गुरू का रत्न पुखराज
पुखराज नग गुरू का रत्न होता है, यह पीले रंग का होता है तथा इसकी धातु सोना होती है। इसलिये पुखराज नग हमेशा सोने में ही जड़वाना चाहिये। जड़वाने के बाद इसकी प्राण-प्रतिष्ठा भी करवाना जरूरी होता है। उसके लिये हमें उस नग को शुद्ध जल गंगाजल या कच्चे दूध में धोकर तांबे या सोने में बने हुये गुरू यंत्र के उपर रखकर विधिवत पूजा पाठ करना चाहिये।
देवताओं के नवग्रहों का आव्हान् करके आपको गुरू के मंत्र का जप करना चाहिये। गुरू का मंत्र है- ऊं बृ बृहस्पत्यै नमः। इसके 19000 मंत्र करने चाहिये। उसके बाद विधिपूर्वक हवन भी करना चाहिये तथा गुरू की होरा में गुरूवार को सुबह सीधे हाथ की तर्जनी उंगली में धारण करना चाहिये। यह नग हमारे शरीर के साथ संबंध स्थापित कर लेता है और अपना फल देना आरम्भ कर देता है।
शुक्र का नग हीरा
ळीरा नग को प्लेटिनम या सोने की धातु में ही जड़वाना चाहिये। इ सनग को जड़वाने के बाद शुद्ध जल, या कच्चे दूध में धोकर यज्ञमण्डल का निर्माण कर पंचकोणाकार शुक्रमण्डल बनाना चाहिये।
चांदी से बने हुये शुक्र यंत्र के उपर रखकर अंगूठी की विधिवत पुष्प, चंदन, धूपबत्ती से पूजा करनी चाहिये।पूजा करने के बाद शुक्रवार को आपको मंत्रों का जप शुरू करना चाहिये। मंत्र है-ऊॅं शुं शुक्राय नमः। इ समंत्र का 16000 जप करना चाहिये। जप करने के बाद ब्राम्हण के द्वारा एक छोटा यज्ञ भी करवाना चाहिये। यज्ञ करवाने के बाद आप इस नग को शुक्रवार की होरा में सुबह सीधे हाथ की अनामिका उंगली में इसे धारण कर सकते हैं तथा पंडित, ब्राम्हण को अपनी इच्छानुसार दान अवश्य देना चाहिये।