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घुटी-घुटी चीखें, हर तरफ सिसकियों की आवाज, रोना-कलपना, चीखना-चिल्लाना। यह भयावह मंजर है जावरा की हुसैन टैकरी का। इस टेकरी के बारे में हमने काफी कुछ सुन रखा था।
सोचा, क्यों न सबसे पहले जायजा लिया जाए इस टेकरी का, जहां भूत-प्रेत भगाने के नाम पर लोगों से नाना प्रकार के खटकर्म कराए जाते हैं। टेकरी पर जाने के लिए हमने सुबह का वक्त चुना। हमारी घड़ी में सुबह के सात बज रहे थे और हम अपनी मंजिल हुसैन टेकरी पर पहुंच चुके थे।
टेकरी का मुख्य द्वार आया ही था कि हमें पागलों की तरह झूमती दो औरतें मिलीं। जमुनाबाई और कौसर बी नामक ये औरतें लगातार अरे बाबा रे… कहते हुए अजीब-अजीब आवाजें निकाल रही थीं। इनकी चीखें सुन अच्छे-अच्छों की घिग्घी बंध जाना स्वाभाविक था।
इनके बारे में ज्यादा जानने के लिए हमने साथ आए लोगों से बातचीत की। जमुनाबाई के पति ने बताया कि पिछले कई दिनों से जमुना का व्यवहार बदल गया था। वह पागलों की तरह हरकतें करती थी। तब गांव के फकीर ने बताया कि जमुना पर डायन का साया है। उसे हुसैन टेकरी ले जाओ।
हम दो हफ्ते पहले उसे यहां लेकर आए हैं। यहां धागा बांधते ही जमुना को हाजिरी (कथित तौर पर उसके अंदर की बला बात करने लगी) आने लगी है (जमुना ने अजीब तरह से चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया)। हमें लगता है कि यहां पांच जुम्मे बिताने के बाद वह ठीक हो जाएगी।
इनसे बातचीत कर हम हजरत इमाम हुसैन के रोजे में दाखिल हुए। वहां का मंजर देख हम भौंचक रह गए। हर तरफ औरतें चीख-चिल्ला रही थीं, अपना सिर पटक रही थीं, धूप से तपते फर्श पर लोट लगा रही थीं, बेडिय़ों से जकड़े आदमी सिसक रहे थे।
इन्सानों से जानवरों की तरह व्यवहार क्या यहां ऐसा ही होता है? बात की तह तक पहुंचने के लिए हमने टेकरी के कार्यकारी अधिकारी तैमूरी साहब से संपर्क किया।
तैमूरी साहब ने बताया कि किसी भी तरह की प्रेत-बाधा से पीडि़त व्यक्ति को यहां के पानी से नहलाया जाता है। उसके बाद वह एक धागा यहां बनी जालियों पर बांधता है और दूसरा अपने गले में। कहते हैं, धागा बांधने के कुछ समय बाद पीडि़त लोग झूमने लगते हैं। ऐसे लोगों को यहां पास बने तालाब में नहाने की हिदायत दी जाती है।
यह सुनकर हमारे कदम खुद-ब-खुद तालाब की तरफ उठ गए। तालाब का मंजर देख हमारी रूह कांप गई। तालाब के नाम पर यहां गंदे पानी का नाला था, जिसमें यहां बनी सराय का मल-मूत्र लगातार आकर मिल रहा था। मानसिक रोगियों की तरह नजर आने वाले ये लोग लगातार इस पानी में नहा रहे थे, कुछ तो कुल्ला तक कर रहे थे।
खुदा जाने इस गंदगी में नहाने से ये लोग ठीक होंगे या बीमार, लेकिन यह सोचने का वक्त किसके पास है। हमने गंदे पानी में खेल रही एक बच्ची सकीना से पूछा बेटा आपको क्या तकलीफ है, आप यहां क्यों नहा रही हो। बच्ची ने मासूमियत से जवाब दिया मेरी मां पर डायन का साया है। मां का असर मुझे भी आ जाएगा, इसलिए नहाती हूं। इतना कहकर बच्ची नाले में कूद गई।
