astrologer

जल : एक सम्पूर्ण प्राकृतिक ओषधि

179views

जल जीवन है। इसलिए जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। संसार के सभी प्राणी, वनस्पति आदि जल के बिना नहीं जी सकते अतः जल का महत्व जीवन में विशेष है। जल का प्रयोग पीने में, स्नान करने में विशेष रूप से किया जाता है। इसके फलस्वरूप हमारा स्वास्थ्य ठीक रहता है। जल की उपयोगिता चिकित्सा के क्षेत्र में भी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से स्नान करना अति आवश्यक है। गर्मी के मौसम में दो बार और सर्दी के मौसम में एक बार ताजे पानी से स्नान करने से शरीर में स्फूर्ति आती है, रोम छिद्र खुल जाते हैं, विषैले तत्व नष्ट हो जाते हैं और अन्य तत्व के रोग भी ठीक हो जाते हैं। इस प्रकार पानी के पीने से भी स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव पड़ता है। कब्ज को दूर कर आँता में जमा मल को बाहर निकालता है। कई प्रकार के आंतरिक विकारों को दूर करता है। इसलिए खूब पानी पीना चाहिए। कम पानी पीने वालों को कई प्रकार के रोग हो जाते हैं। स्वस्थ रहने के लिए व्यक्ति को कम से कम दो लीटर पानी अवश्य पीना चाहिए। अधिक पानी पीने वाले व्यक्ति को गुर्दे के रोग की शिकायत नहीं हो सकती है और चेहरे के आभा मंडल का भी विस्तार होता है। जल अपने आप में एक औषधि है। किसी भी प्रकार के रोग में जल का प्रयोग रोग को दूर करने में सहायक होता है। सही मात्रा में प्रतिदिन पानी पीने वाले व्यक्ति की आंखों की रोशनी बढ़ती है। आंखों को पानी से छप्पा मारकर धोना चाहिए। स्वस्थ रहने के लिए पानी का प्रयोग इस प्रकार करें -प्रातःकाल बिस्तर छोड़ने के बाद दो गिलास पानी पीना चाहिए। इससे उदर विकारों में आराम होता है। कब्ज दूर होती है और मल त्याग आसानी से होता है। – खाना खाते समय अधिक पानी नहीं पीना चाहिए। इससे पाचन क्रिया मंद पड़ जाती है। यदि पानी पीना ही पड़े तो घूँट-घँट थोड़ा-थोड़ा पीना चाहिए, ताकि यह खाये गये भोजन में नमी लाए और भोजन सही पच जाए। – प्यास लगने पर आलस न कर पानी अवश्य पीना चाहिए नहीं तो कई प्रकार के रोग लग सकते हैं। जैसे पीलिया, कब्ज, आदि रोगों को दूर करने की शक्ति जल में है जो प्राकृतिक रूप से शरीर का पोषण करता है, जीवन दान देता है। प्राकृतिक चिकित्सा में जहां जल के पीने का महत्व है वहीं जल से स्नान का महत्व भी उतना ही है। स्नान करने से त्वचा में निरोगता, निखार और चमक आती है और चर्बी का बढ़ना भी रूकता है। इसीलिए प्राकृतिक चिकित्सा में कमर के स्नान पर अधिक जोर दिया जाता है। इसको कटि स्नान भी कहते हैं। इ स्नान से पेट की नसं सुचारू रूप से काम करती हैं जिससे उदर संबंधी रोगों से बचा जा सकता है। कटि स्नान करने की विधि इस प्रकार है – एक टब लेकर उसमें ताजा पानी भर लें और स्नान के लिए उसमें इस प्रकार बैठं कि आपके बैठने पर पानी आपकी नाभि तक आ जाए। – जल से भरे टब में नितंब के सहारे बैठना चाहिए पैरों के बल नहीं। दोनों टांगों को बाहर निकाल लें। पैरों को किसी पटरी पर सीधा रखें। – इस तरह शुरू-शुरू में 10 से 15 मिनट तक इसी स्थिति मं बैठे रहें। स्नान की अवधि को आधे