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महाकाल धाम और व्यापारी रुद्रवर्धन की कथा

व्यापारविमोचन: व्यापारी रुद्रवर्धन की कथा विनाशवृत्तः संवत् 1321 — रत्नग्राम के सुप्रिय व्यापारी रुद्रवर्धन ने वस्त्र–मसालों के व्यापार में अपना सर्वस्व लगा दिया। बड़े कर्ज़ और तीव्र प्रतिस्पर्धा के कारण उसका घर-बार दहक उठा। मित्र ही विश्वासघात कर गए; बाजार में नामोनिशान तक मिटने को आया। रुद्रवर्धन स्वयं भी निराशा की अंधेरी गहराइयों में धंस चुका था। श्लोकः (शार्दूलविक्रीट, १९ मात्राः) व्यपाद्य भावत्यथ महाप्रयासो दूरीभवतः । केन कर्मणा नश्यति वणिज्यं? कर्मश्चैव रुद्रवत् ॥ दिव्यस्वप्ननिर्देशः एक संध्या, जब रुद्रवर्धन सकरा कर्ज़ चुकाने हेतु चित्त-बेताल बैठा, तब स्वप्न में महाकाल ने वरुणागपरिधान...