Vastu

वास्तु और संतानहीनता

261views

ऐसा कौन है जो संतान नहीं चाहता। संतति परम सुखों में से एक है। भारतीय संस्कृति में विवाह का एक मुख्य कारण वंश वृद्धि भी है किंतु कई बार अनेक प्रयास के बावजूद भी दंपत्ति को इस सुख से वंचित रहना पड़ता है। इसके चिकित्सीय कारण और निवारण भी हैं परन्तु कई बार चिकित्सीय उपायों के बाद भी गर्भ नहीं ठहरता या गर्भपात हो जाता है। कई बार तो सभी जांचें सही आने पर चिकित्सा विज्ञान में गर्भ न ठहरने का कोई कारण पता नहीं चलता। ज्योतिष में संतान का भाव पंचम स्थान एवं इसका कारक बृहस्पति ग्रह है।

यदि पंचम स्थान, पंचमेश या बृहस्पति पीड़ित हो तो संतान होने में बाधा होती है। इसी प्रकार, सप्तमांश वर्ग कुंडली में यदि प्रथम, पंचम और नवम स्थान में शनि, बुध, शुक्र में से 2 ग्रह हों तो संतान होने की सम्भावना कम होती है अथवा संतान विलंब से होती है। दंपत्ति की कुंडली से बीज और क्षेत्र स्फुट को देखकर गर्भ धारण में बाधा और उसकी सम्भावना को बताया जा सकता है। कई बार कुंडली में पितृ दोष होने पर भी संतान होने में बाधा आती है जिसका समय रहते निवारण करा लेना चाहिए।

कई बार संतान न होने का कारण पुरुषों में नपुंसकता, जननांग की बीमारी, यौन रोग और महिलाओं में गर्भाशय के रोग, माहवारी का अनियमित होना,गयनोकोलॉजिकल समस्या, सेक्स से अरुचि भी होती है। वास्तु में पूर्व दिशा सूर्य की है। यह वास्तुपुरुष का मुँह है तथा उत्तर-पूर्व दिशा वास्तु पुरुष का मस्तिष्क है। यदि भवन के पूर्व/उत्तर-पूर्व में वास्तु दोष हो, यह स्थान भारी हो, यहाँ कबाड़ हो अथवा उत्तर-पूर्व में शौचालय हो तो यह संतानहीनता का एक कारण है। यदि घर का पूर्व भाग पश्चिम से अधिक ऊँचा हो अथवा घर से दूषित जल का निकास दक्षिण-पश्चिम दिशा में हो तो भी संतान होने में विलंब होता है।

इसी प्रकार दक्षिण-पूर्व में बना मुख्य द्वार अथवा सबमर्सिबल, हैंड पंप, बोरिंग या अंडरग्राउंड वाटर टैंक का दक्षिण-पूर्व में होना संतानहीनता का कारण हो सकता है।

घर में लगा फल देने वाला पेड़ संतानहीनता का कारण बनता है। उसे घर के बाहर ही लगाएं। घर के मुख्य द्वार की चैखट कुबड़ी हो जाये तो ये भी संतान उत्पत्ति में बाधा का संकेत करती है अतः इसे सही करा ले।

दक्षिण-पूर्व, जो कि अग्नि की दिशा है, यहाँ शौचालय होना जननांग की बीमारी तथा इस भाग का कटा होना सेक्स में अरुचि देता है। दक्षिण-पूर्व में मौजूद वास्तु दोष गर्भाशय के रोग देते हैं एवं गर्भपात का कारण भी बनते हैं। पश्चिम दिशा में क्रैक होना यौन रोग देता है। उत्तर-पश्चिम का कटा होना गर्भाशय के रोग तथा माहवारी की समस्या देता है। रसोई का दक्षिण दिशा में होना भी गायनोकोलॉजिकल समस्या उत्पन्न करता है। यदि संतान होने की उम्र में ये वास्तु दोष मौजूद हो तो इन रोगों की वजह से संतान प्राप्ति में बाधा बनी रहेगी।

उत्तर-पश्चिम में हो, तो गर्भ धारण करने में परेशानी आएगी अथवा बार-बार गर्भपात का खतरा बना रह सकता है। इसी प्रकार यदि घर की दीवारों में बहुत सारे झरोखे हां अथवा महिला पश्चिम की तरफ सिर और पूर्व की तरफ पैर करके सोये तो भी गर्भपात का खतरा रहता है।

यदि समय रहते इन ज्योतिषीय एवं वास्तु दोष को समाप्त कर दिया जाये तथा संतान गोपाल मंत्र का जाप किया जाये, संतान गोपाल यंत्र को घर में स्थापित किया जाये, संतान गणपति की उपासना की जाये तो संतान पाने की इच्छा को पूरा किया जा सकता है। यदि गुरुवार को दम्पत्ति व्रत रखे एवं नित्य श्रद्धा से पारद शिवलिंग का अभिषेक करे तो भी संतति की इच्छा पूरी होती है।

यहां संतानहीनता का अर्थ, प्रयास के बाद भी संतान न होना, संतान होके उसकी मृत्यु हो जाना, पुत्र न होना अथवा संतान का बिगड़ जाना शामिल है। अंततः वास्तु केवल एक निर्णायक कारक नहीं है जातक की कुंडली और उसमें चल रही दशाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।