फिर हम सकीना की मां शहबानो से मुखातिब हुए। हमने पूछा सक्कू बीमार पड़ गई तो, मां ने जवाब दिया पिछले चार सालों से तो नहीं पड़ी। चार साल हमें यह शब्द हथौड़े की तरह लगे।
तभी पता चला कि सुबह का पहला लोबान होने वाला है। यह सुनते ही सभी लोगों ने रोजे की तरफ दौड़ लगा दी। रोजा लोगों से ठसाठस भरा था। हर तरफ ऐसे लोग, जिन पर ऊपरी हवा या जादू-टोने का असर था, झूम रहे थे। अजीबोगरीब आवाजें निकाल रहे थे। तभी लोबान शुरू हुआ। लोबान का धुआं लेते ही झूमते हुए लोग एकाएक गिरने लगे। हमें बताया गया कि ऐसे ही इन लोगों का इलाज होता है। ऊपरी हवा से पीडि़त लोगों को सुबह-शाम लोबान लेना बेहद जरूरी है।
इलाज की इस अजीबोगरीब प्रकिया को जानने के बाद हमने यहां के मुतवल्ली नवाब सरवर अली से मुलाकात की। नवाब साहब का कहना था कि हमारे यहां कोई मौलवी, तांत्रिक या पुजारी नहीं हैं। जो कुछ भी होता है, हुसैन साहब की रज़ा से होता है। गंदे पानी से गुसल करने, लोगों को जंजीर से बांधने को वो खुदा की ओर से गंदी हवाओं को मिलने वाली सजा बताते हैं। कहते हैं इससें आम इनसान को कोई तकलीफ नहीं होती, सिर्फ गंदी ताकतों को तकलीफ होती है।
टेकरी का मुख्य द्वार आया ही था कि हमें पागलों की तरह झूमती दो औरतें मिलीं। जमुनाबाई और कौसर बी नामक ये औरतें लगातार अरे बाबा रे… कहते हुए अजीब-अजीब आवाजें निकाल रही थीं। इनकी चीखें सुन अच्छे-अच्छों की घिग्घी बंध जाना स्वाभाविक था।
इनके बारे में ज्यादा जानने के लिए हमने साथ आए लोगों से बातचीत की। जमुनाबाई के पति ने बताया कि पिछले कई दिनों से जमुना का व्यवहार बदल गया था। वह पागलों की तरह हरकतें करती थी। तब गांव के फकीर ने बताया कि जमुना पर डायन का साया है। उसे हुसैन टेकरी ले जाओ।
हम दो हफ्ते पहले उसे यहां लेकर आए हैं। यहां धागा बांधते ही जमुना को हाजिरी (कथित तौर पर उसके अंदर की बला बात करने लगी) आने लगी है (जमुना ने अजीब तरह से चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया)। हमें लगता है कि यहां पांच जुम्मे बिताने के बाद वह ठीक हो जाएगी।
इनसे बातचीत कर हम हजरत इमाम हुसैन के रोजे में दाखिल हुए। वहां का मंजर देख हम भौंचक रह गए। हर तरफ औरतें चीख-चिल्ला रही थीं, अपना सिर पटक रही थीं, धूप से तपते फर्श पर लोट लगा रही थीं, बेडिय़ों से जकड़े आदमी सिसक रहे थे।
इन्सानों से जानवरों की तरह व्यवहार क्या यहां ऐसा ही होता है? बात की तह तक पहुंचने के लिए हमने टेकरी के कार्यकारी अधिकारी तैमूरी साहब से संपर्क किया।
तैमूरी साहब ने बताया कि किसी भी तरह की प्रेत-बाधा से पीडि़त व्यक्ति को यहां के पानी से नहलाया जाता है। उसके बाद वह एक धागा यहां बनी जालियों पर बांधता है और दूसरा अपने गले में। कहते हैं, धागा बांधने के कुछ समय बाद पीडि़त लोग झूमने लगते हैं। ऐसे लोगों को यहां पास बने तालाब में नहाने की हिदायत दी जाती है।
