
भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में चक्र मानव शरीर के सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र माने जाते हैं। योग, तंत्र, आयुर्वेद और ज्योतिष—चारों में चक्रों का विशेष स्थान है। ज्योतिष के अनुसार मनुष्य के जीवन में होने वाली मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक घटनाएँ ग्रहों की स्थिति से जुड़ी होती हैं, और ये ग्रह सात प्रमुख चक्रों के माध्यम से हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। चक्रों को समझना केवल योग या ध्यान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जानना भी है कि कौन-सा ग्रह किस चक्र को प्रभावित करता है, किस चक्र के असंतुलन से जीवन में कैसी समस्याएँ आती हैं और उन्हें कैसे संतुलित किया जा सकता है। हम ज्योतिष के अनुसार सातों चक्रों का विस्तृत अध्ययन करेंगे।
1. मूलाधार चक्र (Muladhara Chakra)
स्थान: रीढ़ की हड्डी का निचला सिरा (गुदा के पास)
रंग: लाल
तत्व: पृथ्वी
बीज मंत्र: लं (LAM)
ज्योतिषीय संबंध
मूलाधार चक्र का संबंध मुख्य रूप से मंगल ग्रह से माना जाता है। मंगल ऊर्जा, साहस, शक्ति और जीवटता का प्रतीक है। कुछ आचार्य इसमें शनि का प्रभाव भी मानते हैं, क्योंकि यह स्थिरता और जीवन की नींव से जुड़ा है।
प्रभाव और गुण
- जीवन की मूल आवश्यकताएँ: भोजन, वस्त्र, निवास
- शारीरिक सुरक्षा और स्थिरता
- आत्मविश्वास और साहस
असंतुलन के लक्षण
- भय, असुरक्षा और चिंता
- आर्थिक समस्याएँ
- आलस्य या अत्यधिक क्रोध
- पैरों, घुटनों या कमर से जुड़ी समस्याएँ
संतुलन के उपाय (ज्योतिष अनुसार)
- मंगल को मजबूत करने के लिए मंगलवार को हनुमान जी की पूजा
- लाल रंग का प्रयोग
- भूमि से जुड़ा कार्य, नंगे पाँव घास पर चलना
- मंगल मंत्र: ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः
2. स्वाधिष्ठान चक्र (Swadhisthana Chakra)
स्थान: नाभि के नीचे (जनन अंगों के पास)
रंग: नारंगी
तत्व: जल
बीज मंत्र: वं (VAM)
ज्योतिषीय संबंध
इस चक्र का संबंध शुक्र ग्रह से माना जाता है। शुक्र प्रेम, कामना, सौंदर्य, रचनात्मकता और भोग-विलास का कारक है।
प्रभाव और गुण
- भावनाएँ और इच्छाएँ
- यौन ऊर्जा और प्रजनन शक्ति
- रचनात्मकता और आनंद
असंतुलन के लक्षण
- भावनात्मक अस्थिरता
- संबंधों में समस्या
- अत्यधिक भोग या कामवासना
- मूत्र व प्रजनन अंगों से जुड़ी बीमारियाँ
संतुलन के उपाय
- शुक्रवार को लक्ष्मी या दुर्गा पूजा
- स्वच्छता और संयम
- शुक्र मंत्र: ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः
- जल तत्व से जुड़ा ध्यान
3. मणिपुर चक्र (Manipura Chakra)
स्थान: नाभि क्षेत्र
रंग: पीला
तत्व: अग्नि
बीज मंत्र: रं (RAM)
ज्योतिषीय संबंध
मणिपुर चक्र का संबंध सूर्य ग्रह से है। सूर्य आत्मबल, नेतृत्व, आत्मसम्मान और शक्ति का प्रतीक है।
प्रभाव और गुण
- आत्मविश्वास और निर्णय शक्ति
- पाचन तंत्र
- नेतृत्व क्षमता
असंतुलन के लक्षण
- आत्मविश्वास की कमी
- क्रोध या अहंकार
- पाचन संबंधी रोग
- जीवन में दिशा का अभाव
संतुलन के उपाय
- प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य
- आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ
- सूर्य मंत्र: ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः
- पीले रंग का प्रयोग
4. अनाहत चक्र (Anahata Chakra)
स्थान: हृदय क्षेत्र
रंग: हरा
तत्व: वायु
बीज मंत्र: यं (YAM)
ज्योतिषीय संबंध
इस चक्र का संबंध चंद्र ग्रह से माना जाता है। चंद्र मन, भावना, करुणा और मातृत्व का कारक है।
प्रभाव और गुण
- प्रेम और करुणा
- भावनात्मक संतुलन
- क्षमा और दया
असंतुलन के लक्षण
- भावनात्मक दुख
- अवसाद और अकेलापन
- हृदय व फेफड़ों से जुड़ी समस्याएँ
संतुलन के उपाय
- सोमवार को शिव पूजा
- चंद्र मंत्र: ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्राय नमः
- ध्यान और प्राणायाम
- हरे रंग का प्रयोग

5. विशुद्ध चक्र (Vishuddha Chakra)
स्थान: कंठ (गला)
रंग: नीला
तत्व: आकाश
बीज मंत्र: हं (HAM)
ज्योतिषीय संबंध
विशुद्ध चक्र का संबंध बुध ग्रह से है। बुध वाणी, बुद्धि, संचार और तर्क का कारक है।
प्रभाव और गुण
- अभिव्यक्ति और संवाद
- सत्य और स्पष्टता
- बौद्धिक क्षमता
असंतुलन के लक्षण
- बोलने में डर
- झूठ या भ्रम
- गले, थायरॉयड की समस्या
संतुलन के उपाय
- बुधवार को गणेश पूजा
- बुध मंत्र: ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः
- सत्य भाषण का अभ्यास
6. आज्ञा चक्र (Ajna Chakra)
स्थान: दोनों भौंहों के बीच
रंग: जामुनी/नील
तत्व: मन
बीज मंत्र: ॐ (AUM)
ज्योतिषीय संबंध
आज्ञा चक्र का संबंध गुरु (बृहस्पति) से माना जाता है। गुरु ज्ञान, विवेक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन का प्रतीक है।
प्रभाव और गुण
- अंतर्ज्ञान और विवेक
- निर्णय क्षमता
- आध्यात्मिक दृष्टि
असंतुलन के लक्षण
- भ्रम और गलत निर्णय
- ध्यान की कमी
- सिरदर्द और नेत्र समस्या
संतुलन के उपाय
- गुरुवार को विष्णु या बृहस्पति पूजा
- गुरु मंत्र: ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः
- ध्यान और मौन साधना
7. सहस्रार चक्र (Sahasrara Chakra)
स्थान: सिर का शीर्ष
रंग: बैंगनी/सफेद
तत्व: चेतना
बीज मंत्र: मौन
ज्योतिषीय संबंध
सहस्रार चक्र का संबंध केतु (और कुछ परंपराओं में राहु) से जोड़ा जाता है। केतु मोक्ष, वैराग्य और आत्मज्ञान का प्रतीक है।
प्रभाव और गुण
- आत्मबोध
- मोक्ष और ब्रह्मज्ञान
- परम शांति
असंतुलन के लक्षण
- जीवन में उद्देश्यहीनता
- मानसिक अशांति
- आध्यात्मिक भ्रम
संतुलन के उपाय
- केतु मंत्र: ॐ कें केतवे नमः
- ध्यान और साधना
- अहंकार का त्याग
निष्कर्ष ज्योतिष के अनुसार सातों चक्र और नौ ग्रह गहराई से जुड़े हुए हैं। जब ग्रह अशुभ होते हैं, तो संबंधित चक्र में असंतुलन उत्पन्न होता है और इसका प्रभाव हमारे जीवन पर दिखाई देता है। यदि हम ग्रहों के साथ-साथ चक्रों को भी संतुलित करें—ध्यान, मंत्र, पूजा और जीवनशैली के माध्यम से—तो जीवन में सकारात्मक परिवर्तन निश्चित रूप से आता है। सात चक्रों की जागृति न केवल ज्योतिषीय दोषों को शांत करती है, बल्कि व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से पूर्ण बनाती है।





