वट सावित्री व्रत: अमावस्या या पूर्णिमा के 3 दिन पहले से शुरू होता है व्रत, पति की उम्र बढ़ती है और वैवाहिक जीवन में सौभाग्य बढ़ेगा
हिंदू धर्म की परंपराओं में ज्यादतर व्रत और त्योहार महिलाओं के लिए ही है। जिनको करने से पति की उम्र बढ़ती है और वैवाहिक जीवन में भी सुख और सौभाग्य बढ़ता है। इनमें वट सावित्री व्रत महत्वपूर्ण है। इसमें बरगद यानी वट की पूजा की जाती है और 3 दिनों तक व्रत रखा जाता है। जो कि इस बार 22 मई, शुक्रवार को किया जाएगा।
- ये व्रत उत्तर भारत में ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को किया जाता है। वहीं देश के कुछ हिस्सों में इसी महीने की पूर्णिमा पर ये व्रत किया जाता है। वट सावित्री व्रत खासतौर से मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र में किया जाता है। वहीं दक्षिण भारतीय विवाहित महिलाएं विशेष रूप से तमिलनाडु और कर्नाटक में करादाइयन नंबू के नाम से ये व्रत करती हैं।
अमावस्या या पूर्णिमा के 3 दिन पहले से शुरू होता है व्रत
वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा या अमावस्या के 3 दिन पहले से ही शुरू हो जाता है। ये व्रत त्रयोदशी तिथि यानी किसी भी पक्ष के तेरहवें दिन से शुरू होता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि सावित्री ने भी अपने पति के जीवन के लिए लगातार 3 दिनों तक व्रत रखा था।
- पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि वटवृक्ष के मूल यानी जड़ों में भगवान शिव, मध्य में भगवान विष्णु और अग्रभाग में ब्रह्माजी रहते हैं। इसीलिए वट वृक्ष यानी बरगद को देव वृक्ष भी कहा गया है। इनके साथ देवी सावित्री का वास भी इसी पेड़ में माना जाता है।
सौभाग्य के लिए करते हैं शिव-पार्वती और सावित्री की पूजा
ज्येष्ठ महीने में ये व्रत किया जाता है। इस व्रत के एक दिन पहले महिलाएं मेहंदी लगाती हैं और सौलह श्रंगार की तैयारियां करती हैं। ऐसा करने के पीछे वैवाहिक जीवन में सौभाग्य और पति की लंबी उम्र पाने की कामना होती है। व्रत वाले दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफाई कर के नहाती हैं। इसके बाद पूजा की तैयारियों के साथ नैवेद्य बनाती हैं। फिर बरगद के पेड़ के नीचे भगवान शिव-पार्वती और गणेश की पूजा करती हैं। इसके बाद उस पेड़ को पानी से सींचती हैं। फिर पेड़ पर सूती धागा लपेटती हैं। श्रद्धानुसार कुछ महिलाएं 11 या 21 बार पेड़ की परिक्रमा के साथ धागा लपेटती हैं। कुछ महिलाएं 108 परिक्रमा भी करती हैं।
पौराणिक कथा: बरगद के नीचे ही मिला था सावित्री के पति को जीवन
सावित्री पौराणिक ग्रंथों के अनुसार एक पतिव्रता स्त्री थी जिसने यमराज से लड़कर अपने पति के जीवन की रक्षा की थी उसे पुनर्जिवित किया था। इसके लिए सावित्री ने बिना पानी और न कुछ खाए 4 दिन तक पति के प्राणों के लिए तपस्या की थी। बरगद के नीचे ही पति को जीवन मिलने के बाद उसी पेड़ के फूल खाकर और जल पीकर सावित्री ने अपना उपवास पूरा किया था। इसलिए तब से बरगद को जीवन देने वाला पेड़ मानकर उसकी पूजा की जाती है। सावित्री के तप को ध्यान में रखकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना से सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर के ये व्रत रखती है।