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सफला एकादषी का व्रत पौष माह की कृष्णपक्ष की एकादषी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा का विधान है। एकादषी का व्रत रखने वाले दषमी के सूर्यास्त से भोजन नहीं करते। एकादषी के दिन ब्रम्हबेला में भगवान कृष्ण की पुष्प, जल, धूप, अक्षत से पूजा की जाती है। इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगता है। यह ब्रम्हा, विष्णु, महेष त्रिदेवों का संयुक्त अंष माना जाता है। यह अंष अच्युत के रूप में प्रकट हुआ था। यह सफलता देने वाला व्रत माना जाता है। एकादषी के व्रत में कोई भी अनाज, मसाले का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सिर्फ एक समय फलाहारी भोजन करना चाहिए। एकादषी के व्रत के उपरांत द्वादषी को स्नान तथा पूजन के उपरांत एक व्यक्ति का पूर्ण आहार के बराबर खाद्य सामग्री का दान करना चाहिए। उसके उपरांत अपने व्रत का पारण करना चाहिए। इस एकादषी व्रत को फल से किया जाता है। इसलिए इसे सफला एकादषी कहते हैं। मान्यता है कि भगवान को चढ़ाये गए फल व्यक्ति के जीवन में सभी मनोरथ को पूर्ण करने वाले होते है