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गरुड़ पुराण की रचना किसने की? जानिए इसके पीछे छिपी रहस्यमयी कथा…

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हिंदू धर्म के अठारह महापुराणों में गरुड़ पुराण का एक विशिष्ट और रहस्यमय स्थान है। यह पुराण केवल धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि जीवन, मृत्यु, कर्म, पुनर्जन्म, मोक्ष, दान, नीति, आयुर्वेद और समाज व्यवस्था का गहन दार्शनिक दस्तावेज भी है। आम जनमानस में गरुड़ पुराण को प्रायः मृत्यु और मृत्यु के बाद की यात्रा से जोड़कर देखा जाता है, किंतु इसका वास्तविक स्वरूप इससे कहीं अधिक व्यापक और गूढ़ है।

गरुड़ पुराण की रचना किसने की?

धार्मिक मान्यताओं और पुराणिक परंपरा के अनुसार गरुड़ पुराण की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी।

महर्षि वेदव्यास को सभी पुराणों का संकलनकर्ता माना जाता है। उन्होंने वेदों का विभाजन किया, महाभारत की रचना की और अठारह महापुराणों को सुव्यवस्थित रूप दिया। गरुड़ पुराण भी उन्हीं के द्वारा रचित और संकलित माना जाता है।

हालाँकि, यह ध्यान देने योग्य है कि वेदव्यास स्वयं यह ज्ञान नहीं गढ़ते, बल्कि दैवी ज्ञान को मानव समाज के लिए सरल भाषा और कथा रूप में प्रस्तुत करते हैं।

गरुड़ पुराण नाम क्यों पड़ा?

इस पुराण का नाम गरुड़ इसलिए पड़ा क्योंकि यह ग्रंथ भगवान विष्णु और उनके वाहन गरुड़ के बीच संवाद के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

गरुड़ केवल एक पक्षी नहीं हैं, बल्कि—

  • वे ज्ञान के प्रतीक हैं
  • धर्म और सत्य के वाहक हैं
  • आत्मा को मोक्ष मार्ग तक पहुँचाने वाले माने जाते हैं

गरुड़ की जिज्ञासाएँ और विष्णु के उत्तर ही गरुड़ पुराण की आधारशिला हैं।

गरुड़ पुराण की रचना के पीछे की पौराणिक कथा

एक समय की बात है, गरुड़ जी के मन में गहरी जिज्ञासा उत्पन्न हुई। उन्होंने देखा कि मनुष्य—

  • जन्म लेता है
  • कर्म करता है
  • मृत्यु को प्राप्त होता है

लेकिन मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है, यह रहस्य उन्हें व्यथित करने लगा।

गरुड़ का प्रश्न

गरुड़ जी ने भगवान विष्णु से पूछा:

“हे प्रभु! मृत्यु के बाद जीवात्मा कहाँ जाती है?

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कर्मों का फल कैसे मिलता है?
नरक और स्वर्ग क्या वास्तव में हैं?”

गरुड़ की यह जिज्ञासा केवल व्यक्तिगत नहीं थी, बल्कि संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए थी।

भगवान विष्णु का उपदेश

भगवान विष्णु गरुड़ की भक्ति और करुणा से प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा—\

“गरुड़! मैं तुम्हें वह दिव्य ज्ञान प्रदान करता हूँ,

जो मृत्यु के भय को नष्ट कर देगा
और जीव को धर्म के मार्ग पर ले जाएगा।”

इसके बाद भगवान विष्णु ने विस्तार से समझाया—

  • आत्मा की यात्रा
  • यमलोक का वर्णन
  • कर्मों का लेखा-जोखा
  • नरक और स्वर्ग के प्रकार
  • पुनर्जन्म का सिद्धांत
  • मोक्ष का मार्ग

यही संवाद आगे चलकर गरुड़ पुराण कहलाया।

मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा

गरुड़ पुराण का सबसे प्रसिद्ध और भयावह प्रतीत होने वाला भाग मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा का वर्णन है।

प्राण त्याग के बाद

जब मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होता है—

  • आत्मा शरीर से निकल जाती है
  • यमदूत उसे यमलोक ले जाते हैं
  • उसके कर्मों का लेखा-जोखा खोला जाता है

नरक और उनके प्रकार

गरुड़ पुराण में लगभग 28 प्रमुख नरकों का वर्णन मिलता है, जैसे—

  • तमिस्र
  • अंधतमिस्र
  • रौरव
  • कुंभिपाक

इनका उद्देश्य डराना नहीं, बल्कि कर्म के परिणाम को समझाना है।

क्या गरुड़ पुराण केवल मृत्यु ग्रंथ है?

यह एक बहुत बड़ी भ्रांति है।

वास्तव में गरुड़ पुराण में—

  • आयुर्वेद (रोग और उपचार)
  • दान-धर्म के नियम
  • राजधर्म और समाज नीति
  • स्त्री-पुरुष कर्तव्य
  • भक्ति और ज्ञान योग

जैसे विषय भी शामिल हैं।

गरुड़ पुराण का पाठ कब करना चाहिए?

1. मृत्यु के बाद शोक काल में

यह सबसे प्रचलित परंपरा है।

  • किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद
  • 13 दिन के क्रिया-कर्म (तेरहवीं तक)
  • प्रतिदिन या चुनिंदा अध्यायों का पाठ

क्यों किया जाता है?

