
भगवान कार्तिकेय की पत्नी कौन हैं?
भगवान कार्तिकेय, जिन्हें स्कंद, मुरुगन, सुब्रह्मण्य, कुमारस्वामी और षण्मुख भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म के अत्यंत पूज्य देवताओं में से एक हैं। वे भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र तथा देवताओं के सेनापति माने जाते हैं। दक्षिण भारत में उनका विशेष महत्व है, जहाँ वे मुरुगन नाम से लोकदेवता और आराध्य देव के रूप में पूजे जाते हैं।
अक्सर भक्तों के मन में यह प्रश्न उठता है कि भगवान कार्तिकेय की पत्नी कौन हैं? क्या उनकी एक पत्नी थीं या एक से अधिक? क्या सभी ग्रंथों में एक ही मत है?
भगवान कार्तिकेय का संक्षिप्त परिचय
भगवान कार्तिकेय का जन्म अत्यंत दिव्य और अलौकिक परिस्थितियों में हुआ था। शिवजी के तेज से उत्पन्न अग्नि को छह कृतिकाओं ने पालन-पोषण किया, इसलिए वे षण्मुख कहलाए। वे बाल्यावस्था से ही अत्यंत पराक्रमी, तेजस्वी और धर्मरक्षक रहे। तारकासुर जैसे महाबली असुर का वध कर उन्होंने देवताओं को भयमुक्त किया।
कार्तिकेय ब्रह्मचर्य, शौर्य, ज्ञान और भक्ति के प्रतीक माने जाते हैं। हालांकि, कुछ परंपराओं में उन्हें ब्रह्मचारी माना गया है, जबकि अन्य परंपराओं में उनके विवाह का विस्तृत वर्णन मिलता है।
भगवान कार्तिकेय की पत्नियाँ – मुख्य रूप से दो
पौराणिक और विशेष रूप से तमिल शैव परंपरा के अनुसार भगवान कार्तिकेय की दो पत्नियाँ मानी जाती हैं:
- देवसेना (देवयानी या देवसेना अम्मन)
- वल्ली (वल्ली अम्मन)
इन दोनों का स्वरूप, उत्पत्ति और प्रतीकात्मक अर्थ अलग-अलग हैं, लेकिन दोनों ही भगवान मुरुगन की शक्ति और पूर्णता को दर्शाती हैं।
1. देवसेना – देवताओं की पुत्री
देवसेना कौन थीं?
देवसेना को इंद्रदेव की पुत्री माना जाता है। वे देवताओं की ओर से भगवान कार्तिकेय को समर्पित कन्या थीं। तारकासुर वध के बाद, देवताओं ने कृतज्ञता स्वरूप अपनी कन्या देवसेना का विवाह कार्तिकेय से किया।
विवाह की पौराणिक कथा
तारकासुर के आतंक से त्रस्त देवताओं ने शिवजी से प्रार्थना की थी कि कोई ऐसा वीर उत्पन्न हो जो उस असुर का वध कर सके। जब कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया, तब देवताओं ने उन्हें अपना सेनापति स्वीकार किया और इंद्रदेव ने अपनी पुत्री देवसेना का विवाह उनसे कर दिया।
देवसेना का प्रतीकात्मक अर्थ
देवसेना को कर्म, अनुशासन और वैदिक परंपरा का प्रतीक माना जाता है। वे राजसी, मर्यादित और शास्त्रीय जीवन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
दक्षिण भारत में देवसेना को ‘देवयानी’ या ‘देवयाना’ भी कहा जाता है।
2. वल्ली – आदिवासी कन्या और प्रेम की प्रतीक
वल्ली का परिचय
वल्ली भगवान कार्तिकेय की दूसरी पत्नी मानी जाती हैं। वे एक आदिवासी (कुरवा जाति) प्रमुख की पुत्री थीं। उनका पालन-पोषण पहाड़ों और वनों में हुआ।
वल्ली और मुरुगन की प्रेम कथा
वल्ली और भगवान मुरुगन की कथा अत्यंत रोचक और भावनात्मक है। मुरुगन वल्ली के सौंदर्य और भक्ति से प्रभावित हुए और उन्हें पाने के लिए उन्होंने अनेक लीलाएँ कीं।
कथाओं के अनुसार, भगवान गणेश ने हाथी का रूप धारण कर वल्ली को भयभीत किया, जिससे वह मुरुगन की शरण में आईं और अंततः उनका विवाह हुआ।
वल्ली का प्रतीकात्मक अर्थ
वल्ली को इच्छा, प्रेम और भक्ति (इच्छा शक्ति) का प्रतीक माना जाता है। वे सरल, प्राकृतिक और निश्छल प्रेम की मूर्ति हैं।

देवसेना और वल्ली – दो शक्तियों का संतुलन
धार्मिक दृष्टि से माना जाता है कि देवसेना और वल्ली, भगवान कार्तिकेय की दो शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं:
- देवसेना – ज्ञान, अनुशासन और वैदिक मार्ग
- वल्ली – प्रेम, समर्पण और भक्ति मार्ग
इस प्रकार भगवान कार्तिकेय का जीवन यह सिखाता है कि ज्ञान और प्रेम, दोनों के संतुलन से ही जीवन पूर्ण होता है।
क्या भगवान कार्तिकेय ब्रह्मचारी हैं?
उत्तर भारत की कुछ परंपराओं में भगवान कार्तिकेय को ब्रह्मचारी माना गया है। विशेषकर उत्तर भारतीय पुराणों और कुछ मंदिरों में उन्हें अविवाहित रूप में पूजा जाता है।
वहीं दक्षिण भारत में उन्हें गृहस्थ रूप में पूजा जाता है। यह भिन्नता धार्मिक परंपराओं और सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण है।
दक्षिण भारत में कार्तिकेय और उनकी पत्नियों की पूजा
तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भगवान मुरुगन के छह प्रमुख मंदिर (अरुपडई वीडु) प्रसिद्ध हैं। कई मंदिरों में मुरुगन के साथ वल्ली और देवसेना दोनों की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
विशेष पर्व जैसे थाईपूसम, स्कंद षष्ठी और पंगुनी उत्तिरम में उनके विवाह और लीलाओं का विशेष स्मरण किया जाता है।
आध्यात्मिक दृष्टि से विवाह का अर्थ
आध्यात्मिक रूप से देखा जाए तो भगवान कार्तिकेय का विवाह सांसारिक नहीं बल्कि दैवीय संतुलन का प्रतीक है।
- देवसेना – शास्त्र, नियम और ज्ञान
- वल्ली – भक्ति, प्रेम और आत्मसमर्पण
जब साधक इन दोनों मार्गों को अपनाता है, तब उसे ईश्वर की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है।
निष्कर्ष भगवान कार्तिकेय की पत्नियों को लेकर विभिन्न परंपराओं में अलग-अलग मान्यताएँ मिलती हैं। शास्त्रीय और विशेष रूप से तमिल परंपरा के अनुसार उनकी दो पत्नियाँ – देवसेना और वल्ली थीं। देवसेना वैदिक मर्यादा और कर्म मार्ग की प्रतीक हैं, जबकि वल्ली प्रेम और भक्ति की मूर्ति हैं। दोनों मिलकर भगवान कार्तिकेय की पूर्ण शक्ति और दिव्यता को दर्शाती हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भगवान कार्तिकेय का विवाह केवल पौराणिक कथा नहीं, बल्कि जीवन के गहरे आध्यात्मिक सत्य को समझाने वाला दिव्य संदेश है।





