भानुसप्तमी- सप्तमी का श्राद्ध –
भाद्रपद की पूर्णिमा एवं आष्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक का समय पितृपक्ष कहलाता है। इस पक्ष में मृतक पूर्वजो का श्राद्ध किया जाता है। पितृपक्ष में मरण तिथि को श्राद्ध किया जाता है। सप्तमी का श्राद्ध भानुसप्तमी के नाम से किया जाता है। जिसमें श्राद्धकर्म करने से सूर्यग्रहण में किए गए पुण्य के बराबर फल मिलता है और आने वाले वंष को शारीरिक कष्टो से छुटकारा मिलकर स्वास्थ्य एवं समृद्धि की प्राप्ति का योग बनता है। किसी भी प्रकार से शारीरिक या किसी बीमारी से मृत्यु को प्राप्त पितरों के शारीरिक कष्टो की निवृत्ति और उसप्रकार के शारीरिक कष्ट से आने वाले वंष की रक्षा हेतु भानुसप्तमी का श्राद्ध करने का विधान वेदों में है। इस दिन दीपक, कपूर, धूप, लालपुष्प और चावल, शक्कर से सूर्य को गंगाजल का अध्र्य देते हुए सूर्य पुराण का पाठ कर दान देने से चर्मरोग पंगुपन या मूकपन से मुक्ति प्राप्त होती है।