घंटे तक बढ़ा सकते हैं। – पश्चात उठकर तौलिए से शरीर को रगड़-रगड़ कर पोंछना चाहिए। कटि स्नान के पश्चात संपूर्ण शरीर स्नान भी कर लें। कटि स्नान में ध्यान रखने योग्य बातें कटि स्नान प्रातःकाल सूर्य उदय से पूर्व करना चाहिए। – जागने के कुछ देर बाद दो गिलास पानी पिएं। यदि हो सके तो नींबू और शहद डालकर पिएं ताकि शौच खुलकर आए। शौचादि के बाद 10-15 मिनट घूमना चाहिए, उपरांत कटि स्नान के लिए बैठें। – कटि स्नान करते समय अंडर वीयर ही पहना होना चाहिए। टांगं और ऊपरी भाग नग्न रखें। – यदि हो सके तो बिल्कुल नग्न अवस्था में ही कटि स्नान करें। – पानी नाभि तक ही रहे। – सर्दी के मौसम में गर्म पानी का प्रयोग करना चाहिए। कटि स्नान के लाभ – कटि स्नान से उदर पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इससे आंतों में नमी आती है जिससे जमा हुआ मल शौच के समय आसानी से बाहर हो जाता है। – पेट नरम रहता है। आँतें सुचारू रूप से कार्यरत होती हैं तो पाचन क्रिया सुचारू रूप से होता है। प्राकृतिक जल स्नान सभी स्त्री पुरुष नित्य स्नान करते हैं परंतु इस प्रकार का स्नान साधारण स्नान कहलाता है क्योंकि इसमें वैज्ञानिक विधि की कमी होती है। स्विमिंग पूल में तैरने की क्रिया एक वैज्ञानिक स्नान व प्राकृतिक है। वैज्ञानिक स्नान वह स्नान होता है जिसमें शरीर की अच्छी तरह कसरत हो और रगड़-रगड़ कर धोया जाए जिससे रक्त संचार ठीक तरह हो सके। प्राकृतिक व वैज्ञानिक स्नान करने में इन बातों का ध्यान रखें। – सदैव ताजे पानी से स्नान करना चाहिए चाहे मौसम कोई भी हो। – वृद्ध व्यक्तियों को जाड़े में गरम पानी से स्नान करना चाहिए क्योंकि ठंडा पानी उनके शरीर में दर्द पैदा कर सकता है। – प्राकृतिक जल से स्नान सर्दी में शरीर को गर्म और गर्मी में ठंडा रखता है और चुस्ती फुर्ती बनी रहती है। – प्राकृतिक जल से स्नान करने से शरीर हल्का हो जाता है। – ताजा और प्राकृतिक जल शरीर को सदैव सुख प्रदान करता है। – प्रकृति की प्रत्येक वस्तु मनुष्य की प्रकृति के अनुसार अपना कार्य करती है। अतः ताजा जल से स्नान में प्रसन्नता का ही अनुभव होता है। – स्नान करते समय सबसे पहले नीचे के अंगों को भिगोना चाहिए, उसके बाद सिर पर पानी डालना चाहिए। इस प्रकार स्नान करने से शरीर की फालतू गर्मी बाहर निकल जाती है। – प्राकृतिक स्नान के लिए टब का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। टब में बैठकर सारे शरीर को अच्छी तरह साफ किया जा सकता है। स्नान के बाद शरीर को रोएंदार तौलिए से कसकर पांछना चाहिए इससे नसों का पोषण होता है। – स्नान ऐसी जगह करनी चाहिए जहां पर ताजी हवा भी रहती है। प्राकृतिक स्नान से लाभ -कई प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है। – स्त्री पुरूष की जननेन्द्रिय संबंधी रोग दूर हो जाते हैं। – कब्ज-बदहजमी, प्रमेह आदि से राहत मिलती है। – इससे शरीर को अतिरिक्त शक्ति मिलती है। – सर्दी में शरीर गर्म और गर्मी के मौसम में शरीर ठंडा रहता है।

ALSO READ  श्री महाकाल धाम अमलेश्वर में पूजा और उत्सव समिति का  प्रमुख संयोजक राज विक्रम जी को नियुक्त किए जानें की बधाई...