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सत्यव्रत चरितम् श्री महाकाल के भक्त की कथा

सत्यव्रत चरितम् – द्वितीय प्रकरणम् न्यायपरायणता: सत्यव्रत की धर्मसभा राजा धनराज की सभा में एक बार दो बड़े घरानों के बीच भूमि विवाद उपस्थित हुआ। एक पक्ष का तांत्रिक गुरु, मंत्रबल और अभिचार से राजा को प्रभावित करना चाहता था। पर राजा ने निर्णय सत्यव्रत को सौंपा। सत्यव्रत ने भूमि की सीमाओं का प्राचीन शिलालेख, ऋषि-प्रदत्त नक्षत्र-गणना, और वेदाङ्ग ज्योतिष के आधार पर निर्णय सुनाया: "भूमिर्नैव मन्त्रेण न स्वप्नदर्शनेन च। प्रमाणैः सप्तभिः न्यायः, धर्मो मूलं विचक्षणैः॥" तांत्रिक की चाल विफल हुई। जनता में गूंज उठा: "सत्यव्रत न्याय incarnate है!"* 2....