Other Articles

महाकाल धाम और व्यापारी रुद्रवर्धन की कथा

6views

व्यापारविमोचन: व्यापारी रुद्रवर्धन की कथा

विनाशवृत्तः

संवत् 1321 — रत्नग्राम के सुप्रिय व्यापारी रुद्रवर्धन ने वस्त्र–मसालों के व्यापार में अपना सर्वस्व लगा दिया।

बड़े कर्ज़ और तीव्र प्रतिस्पर्धा के कारण उसका घर-बार दहक उठा।
मित्र ही विश्वासघात कर गए; बाजार में नामोनिशान तक मिटने को आया।
रुद्रवर्धन स्वयं भी निराशा की अंधेरी गहराइयों में धंस चुका था।

श्लोकः (शार्दूलविक्रीट, १९ मात्राः)
व्यपाद्य भावत्यथ महाप्रयासो दूरीभवतः ।
केन कर्मणा नश्यति वणिज्यं? कर्मश्चैव रुद्रवत् ॥

दिव्यस्वप्ननिर्देशः

एक संध्या, जब रुद्रवर्धन सकरा कर्ज़ चुकाने हेतु चित्त-बेताल बैठा, तब स्वप्न में महाकाल ने वरुणागपरिधान धरकर प्रकट होकर कहा—

ALSO READ  एकश्लोकी दुर्गा

रुद्रवर्धने! विजयस्य मूलं अर्चना।
अमलेश्वरधाम प्रति यत्नं कुरु चतुस्पदम्॥”**
उदय से पूर्व जागकर उसने संकल्प लिया—“मैं भोर होते ही महाकाल धाम को प्रस्थान करूँगा।”

महाकालधाम अर्चना

रुद्रवर्धन ने खारुन नदी पारकर श्री महाकाल अमलेश्वर धाम पहुँचा। वहाँ उसने पूर्णास्य संध्या—

चतुष्पद अर्चना: चतुर्भुज प्रतिमा पर धूप–दीप–नैवेद्य एवं मंत्रजप।
नंदी-वंदन: नंदीमैत्री थाली में जल–पुष्प–फल अर्पण।
हाकालाष्टकम् पाठ*: आठ छंदों में भक्ति-सूत्रों का पाठ कर यज्ञोपवीत धारण।

वहीँ मंदिर के गर्भगृह में अचानक गर्जना हुई और स्वयंभू ज्योतिर्लिंग जगमगा उठा—रुद्रवर्धन ने दुःखमोह छोड़कर आनंद-वीर्य अनुभव किया।

श्लोकः (विपरीतछन्दः, १९ मात्राः)
तत्र तिष्ठन् महाकालः स्वयंभू प्रकाशितो घनघनः ।
भक्ते रुद्रवर्धने ददौ धन्यं, वणिज्यं च पुनरुद्धृतम् ॥

ALSO READ  महाकाल अमलेश्वर और पांडवों की वनगमन-कालीन साधना

व्यापारपुनरुत्थानम्

वापस घुटने टेककर रुद्रवर्धन ने निम्नानुसार कार्य किए:

सत्कार्य निधि: कर्जदाताओं को पहले चुकाया, जिससे विश्वास लौटा।
नवीन-विपणन: महाकाल-प्रतिक चिन्हों से युक्त वस्त्रों की मालिका आरंभ।
परोपकार: अन्नदाने के माध्यम से जनमानस में श्रृद्धा और वफादारी प्राप्त।

महीनों में उसके व्यापार ने तीसरी बार गति पकड़ी; विदेशों तक उसका नाम फैला।

ऐतिहासिक श्रेष्ठता

वर्षांत तक रुद्रवर्धन ने “अमलेश्वर वस्त्रालय” की प्रतिष्ठा स्थापित की—

दरबार में सुनहरी मुद्रा पर महाकाल-मुद्रा अंकित।
मठों और मन्दिरों में नियमित दान-पूजन।
लोकगीतों में “रुद्रवर्धन महान व्यापारी, महाकाल का परम भक्त” के जयगान।

श्लोकः (त्रिश्चन्द्रछन्दः, २० मात्राः)
महाकाले भक्तिमालां समर्प्य वणिज्यं पुनरुत्थितम् ।
रुद्रवर्धन नाम कीर्तितः, वित्तं च यशश्च दीप्तम् ॥

ALSO READ  अमलेश्वर महाकाल और आदि शंकराचार्य की अद्वैत अनुभूति

उपसंहार
इस कथा से स्पष्ट होता है कि *धैर्य, भक्ति और शुद्ध अनुष्ठान*—विशेषकर महाकाल धाम में अर्चना—कर्जमोचन, व्यापारपुनरुत्थान और ऐतिहासिक कीर्ति दोनों में सिद्ध होता है।