आस्था और अन्धविश्वास का ज्योतिषीय नजरिया….
आस्था और अन्धविश्वास का ज्योतिषीय नजरिया….
भगवान की कृपा के कारण ही सब अपनी जगह पर अडिग है। अब आप इसे शिव की कृपा मानें या जो भी हो इन सभी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है। किन्तु हमारे देश में आस्था जीवन का आधार है…इस के द्वारा न केवल गाँव के अनपढ बल्कि उच्च शिक्षित लोग जो अपने आप को नास्तिक बताते हैं वे भी आस्था और अन्धविश्वास में विष्वास करते दीखते है….ये देखने में तो बहुत ही सामान्य बात लगती है किन्तु यदि हम इसके मूल में जाये और इसे ज्योतिषीय नजरिये से देखे तो समझ में आता है की किसी भी जातक में आस्था या विश्वास कब अन्धविश्वास में बदल जायेगा इसकी गणना उस जातक की कुंडली के नवम भाव से देखा जाता है यदि नवम भाव और तीसरा भाव कमजोर, नीच या क्रूर ग्रहों से पापाक्रांत हो तो व्यक्ति परेशानी या हताशा की स्थिति में आस्था से अंधविश्वास की राह में चला जाता है… यदि कोई व्यक्ति जरूरत से ज्यादा अंधविष्वासी हो तो उसके तीसरे तथा नवम स्थान का अंकलन कर उसके अनुरूप उपाय करने से इन अंधविष्वासों से छुटकारा पाया जा सकता है….




