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विभिन्न प्रमुख ज्योतिषीय ग्रन्थों वृहत पराशर होरा-शास्त्र, वृहतजातक, जातक तत्व, होरा सार, सारावली, मानसागरी, जातक परिजात आदि विभिन्न-विभिन्न धन योगों का विवरण प्राप्त होता है। परन्तु उनमें मुख्य जो अक्सर जन्मकुंडलियों में पाये जाते हैं तथा फलदायी भी हैं। इस आलेख में हम इन्हीं धन योगों की व्याख्या करने जा रहे हैं-
- भाग्येश बुध से लाभेश मंगल कार्येश शुक्र सुखेश मंगल पंचमेश शुक्र लगनेश शनि धनेश शनि का गोचर से जन्म के बुध के साथ गोचर हो।
- कार्येश शुक्र का लाभेश मंगल सुखेश मंगल लगनेश शनि पंचमेश शुक्र धनेश शनि से गोचर से जन्म के कार्येश शुक्र के साथ गोचर हो।
- लाभेश मंगल का धनेश शनि लगनेश शनि से गोचर से जन्म के मंगल के साथ युति बने।
- लगनेश शनि का सुखेश मंगल धनेश शनि पंचमेश शुक्र से गोचर से जन्म के शनि के साथ योग बने।
- धनेश शनि का सुखेश मंगल पंचमेश शुक्र से योगात्मक रूप जन्म के शनि के साथ बने।
- सुखेश मंगल के साथ पंचमेश शुक्र से गोचर से जन्म के मंगल के साथ योगात्मक रूप बने।
- अगर भाग्येश और षष्ठेस एक ही ग्रह हो।
- मकर लगन की कुंडली मे भाग्येश और षष्ठेश बुध एक ही ग्रह है,यह धन आने का कारण तो बनायेंगे लेकिन अधिकतर मामले मे धनेश,लगनेश,सुखेश,कार्येश के प्रति धन को या तो नौकरी से प्राप्त करवायेंगे या कर्जा से धन देने के लिये अपनी युति को देंगे।
- यदि चन्द्रमा से 6, 7, 8वें भाव में समस्त शुभ ग्रह विद्यमान हों और वे शुभ ग्रह क्रूर राशि में न हों और न ही सूर्य के समीप हों तो ऐसे योग (चन्द्राधियोग) में उत्पन्न होने वाला जातक धन, ऐश्वर्य से युक्त होता है तथा महान बनता है।
- अनफा व सुनफा योग जो चन्द्र से द्वितीय, द्वादश भाव में सूर्य को छोड़कर अन्य ग्रहों की स्थिति द्वारा बनते हैं, जातक अपने पुरुषार्थ से धन को प्राप्त करता है। या करने वाला होता है।
- एक भी शुभ ग्रह केन्द्रादि शुभ, स्थान में स्थित होकर, उच्च का हो व शुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हो तो धनाढ्य तथा राजपुरुष बना देता है।
- लग्नेश द्वितीय भाव में तथा द्वितीयेश लाभ भाव में हो।
- चंद्रमा से तीसरे, छठे, दसवें, ग्यारहवें स्थानों में शुभ ग्रह हों।
- पंचम भाव में चंद्र एवं मंगल दोनों हों तथा पंचम भाव पर शुक्र की दृष्टि हो।
- चंद्र व मंगल एकसाथ हों, धनेश व लाभेश एकसाथ चतुर्थ भाव में हों तथा चतुर्थेश शुभ स्थान में शुभ दृष्ट हो।
- द्वितीय भाव में मंगल तथा गुरु की युति हो।
- गज केसरी योग जिसमें बृहस्पति और चन्द्र का केन्द्रीय समन्वय होता है, धन एवं यश देने वाला होता है।
- धनेश अष्टम भाव में तथा अष्टमेश धन भाव में हो।
- पंचम भाव में बुध हो तथा लाभ भाव में चंद्र-मंगल की युति हो।
- गुरु नवमेश होकर अष्टम भाव में हो।
- वृश्चिक लग्न कुंडली में नवम भाव में चंद्र व बृहस्पति की युति हो।
- मीन लग्न कुंडली में पंचम भाव में गुरु-चंद्र की युति हो।
- कुंभ लग्न कुंडली में गुरु व राहु की युति लाभ भाव में हो।
- चंद्र, मंगल, शुक्र तीनों मिथुन राशि में दूसरे भाव में हों।
- कन्या लग्न कुंडली में दूसरे भाव में शुक्र व केतु हो।
- तुला लग्न कुंडली में लग्न में सूर्य-चंद्र तथा नवम में राहु हो।
- मीन लग्न कुंडली में ग्यारहवें भाव में मंगल हो।
- धनेश और लाभेश केन्द्रों में हो तो भी जातक को धन-लाभ होता है।
- यदि धनेश लाभ भाव में हो तो जातक धनी होता है।
- धन स्थान का स्वामी धन स्थान में, लाभ स्थान का अधिपति लाभ स्थान, धनेश, लाभेश लाभ स्थान में स्वराशि या मित्र राशि का अथवा उच्च का हो तो जातक धनवान होता है।
- यदि जन्मकुंडली में लाभेश और धनेश लग्न में हो तो दोनों मित्र हों तो धन-योग बनता है और यदि लग्न का स्वामी धनेश और लाभेश से युक्त हो तो महाधनी योग बनता है।