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कुंडली में ग्रहण योग

काल सर्प योग की अशुभता को बढ़ा देता है ग्रहण योग । इस योग का विस्तृत फल भी प्राप्त होता है क्योंकि यह योग कालसर्प योग की अशुभता को बढ़ा देता है। परंतु किस हद तक, इसका पूर्ण विवेचन जानने के लिए पढ़िए यह लेख। सूर्य सिद्धांत के अनुसार सूर्य से 6 राशि के अंतर अर्थात 1800 अंश की दूरी पर पृथ्वी की छाया रहती है। पृथ्वी की छाया को भूच्छाया, पात या छाया ग्रह राहु, केतु भी कहते हैं। पूर्णिमा की रात्रि के अंत में जब चंद्रमा भूच्छाया में...
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अंतर्जातीय विवाह का ज्योतिष्य कारण

भारतीय समाज में विवाह एक संस्कार के रूप में माना जाता है। जिसमें शामिल होकर स्त्री पुरुष मर्यादापूर्ण तरीके से अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर वंशवृद्धि या अपनी संतति को जन्म देते हैं। सामान्यतः विवाह का यह संस्कार परिवारजनों की सहमति या इच्छा से अपनी जाति, समाज या समूह में ही किया जाता है। पर फिर भी हमें ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जहां विवाह परिवार की सहमति से ना होकर स्वयं की इच्छा से किया जाता है। पूर्व समय में प्रेम सम्बन्ध या यौन आकर्षण विवाह सम्बन्ध के बाद...
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मन में अहंकार पैदा क्यों ?????

जब मन को किसी गलत विक्षिप्तताओं क्रोध, घृणा, ईष्र्या, लालच में अधिक लंबाई तक खींचा जाता है तो मन में अहंकार पैदा होने लगता है। मन में पहले बड़े अहंकार आने लगते हैं जो कि स्थाई होते हैं। फिर धीरे-धीरे सूक्ष्म अहंकार आने लगते हैं जो कि हमें दिखाई नहीं देते हैं और पता भी नहीं चलता है। ये सूक्ष्म अहंकार हमारे शरीर में चल रही हार्मोनिक क्रियाओं पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं और शरीर की व्यवस्थाओं में बिखराव पैदा करना शुरू कर देते हैं। इस बिखराव के द्वारा शरीर...
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दैनिक जीवन की मनोविकृतियाँ

प्राय : सभी व्यक्तियों से दैनिक जीवन में भूलें होती हैँ। कुछ भूले हमारी अज्ञानता के कारण होती है जबकि कुछ भूलें ऐसी होती है जो शीघ्र ही हमारी स्मृति में आ जाती है जिनका हमें ज्ञान होता है और हम उनमें सुधार लाते है। कभी-कभी ऐसी भी घटनाएं घटित होती है जो आश्चर्यजनक होती है परन्तु इन घटनाओं पर हम अपना ध्यान नहीं देते है । इन घटनाओं तथा भूलों को करते समय तक चेतना व्यक्ति को नहीँ होती परन्तु तुरन्त ही चेतना अथवा ज्ञान हो जाता है। ऐसा...
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व्यक्तित्व विकास एवं समायोजन

विकास का अर्थ विकास एक प्रक्रम है, जिसे प्रेक्षण और उत्पाद जाना जा सकता है। विकासात्मक परिवर्तन, व्यक्तित्व की संरचना एवं उसके प्रकार्य में होते है। दैहिक संरचना में परिवर्तन जीवन पर्यन्त होते रहते है। ये परिवर्तन शरीर की कोशिकाओं एवं उतकों तथा अन्य रासायनिक तत्वों में होते रहते है। इसके साथ ही व्यक्ति के सवेंगों, व्यवहारों एवं अन्य व्यक्तित्यशाली गुणों में परिवर्तन होते रहते है जिन्हें प्रेक्षण द्वारा प्रत्यक्ष या व्यक्ति द्वारा किये गये व्यवहार के परिणाम के आधार पर परोक्षत: जाना जा सकता है। चूँकि विकास प्रगतिशील एवं...
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