यह सुनकर हमारे कदम खुद-ब-खुद तालाब की तरफ उठ गए। तालाब का मंजर देख हमारी रूह कांप गई। तालाब के नाम पर यहां गंदे पानी का नाला था, जिसमें यहां बनी सराय का मल-मूत्र लगातार आकर मिल रहा था। मानसिक रोगियों की तरह नजर आने वाले ये लोग लगातार इस पानी में नहा रहे थे, कुछ तो कुल्ला तक कर रहे थे।
खुदा जाने इस गंदगी में नहाने से ये लोग ठीक होंगे या बीमार, लेकिन यह सोचने का वक्त किसके पास है। हमने गंदे पानी में खेल रही एक बच्ची सकीना से पूछा बेटा आपको क्या तकलीफ है, आप यहां क्यों नहा रही हो। बच्ची ने मासूमियत से जवाब दिया मेरी मां पर डायन का साया है। मां का असर मुझे भी आ जाएगा, इसलिए नहाती हूं। इतना कहकर बच्ची नाले में कूद गई।
फिर हम सकीना की मां शहबानो से मुखातिब हुए। हमने पूछा सक्कू बीमार पड़ गई तो, मां ने जवाब दिया पिछले चार सालों से तो नहीं पड़ी। चार साल हमें यह शब्द हथौड़े की तरह लगे।
तभी पता चला कि सुबह का पहला लोबान होने वाला है। यह सुनते ही सभी लोगों ने रोजे की तरफ दौड़ लगा दी। रोजा लोगों से ठसाठस भरा था। हर तरफ ऐसे लोग, जिन पर ऊपरी हवा या जादू-टोने का असर था, झूम रहे थे। अजीबोगरीब आवाजें निकाल रहे थे। तभी लोबान शुरू हुआ। लोबान का धुआं लेते ही झूमते हुए लोग एकाएक गिरने लगे। हमें बताया गया कि ऐसे ही इन लोगों का इलाज होता है। ऊपरी हवा से पीडि़त लोगों को सुबह-शाम लोबान लेना बेहद जरूरी है।
इलाज की इस अजीबोगरीब प्रकिया को जानने के बाद हमने यहां के मुतवल्ली नवाब सरवर अली से मुलाकात की। नवाब साहब का कहना था कि हमारे यहां कोई मौलवी, तांत्रिक या पुजारी नहीं हैं। जो कुछ भी होता है, हुसैन साहब की रज़ा से होता है। गंदे पानी से गुसल करने, लोगों को जंजीर से बांधने को वो खुदा की ओर से गंदी हवाओं को मिलने वाली सजा बताते हैं। कहते हैं इससें आम इनसान को कोई तकलीफ नहीं होती, सिर्फ गंदी ताकतों को तकलीफ होती है।
हमने हुसैन टेकरी पर पूरा दिन बिताया। यहां सजदा करने वाले कई लोगों से बातचीत की। कइयों ने बताया कि हुसैन टेकरी पर उनकी अटूट आस्था है। इन लोगों में हिंदू और मुसलमान दोनों ही शामिल थे। कई लोग ऐसे भी थे जो मन्नत पूरी हो जाने के बाद मनौती के लिए तुलादान कर रहे थे। ऐसे ही एक शख्स पवन ने बताया वे आज जो कुछ भी हैं बाबा साहब के ही कारण हैं। बाबा ने ही उन्हें धन-दौलत-शोहरत से नवाजा है। अब वे अपनी बीमार औलाद पर बाबा का करम चाहते हैं।
टेकरी पर पूरा दिन बिताने के बाद हमने महसूस किया कि यहां आने वाले रोगियों में से अस्सी प्रतिशत महिलाएं हैं और ये सभी निम्न वर्ग से संबंधित हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो ऊंची तालीमयाफ्ता होने के बाद भी मानते हैं कि उन पर जादू-टोना किया गया है, बदरूहों का साया है। ऐसे ही एक छात्र हैं इरफान, जो अमेरिका में पढ़ाई करते हैं, लेकिन जादू-टोने के कारण लंबे समय से यहा की सराय में रह रहे हैं। ये दिन-रात रोजों में दुआ मांगते और हुसैन साहब का मातम मनाते हैं। इनका मानना है कि यहां आने के बाद रूहानी सुकून मिलता है