ग्रह विशेष

शुक्र अनिष्ट हो तो क्या करे ?

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शुक्र अनिष्ट हो तो क्या करे- शुक्र दैत्यों का गुरू है। इस ग्रह को भृगु नन्दन भी कहते हैं, क्योकि यह भृगु ऋषि का पुत्र है। वीर्य पर शुक्र का विशेष आधिपत्य है। यह कामसूत्र का कारक है और 25वें वर्ष में भाग्योदय कराता है। बुध-शनि इसके मित्र हैं। इसकी सूर्य तथा चंद्र के साथ शत्रुता रहती है। यह दक्षिण दिशा का स्वामी है। अगर शुक्र निर्बल या बद स्थिति में हो तो जातक को खुशी में गमी, भूत-प्रेत बाधा, विषधर जंतुओं से पाला पड़ना, शीघ्रपतन, सेक्स संबंधी परेशानी, संतान उत्पन्न करने में अक्षमता, दुर्बल-अशक्त शरीर, अतिसार, अजीर्ण, वायु प्रकोप आदि रोग उत्पन्न होते हैं।

इसलिए जातक को लक्ष्मीजी का सान्निध्य प्राप्त करना चाहिए।शनि अनिष्ट हो तो क्या करे- पश्चिम दिशा का अधिष्ठाता शनि ग्रह सूर्य-पुत्र माना जाता है। इसके द्धारा कठिन कार्य करने की क्षमता, गम्भीरता और पारस्परिक प्रेम आदि की भावना जाग्रत होती है। साथ ही पति-पत्नी में मनमुटाव, गुप्त रोग, अग्निकांड, दुर्घटना, अयोग्य संतान, आंखों में कष्ट, पेचिश, अतिसार, दमा, संग्रहणी, मधुमेह, पथरी, मूत्र विकार, रक्तचाप, हृदय दौर्बल्य, कब्ज आदि रोगों की उत्पत्ति होती है। सूर्य, चंद्र और मंगल से शनि की शत्रुता मानी जाती है। यह 36वें वर्ष में उन्नति कराता है। उक्त रोगों तथा कष्टों से मुक्ति के लिए राजा का आशीर्वाद एवं सम्मान प्राप्त करें या भैरव मंदिर में शराब चढ़ाएं।

मघपान निषेध रखें। अवश्य लाभ होगा।राहु- राहु एक छाया ग्रह है। इसके दुष्प्रभाव से आकस्मिक घटना, भूत-प्रेत बाधा, वैराग्य, ज्वर, वैधव्य, विदेश यात्रा, मिरगी, सिर पर चोट, राज कोप, मानसिक रोग, टी.बी., बवासीर, प्लीहा आदि के रोग होते है। राहु विशेष तौर पर राजनीतिक क्षेत्र का कार्केश ग्रह (अशुभ प्रभावों में विशेष लाभकारी) माना जाता है।

ऐसी दशा में कन्यादान, गणेश पूजा या कन्याओं की शादी पर पैसे दान करें।केतु- केतु का प्रभाव मंगल की तरह होता है। फिर भी केतु छाया ग्रह है। इसके बद या दुष्प्रभाव से निगुढ़ विद्याओं का आत्मज्ञान होना अथवा वैराग्य प्राप्त होना बताया जाता है।

इससे बीमारियों का प्रकोप बना रहता है। घुटनों में दर्द, मूत्र विकार, अजीर्ण, आमवात, मधुमेह, ऐश्वर्य-नाश, ऋण की बढ़ोत्तरी, पुत्र का दुव्र्यवहार तथा पुत्र पर संकट आते हैं। इसके कुप्रभाव से मुक्ति के लिए बछिया दान अथवा गणेश पूजा करनी चाहिए। कष्टों से अवश्य छुटकारा मिलेगा।

यदि चन्द्र ग्यारहवें घर में हो तो वह क्षीण या दुर्बल होता है। ऐसे में माता को घर छोड़ने का कष्ट देना पड़ेगा। तात्पर्य यह है कि जातक की पत्नी के प्रसव-पीड़ा के दौरान माता को 43 दिनों तक किसी पराये घर में आश्रय लेना उत्तम होगा, अन्यथा नवजात शिशु को अनिष्ट स्थितियों का सामना करना पडे़गा। यहां तक कि उसकी मृत्यु भी हो सकती है।

यदि मंगल नौवें घर में स्थित हो तो धर्म का नाश, भाग्योदय में रूकावट, बनते कार्याें में बाधा, मानसिक तनाव आदि का सामना करना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति में जातक को चाहिए कि भाभी की सेवा करें एवं उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें। अगर दूसरे घर में स्थित होते हुए मंगल की दृष्टि पांचवें घर में हो तो धन-नाश, सन्तान में बाधा एवं शारीरिक कष्ट आदि होता है। ऐसे में पितरों का आशीर्वाद लें तथा समान रूप से परिवार की सेवा- सुश्रूषा करें। निःसन्देह पुत्र-रत्न की प्राप्ति होगी।

यदि शनि पांचवें घर में स्थित हो तो संतान पर संकट, संतान को कष्ट या संतान हानि होती है। ऐसे में घर में नीम का पेड़ लगाएं। रात्रि को एक गिलास पानी सिरहाने रखकर सोएं और प्रातःकाल उसे पेड़ में डाल दें।

यूं तो केतु छाया ग्रह है, लेकिन ’लाल किताब’ इसे पुत्र और कुत्ते का कारक मानती है। यदि जातक को अपने पुत्र पर विशेष संकट मंडराता दिखाई पड़े तोे काले कुत्ते को 43 दिन रोटी खिलाएं या काली गाय को गौ-ग्रास दें। ध्यान रहें, पुत्र पर संकट केतु के प्रभाव से ही आता है।