
संत विश्वनाथ और राजा विक्रमादित्य की वंश वृद्धि
श्री महाकाल धाम अम्लेश्वर से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा:
प्राचीन काल में मालवा क्षेत्र के एक शक्तिशाली राजा विक्रमादित्य अपनी प्रजा के लिए अत्यंत प्रिय थे। उनकी वीरता और न्यायप्रियता की कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। किंतु एक गंभीर समस्या ने उन्हें चिंता में डाल रखा था—उनके वंश की निरंतरता खतरे में थी। एक प्राचीन श्राप के कारण, राजा को कोई पुत्र प्राप्त नहीं हो रहा था। यह श्राप एक ऋषि द्वारा दिया गया था, जिनका अपमान राजा के एक पूर्वज ने अनजाने में किया था। श्राप के अनुसार, राजवंश में पुत्र जन्म नहीं लेगा जब तक पितृ शांति का विशेष अनुष्ठान न हो।
राजा विक्रमादित्य ने कई तीर्थों और मंदिरों में पूजा-अर्चना की, किंतु कोई लाभ नहीं हुआ। तब एक रात्रि में उन्हें स्वप्न में भगवान महाकाल ने दर्शन दिए और अम्लेश्वर के स्वयंभू शिवलिंग की ओर निर्देश किया। स्वप्न में भगवान ने कहा, “हे विक्रम! खारून नदी के तट पर मेरे स्वयंभू लिंग के समक्ष संत विश्वनाथ के नेतृत्व में पितृ शांति का अनुष्ठान कराओ। तुम्हारा श्राप मिटेगा, और तुम्हारे वंश की निरंतरता बनी रहेगी।”
राजा विक्रमादित्य तुरंत अम्लेश्वर पहुँचे, जहाँ संत विश्वनाथ तपस्या में लीन थे। संत विश्वनाथ एक महान शिवभक्त थे, जिन्हें खारून नदी के तट पर महाकाल की कृपा प्राप्त थी। राजा ने अपनी व्यथा सुनाई, और संत ने सात दिनों तक पितृ शांति का विशेष अनुष्ठान शुरू किया। इस अनुष्ठान में खारून नदी के जल से अभिषेक, “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप, और पितरों के लिए तर्पण किया गया। सातवें दिन, आकाश में गर्जना हुई, और स्वयंभू शिवलिंग से एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई। भगवान महाकाल ने दर्शन देकर घोषणा की कि राजा का श्राप मिट गया है।
कुछ समय बाद, राजा विक्रमादित्य को एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसने उनके वंश को आगे बढ़ाया। इस चमत्कार के बाद, अम्लेश्वर का श्री महाकाल धाम और भी प्रसिद्ध हो गया। कालांतर में, भगवान महाकाल भूमिशायी (अदृश्य) हो गए, और मंदिर की ख्याति समय के साथ धूमिल पड़ने लगी।
*महादानी दाऊ अशोक अग्रवाल और स्वयंभू लिंग का पुनर्जागरण*: आधुनिक काल में, दाऊ अशोक अग्रवाल, जो दाऊ कल्याण सिंह के अग्रज थे, को एक रात्रि स्वप्न में भगवान महाकाल ने दर्शन दिए। भगवान ने उन्हें आदेश दिया, “मेरे धाम को पुनर्जनन दो। खारून नदी के तट पर मेरा स्वयंभू लिंग आज भी विद्यमान है। एक भव्य मंदिर का निर्माण करो, और मेरी महिमा को पुनः स्थापित करो।” दाऊ अशोक अग्रवाल ने इस स्वप्न को ईश्वरीय संदेश मानकर श्री महाकाल धाम का जीर्णोद्धार शुरू किया। उन्होंने अपनी संपत्ति और संसाधनों का उपयोग कर एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया, जो आज भक्तों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है।
स्थानीय मान्यता के अनुसार, यह स्वयंभू शिवलिंग हर साल आकार में बढ़ता है, जो भगवान महाकाल की जीवंत शक्ति का प्रतीक है। कथा में यह भी कहा जाता है कि इस लिंग की रक्षा के लिए एक नाग-नागिन का जोड़ा वहाँ निवास करता है। ये नाग-नागिन भगवान शिव के गण माने जाते हैं और समय-समय पर भक्तों को दर्शन देते हैं। भक्तों का विश्वास है कि इनके दर्शन से सर्पदोष और पितृदोष गुरु चांडाल दोष अंगारक दोष विवाह में आने वाली बाधाओं के अर्क विवाह और कुंभ विवाह विष्णु प्रतिमा विवाह कराया और विवाह बाधा का निवारण कराया जाता है इसे श्रवण कृष्ण प्रतिपदा को भगवान का 21 प्राकट्य वर्ष होगा एक भविष्यवाणी है कि ठीक 5 वर्ष के भीतर यहां विशाल भक्त निवास का निर्माण होगा और ठीक 121 वर्ष बाद भगवान पुनः भूमिशाई हो जाएंगे है महाकाल
यह कथा श्री महाकाल धाम अम्लेश्वर की आध्यात्मिक महत्ता और खारून नदी के तट पर बसे इस पवित्र स्थल की चमत्कारी शक्ति को दर्शाती है।