Astrologyव्रत एवं त्योहार

सावन की शिवरात्रि और सोमप्रदोष व्रत से करें सारे दोष दूर

163views

पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान शिव की अराधना करने से भगवान उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। साल में एक महीना ऐसा आता है जिसे सावन का महीना कहते और इस महीने में भक्तक भोले बाबा का नाम जपते हैं। प्रति वर्ष 12 शिवरात्रि मनाई जाती है लेकिन सभी में दो शिवरात्रि सबसे खास होती है। जिसमें से महाशिवरात्रि और सावन की शिवरात्रि मनुष्य के सभी पाप को धो देती है। ऐसे में सावन की शिवरात्रि का बड़ा ही महत्व् है क्यों कि इसमें व्रत रखने वालों के पाप का नाश होता है और कुवारें लोगों को मनचाहा वर या वधु मिलता है। इसके साथ ही आज प्रदोष व्रत और वो भी सोमवार मतलब सोमप्रदोष भी है जिसे करने से व्यक्ति के जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. इस व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा सदैव आप पर बनी रहती है. प्रदोष व्रत में भगवान शिव की उपासना की जाती है. माना जाता है कि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के पाप धूल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है.

ALSO READ  Rahu: मानसिक शांति भंग कर सकता है राहु ? जानें इसके बचने के उपाय...

सोम प्रदोष व्रत की विधि –

  • प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए.
  • नित्यकर्मों से निवृ्त होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें.
  • इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है.
  • पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते है.
  • पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार किया जाता है.
  • अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाई जाती है.
  • प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है.
  • इस प्रकार पूजन की तैयारियां करके उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए.
  • पूजन में भगवान शिव के मंत्र ऊँ नम: शिवाय का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए.
ALSO READ  सपने में देखते है सांप ! तो हो सकता है,कालसर्प दोष !



सोम प्रदोष व्रतकथा 

सोम प्रदोष व्रत की पौराणिक व्रतकथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा। एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया।  ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं। अत: सोम प्रदोष का व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए।