जिज्ञासा

रामायण सीता की मददगार त्रिजटा का युद्ध के बाद क्या हुआ, उसने सपने में राम की जीत देखी थी

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रामायण (Ramayan) को टीवी पर देखते समय सभी ने देखा कि किस तरह अशोक वाटिका में एक राक्षसी त्रिजटा (Trijata) सीता (Sita) की मदद करती है. उसने सपने में राम की जीत देखी थी. युद्ध में राम की जीत के बाद त्रिजटा का क्या हुआ.

रामायण (Ramayan) की कथा इन दिनों टीवी पर आ रही है. टीवी पर नंबर वन बने हुए इस सीरियल में हुए हम सभी ने देखा कि किस तरह त्रिजटा अशोक वाटिका में रावण की कैद के दौरान समय समय पर सीता की मदद करती है. त्रिजटा राक्षसी को रावण ने प्रमुख गार्ड के रूप में वहां रखा था. वो बार-बार उन्हें दिलासा देती थीं. कम से कम दो बार रावण के प्रकोप से इस राक्षसी ने सीता को बचाया. जानते हैं रावण से युद्ध में जीत के बाद त्रिजटा का क्या हुआ.

त्रिजटा रामायण की एक पात्र है. जिसका उल्लेख रामचरित मानस, वाल्मिकी रामायण में तो हुआ. लेकिन दक्षिण एशियाई देशों में जो रामायण के अलग अलग संस्करण प्रचलित हैं, उसमें उसका उल्लेख कहीं ज्यादा बड़े रूप में हुआ है. जब रावण ने वन से अपहरण करने के बाद सीता को अशोक वाटिका में रखा तो तमाम राक्षसियां उन्हें तरह-तरह से परेशान करती थीं. एक त्रिजटा ही थी, जो राक्षसियों से भी बचाती थी और साथ में ढांढस भी बढ़ाती रहती थी.

रामचरित मानस और रामायण के अनुसार त्रिजटा राक्षसी विभीषण की बेटी थी. अपने पिता विभीषण की तरह वो भी रामभक्त थी. ये भी उल्लेख हुआ है कि मंदोदरी ने उसे खासतौर पर सीता की देखरेख के लिए रखा था.

जिस दौरान लंका में राम और रावण की सेनाओं के बीच युद्ध हो रहा था, तब त्रिजटा अपने सूत्रों से मिल रही तमाम जानकारियों को सीता तक पहुंचाती थी. जब रावण ने कभी माया के जरिए सीता को भऱमाने की कोशिश की तब भी त्रिजटा ने सीता को सही बात बताई. जब युद्ध के दौरान राम और लक्ष्मण पर मुसीबत आती थी, तो त्रिजटा ही वहां सीता को दिलाने दिलाने वाली थी. उसने सीता से ये भी कहा कि उसने सपना देखा है और उसके अनुसार युद्ध में राम की जीत होगी.

रावण की भतीजी थी त्रिजटा
राम चरित की चौपाइयों के अनुसार, त्रिजटा की मां का नाम शरमा था. इस रिश्ते से देखा जाए तो वो रावण की भतीजी लगती थी. जब इस कैद में सीता जी के लिए विरह को सह पाना मुश्किल होने लगा तो उन्होंने खुद की जान देने की बात की. त्रिजटा से कहा कि वो चिता बनाकर सजा दे और उसमें आग लगा दे. ऐसे में त्रिजटा ने बुद्धिमानी से सीता की बात ये कहकर टाल दी थी कि इतनी रात में कहां आग मिलेगी. इसके अलावा रावण ने दो मौकों पर नाराज होकर सीता को मारना चाहा, तब भी त्रिजटा ने रावण को समझाया और सीता की रक्षा की

पुरस्कारों से लाद दिया था राम और सीता ने 

रामायण के दूसरी भाषाओं के संस्करणों में त्रिजटा के बारे में और वर्णन आया है. इनमें कहा गया है कि युद्ध के बाद राम और सीता ने त्रिजटा को मूल्यवान पुरस्कारों से लाद दिया था. इंडोनेशिया में प्रचलित “काकाविन रामायण” के अनुसार अशोक वाटिका में रावण ने 300 राक्षसियों को गार्ड के तौर पर तैनात कर रखा था. उसमें केवल त्रिजटा ही थी, जो सीता का उत्साह बढ़ाती थी

“बालरामायण” कहती है कि जीत के बाद त्रिजटा सीता के साथ पुष्पक विमान से अयोध्या भी गई थी. “आनंद रामायण” में भी यही बात कही गई है. बाद में जब सीता फिर लंका आईं तो उन्होंने वहां विभीषण की पत्नी शरमा से त्रिजटा का उसी तरह खयाल रखने को कहा था, जैसा उसने उनका अशोक वाटिका में रखा था. इंडोनेशिया की “काकाविन रामायण” कहती है कि युद्ध के बाद सीता ने त्रिजटा को काफी मूल्यवान उपहार दिए थे.

क्या हनुमान से हुई थी त्रिजटा की शादी
थाई रामायण “रामाकीएन” में कहा गया है कि हनुमान ने विभीषण की बेटी त्रिजटा से शादी की थी. थाईलैंड में विभीषण को फिपेक और त्रिजटा को बेंचाकेई कहा जाता है. थाई रामायण कहती है कि हनुमान के साथ शादी से त्रिजटा को एक बेटा असुरपद हुआ था. यद्यपि वो राक्षस था लेकिन उसका सिर बंदर जैसा था.

रामायण के युद्ध कांड में ये कहा गया है कि रावण ने पुष्पक विमान से खासतौर पर त्रिजटा को सीता के साथ युद्धस्थल पर भेजा था ताकि वो नागपाश में बंधे राम-लक्ष्मण को देख सके. इसके अलावा अशोक वाटिका में भी लाल साड़ी में त्रिजटा और सीता जी को इस प्राचीन पेंटिंग में दिखाया गया है

रामायण के मलय वर्जन के अनुसार, युद्ध के बाद विभीषण ने हनुमान से अनुरोध किया कि वो उनकी बेटी से शादी कर लें. यहां त्रिजटा को सेरी जाती के रूप में जाना जाता है. हनुमान सहमत हो गए लेकिन उनकी एक शर्त थी. उनका कहना था कि वो इस शादी में त्रिजटा के साथ केवल एक महीने ही रहेंगे. इसके बाद हनुमान अयोध्या चले गए. त्रिजटा ने एक बेटे को जन्म दिया. जिसे हनुमान तेगनग्गा (असुरपद) कहा जाता है. जावा औऱ सूडान में रामायण के कठपुतली नाटकों में त्रिजटा को हनुमान की पत्नी के तौर पर दिखाया जाता है.

बनारस में त्रिजटा का मंदिर
वाराणसी में त्रिजटा का एक मंदिर है, जो यहां के प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर के करीब है. यहां ये मान्यता है कि त्रिजटा लंका से सीता के साथ जब पुष्पक विमान से अयोध्या जा रही थी तो सीता ने उससे कहा कि अयोध्या में त्रिजटा को राक्षसी होने के कारण जाने की अनुमति नहीं मिलेगी.

इसके बाद सीता ने सुझाव दिया कि उसे वाराणसी चले जाना चाहिए, जहां उसको मोक्ष मिल जाएगा. फिर उसकी पूजा वहां एक देवी के रूप में की जाएगी.अब यहां मंदिर में त्रिजटा की रोज पूजा होती है. महिलाएं इस मंदिर में अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए आती हैं. यहां त्रिजटा को मूली और बैंगन का चढ़ावा चढ़ाया जाता है.

इसी तरह त्रिजटा का एक मंदिर उज्जैन में भी है, जो बालवीर हनुमान मंदिर परिसर में है. यहां देवी की तीनदिनों की विशेष पूजा होती है, जो कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होती है. तेलुगु में सीता पुराणमु रामासामी चौदारी में त्रिजटा को विभीषण औऱ गंधर्व शरमा की बेटी बताया गया है.