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जानें,रोग के हिसाब से कौन से रत्न पहनना चाहिए…

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रोग और रत्न

भारतीय ज्योतिष विद्वानों ने अपनी खोज और अनुसन्धान के आधार पर सिद्ध किया है कि रत्न धारण करने से विभिन्न रोग शान्त हो जाते हैं। डाक्टरी चिकित्सा भी कुछ प्रमुख रोगों के शमनार्थ नीचे दी गई रत्न व्यवस्था का उपयोग किया जा सकता है-

श्वास विकान – श्वास,दमा,खांसी,बेचैनी,धड़कन जैसे पुराने रोगों में पन्ना धारण करने से व्यापक लाभ होता है। इसका यह मतलब नहीं कि आप केवल रत्न ही धारण करें और रोग की चिकित्सा न करें। परहेज़,संयम,बर्तने से रोग शान्त होता है। असंयम,कुपथ और प्राकृति विरूद्ध चर्चा करते हुए कोई रोगी लाभ उठाना चाहे तो वह निराश ही होगा।

वीर्य दोष- जो लोग किसी भी प्रकार के वीर्य दोष,धातु,शीघ्रपतन,प्रमेह,दौर्बल्य,क्षीणता,नपुंसकता आदि से पीड़ित हैं,उनके लिए हीरा धारण करना अत्यन्त लाभदायक है।

मिरगी – मुर्छा,भय,भ्रम,प्रलाप,अचेतनता,दौरी (मिरगी,हिस्टीरिया) जैसे रोगों के लिए मोती रत्न धारण करने से लाभ होता है।

पाचन विकार – पेट,लिवर जिगर,गुर्दे आदि की खराबी में अर्थात पाचन क्रिया खराब होने की दशा में ‘पुखराज‘ रत्न धारण करना लाभदायक है। पुखराज धारण करने से यकृत संस्थान मंे सुधार होता है।

हृदय रोग –  घबराहट, बेचैनी, धड़कन,भय,भ्रम,वृक्ष पीड़ा,कमज़ोरी,याद्दाशत कम होना,श्वास वेेग,रक्तचाप आदि विकार हृदय दोष को उत्पन्न होते हैं। ऐसी हालत में माणिक्य और मोती धारण करने से हृदय रोगों का शमन होता हैं।

रक्त क्षीणता – मानव शरीर में रक्त ही जीवन का आधार है। अगर रक्त शुद्ध नहीं,अथवा यह पर्याप्त नहीं है इसकी वृद्धि नहीं हो रही तो व्यक्ति रोगी,निस्तेज,शिथिल हो जाता है और अन्यतः मृत्यु को प्राप्त होता है। अतः खून की कमी से छुटकारा पाने के लिए ‘मुंगा‘ रत्न धारण करना चाहिए।

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