर्शाती है, जो भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
यह कथा श्री महाकाल धाम अम्लेश्वर और खारून नदी की पवित्रता को और गहराई से उजागर करती है, जो भक्तों के बीच आस्था और विश्वास का आधार है।