सत्यव्रत चरितम् – द्वितीय प्रकरणम्
न्यायपरायणता: सत्यव्रत की धर्मसभा
राजा धनराज की सभा में एक बार दो बड़े घरानों के बीच भूमि विवाद उपस्थित हुआ। एक पक्ष का तांत्रिक गुरु, मंत्रबल और अभिचार से राजा को प्रभावित करना चाहता था। पर राजा ने निर्णय सत्यव्रत को सौंपा।
सत्यव्रत ने भूमि की सीमाओं का प्राचीन शिलालेख, ऋषि-प्रदत्त नक्षत्र-गणना, और वेदाङ्ग ज्योतिष के आधार पर निर्णय सुनाया:
“भूमिर्नैव मन्त्रेण न स्वप्नदर्शनेन च।
प्रमाणैः सप्तभिः न्यायः, धर्मो मूलं विचक्षणैः॥”
तांत्रिक की चाल विफल हुई। जनता में गूंज उठा:
“सत्यव्रत न्याय incarnate है!”*
2. शास्त्रार्थ – तांत्रिकों के साथ
काशी से आए चार तांत्रिकों ने सत्यव्रत की विद्या को चुनौती दी। वे बोले:
“वेदों की शक्ति निरर्थक है यदि उसमें तंत्र न हो!”
तब सत्यव्रत ने राजसभा में सात दिनी शास्त्रार्थ किया।
पहले दिन उन्होंने वैदिक मन्त्रों की तात्त्विक व्याख्या दी।
दूसरे दिन तंत्र का प्रक्षिप्त इतिहास उजागर किया।
तीसरे दिन पिंगल छन्दशास्त्र, गणित और सङ्ख्यान द्वारा तांत्रिक कालगणना की सीमाएँ बताईं।
चौथे दिन शिवागम से प्रतिपादन किया कि तंत्र स्वयं वेदविनिर्मित है।
पाँचवे दिन तांत्रिकों के किए गए एक अभिचार प्रयोग को *”गर्भकपाली स्तव”* द्वारा नष्ट कर दिखाया।
एक प्रसिद्ध श्लोक जो उस सभा में कहा गया:*
“न मन्त्रसिद्धिः यदि धर्महीना,
स तन्त्रसिद्धः पुनरप्यधीना।
यो वेदमार्गं बहुमन्यते तु,
तं शुद्धतत्त्वं शिव एव जानात्॥”**
आखिरकार तांत्रिक चरणस्पर्श कर चले गए।
महाकाल का अंतिम दर्शन और समाधि:*
सत्यव्रत जब 64 वर्ष के हुए, उन्होंने तीन बार त्र्यंबकेश्वर से कैलास तक तीर्थ यात्रा की। पर अंत में वे लौटे अपने आराध्य श्री अमलेश्वर महाकालधाम ।
एक रात्रि ध्यान में वे तल्लीन थे, तभी शिव प्रकट हुए — उसी श्रृंगी लिए हुए, जैसे बाल्यकाल में।
श्रीमहाकाल वाणी:
“वत्स सत्यव्रत! तूने मेरी विधा को धर्मरक्षा में लगाया। अब तेरे लिए शिवलोक का द्वार खुला है।”
“तेरा शरीर वहीं विलीन होगा जहाँ तूने प्रथम बार मेरी स्तुति की थी।”
अगले दिन, सत्यव्रत ने अमलेश्वर के मूल वटवृक्ष के नीचे बैठकर स्वयं समाधि ली। उन्होंने एक अंतिम स्तुति गाई, जो आज भी वहाँ गाई जाती है:
अंतिम स्तुति – “महाकाल समाधि स्तोत्रम्” (स्वर में)
त्वं कालकालो भुवनैकनाथः,
त्वं मे प्रपन्नस्य कृपाऽवतारः।
त्वद्भक्तिरेषा मम जीवनेऽस्तु,
देहं ममाद्यात्मनि लीनमस्तु॥
विरासत:
आज भी महाकाल वट समाधि स्थल अमलेश्वर में एक तीर्थ है।
राजशास्त्र और न्यायशास्त्र में एक “सत्यव्रतीय विधि” अब भी वर्णित होती है।