  • आत्मा को शांति मिलती है
  • मृतक को अपनी स्थिति का बोध होता है
  • पितृलोक की यात्रा सरल होती है

2. श्राद्ध और पितृ पक्ष में

  • पितृ पक्ष के दिनों में
  • अमावस्या, महालय श्राद्ध पर
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लाभ:

  • पितरों की तृप्ति
  • पितृ दोष शांति
  • वंश में सुख-समृद्धि

3. जीवन में आत्मज्ञान के लिए

यह सबसे उपयुक्त और श्रेष्ठ समय माना गया है।

  • जब व्यक्ति जीवन का उद्देश्य समझना चाहता हो
  • कर्म, मोक्ष और धर्म पर चिंतन के लिए
  • भय दूर करने हेतु

इस समय केवल प्रेतखंड नहीं, बल्कि उपदेश और नीति वाले अध्याय पढ़ने चाहिए।

4. संकट, भय या मानसिक अशांति में

  • मृत्यु भय
  • अकाल मृत्यु का डर
  • बार-बार दुःस्वप्न
  • नकारात्मक ऊर्जा की अनुभूति

गरुड़ पुराण का पाठ मन को स्थिर और जागरूक करता है

5. एकादशी, अमावस्या और प्रदोष काल में

  • एकादशी (विशेषकर वैकुण्ठ एकादशी)
  • अमावस्या
  • प्रदोष काल

इन तिथियों पर गरुड़ पुराण का पाठ विष्णु कृपा दिलाता है।

गरुड़ पुराण का पाठ कब नहीं करना चाहिए?

1. बिना समझ और भय फैलाने के लिए नहीं

  • केवल डराने के उद्देश्य से
  • बच्चों या कमजोर मन वाले लोगों के सामने
  • मनोरंजन या मज़ाक के लिए

ऐसा करने से मानसिक भय और नकारात्मकता बढ़ सकती है।

2. अत्यधिक अशुद्ध अवस्था में नहीं

  • स्नान किए बिना
  • नशे की अवस्था में
  • अपवित्र स्थान पर

गरुड़ पुराण एक पवित्र ग्रंथ है, इसे शुद्धता और सम्मान के साथ पढ़ना चाहिए।

3. शुभ मांगलिक अवसरों पर नहीं

  • विवाह
  • गृह प्रवेश
  • नामकरण
  • मुंडन

इन अवसरों पर गरुड़ पुराण का पाठ वर्जित माना जाता है, क्योंकि ये आनंद और मंगल के अवसर हैं।

4. रात में डरावने अध्याय नहीं

  • प्रेतखंड
  • नरक वर्णन

रात के समय इन अध्यायों का पाठ करने से भय और मानसिक असंतुलन हो सकता है।

5. बिना गुरु मार्गदर्शन के पूर्ण पाठ नहीं

विशेषकर—

  • प्रेतखंड
  • मृत्यु उपरांत यात्रा

इनका अध्ययन किसी ज्ञानी ब्राह्मण या गुरु के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।

गरुड़ पुराण का पाठ कैसे करें? 

  • प्रातः स्नान के बाद
  • साफ स्थान पर बैठकर
  • दीपक और अगरबत्ती जलाकर
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र से प्रारंभ
  • श्रद्धा और एकाग्रता के साथ पाठ
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गरुड़ पुराण का आध्यात्मिक उद्देश्य

गरुड़ पुराण का मूल उद्देश्य है—

मनुष्य को जीवन रहते ही धर्म, सत्य और सदाचार के मार्ग पर प्रेरित करना।

यह ग्रंथ कहता है—

  • कर्म से कोई नहीं बच सकता
  • मृत्यु निश्चित है
  • लेकिन मोक्ष संभव है

यदि मनुष्य—

  • सत्य बोले
  • हिंसा न करे
  • दया और करुणा रखे
  • ईश्वर स्मरण करे

तो वह यम यातना से मुक्त हो सकता है।

गरुड़ और विष्णु का संबंध

गरुड़ केवल विष्णु के वाहन नहीं हैं, बल्कि—

  • उनके परम भक्त हैं
  • धर्म के रक्षक हैं
  • अधर्म के नाशक हैं

गरुड़ पुराण में यह संबंध गुरु-शिष्य जैसा दिखाई देता है, जहाँ गरुड़ प्रश्न करते हैं और विष्णु उत्तर देते हैं।

गरुड़ पुराण का सामाजिक महत्व

प्राचीन काल में गरुड़ पुराण—

  • समाज को नैतिकता सिखाने का साधन था
  • शासकों को न्याय का बोध कराता था
  • आम जन को कर्मफल का ज्ञान देता था

आज भी यह ग्रंथ—

  • मृत्यु के भय को समझने
  • जीवन को सार्थक बनाने
  • आत्मचिंतन करने
  • में सहायक है।

गरुड़ पुराण और मोक्ष

गरुड़ पुराण स्पष्ट करता है कि—

“मोक्ष किसी विशेष जाति, वर्ग या व्यक्ति के लिए नहीं,

बल्कि हर उस आत्मा के लिए है
जो ईश्वर और धर्म के मार्ग पर चलती है।”

भक्ति, ज्ञान और कर्म—तीनों का समन्वय ही मोक्ष का मार्ग है।

निष्कर्ष

गरुड़ पुराण केवल मृत्यु का ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा देने वाला शास्त्र है। इसकी रचना महर्षि वेदव्यास द्वारा की गई, किंतु इसका ज्ञान स्वयं भगवान विष्णु द्वारा गरुड़ को प्रदान किया गया।

यह पुराण हमें सिखाता है कि—

  • मृत्यु अंत नहीं है
  • कर्म सबसे बड़ा सत्य है
  • और मोक्ष ही जीवन का परम लक्ष्य है

यदि मनुष्य गरुड़ पुराण के उपदेशों को जीवन में उतार ले, तो उसका वर्तमान भी सुधर सकता है और भविष्य भी।