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किसी व्यक्ति का विवाह कब होगा, पत्नी कैसी मिलेगी, दाम्पत्य कैसा रहेगा, ये सारे तथ्य उसकी विवाह रेखा मेंं छिपे होते हैं। यह रेखा उसके जीवन मेंं अहम भूमिका निभाती है। इसे प्रणय रेखा व स्नेह रेखा भी कहते हैं। समाज मेंं एक भ्रांति है कि जितनी संख्या मेंं यह रेखा होगी, जातक के उतने ही विवाह होंगे। ऐसे अनेकानेक लोग हैं, जिनकी हथेलीे मेंं एक से अधिक विवाह रेखाएं हैं, किंतु उनका विवाह या तो एक ही बार हुआ, या हुआ ही नहीं। वहीं ऐसे भी अनेक लोग हैं, जिनके हाथ मेंं विवाह रेखा नहीं है, लेकिन उनका विवाह हुआ है और दाम्पत्य जीवन सुखमय रहा है। अत: उक्त मान्यता केवल भ्रम है, भ्रम के सिवा कुछ नहीं। कौन रेखा किस स्थिति मेंं जातक के विवाह पक्ष को किस तरह प्रभावित करेगी इसका विश्लेषण यहां प्रस्तुत है। जिस जातक की प्रणय अर्थात विवाह रेखाएं एक से अधिक हों उसका अपनी पत्नी के प्रति प्रेम गहरा होता है। यदि यह रेखा प्रारंभ मेंं गहरी और आगे चलकर पतली हो तो ऐसे जातक का प्रेम धीरे-धीरे उदासीनता मेंं बदल जाता है इसके विपरीत यदि रेखा पतली से गहरी हो तो प्रेम बढ़ता ही जाता है। इस रेखा पर द्वीप हो तो जातक विवाह करने मेंं सहमत नहीं होता और यदि क्रॉस हो तो विवाह अथवा प्रेम प्रसंग मेंं विघ्न की संभावना रहती है। यदि यह रेखा आगे चलकर दो शाखाओं मेंं बंटे तो जीवनसाथी से अलगाव तो हो सकता है, किंतु तलाक हो यह जरूरी नहीं। रेखा अनेक शाखाओं मेंं बंटे तो प्रेम का अंत समझना चाहिए। यदि किसी जातक की विवाह रेखा दो भागों मेंं बंटे और एक शाखा हृदय रेखा को छूए व्यक्ति तो विवाहेतर संबंध होने की संभावना रहती है। यदि किसी के शुक्र पर्वत पर द्वीप हो और उससे एक रेखा बुध पर्वत पर जाकर समाप्त होती हो तो इस स्थिति मेंं भी विवाहेतर संबंध की संभावना रहती है। यदि कोई रेखा विवाह रेखा से आकर मिले तो वैवाहिक जीवन कष्टमय हो सकता है। यदि विवाह रेखा पर कोई काला धब्बा हो, तो पत्नी का पर्याप्त सुख नहीं मिलता है। रेखाओं का विष्लेषण करते समय यह देखना भी जरूरी होता है कि जातक का हाथ किस पर्वत से प्रभावित है क्योंकि उसके जीवन पर उसके हाथों के विभिन्न पर्वत भी रेखाओं की तरह ही प्रभाव डालते हैं। जिस जातक का शनि पर्वत अधिक स्पष्ट हो उसमेंं विवाह करने की इच्छा प्रबल नहीं होती। यदि चंद्र पर्वत से कोई रेखा आकर विवाह रेखा से मिले तो ऐसा व्यक्ति भोगी और कामासक्त होता है। इस प्रकार रेखाओं के ऐसे बहुत से योग हैं जो किसी व्यक्ति के वैवाहिक जीवन को प्रभावित करते हैं। ये योग यदि अनुकूल हों तो दाम्पत्य सुखमय होता है, अन्यथा उसके कष्टमय होने की प्रबल संभावना रहती है। प्रतिकूल होने की स्थिति मेंं किसी हस्तरेखा विशेषज्ञ से परामर्श लेकर उसमेंं सुधार लाने का प्रयास किया जा सकता है।
हमारे हाथों की अलग-अलग रेखाएं जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे मेंं बताती हैं। विवाह रेखा से वैवाहिक जीवन के भविष्य के निम्नानुसार बातें पता चलती हैं –
1. यदि बुध क्षेत्र के आसपास विवाह रेखा के साथ-साथ दो-तीन रेखाएं चल रही हों तो व्यक्ति अपने जीवन मेंं पत्नी के अलावा और भी स्त्रियों से संबंध रखता है।
2. शुक्र पर्वत पर टेढ़ी रेखाओं की संख्या यदि ज्यादा हैं तो ऐसे व्यक्ति के जीवन मेंं किसी एक स्त्री या पुरुष का विशेष प्रभाव रहता है।
3. यदि प्रारम्भ मेंं विवाह रेखा एक, किन्तु बाद मेंं दो से अधिक रेखाओं मेंं विभक्त हो जाए तो ऐसी स्थिति मेंं व्यक्ति एक साथ कई रिश्तों मेंं रहता है।
4. किसी व्यक्ति के विवाह रेखा मेंं आकर या विवाह रेखा स्थल पर आकर कोई अन्य रेखा मिल रही हो तो प्रेमिका के कारण उसका गृहस्थ जीवन नष्ट होने की संभावना रहती है।
5. यदि प्रणय रेखा आरम्भ मेंं पतली और बाद मेंं गहरी होने का मतलब है कि किसी स्त्री अथवा पुरुष के प्रति आकर्षण एवं लगाव आरम्भ मेंं कम था, किन्तु बाद मेंं धीरे-धीरे प्रगाढ़ होता गया है।
5. यदि प्रणय रेखा आरम्भ मेंं पतली और बाद मेंं गहरी होने का मतलब है कि किसी स्त्री अथवा पुरुष के प्रति आकर्षण एवं लगाव आरम्भ मेंं कम था, किन्तु बाद मेंं धीरे-धीरे प्रगाढ़ होता गया है।
6. किसी की हथेली मेंं विवाह रेखा एवं कनिष्ठका अंगुली के मध्य से जितनी छोटी एवं स्पष्ट रेखाएं होंगी, उस स्त्री या पुरुष के विवाहोपरान्त अथवा पहले उतने ही प्रेम सम्बन्ध होते हैं।
7. विवाह रेखा आपके सुखी वैवाहिक जीवन के बारे मेंं भी बताती है। यदि आपकी विवाह रेखा स्पष्ट तथा ललिमा लिए हुए है तो आपका वैवाहिक जीवन बहुत ही सुखमय होगा।
8. गुरू पर्वत पर यदि क्रॉस का निशान लगा हो तो यह शुभ विवाह का संकेत होता है। यदि यह क्रॉस का निशान जीवन रेखा के नज़दीक हो तो विवाह शीघ्र ही होता है।
हस्तरेखा द्वारा विवाह का समय निर्धारण: हस्त रेखा के आधार पर विवाह का संभावित समय कैसे निकाल सकते हैं। इस पद्धति द्वारा वैवाहिक जीवन के बारे मेंं भविष्य कथन के नियम व विधि का विस्तारपूर्वक वर्णन करें। इस विषय पर भी चर्चा करें कि क्या वर-वधु का मिलान हस्त रेखा से संभव है? हस्तरेखा के आधार पर विवाह का संभावित समय देशकाल की परंपराओं के अनुसार जातक के विवाह की उम्र का अनुमान किया जाना चाहिये। सामान्य नियम यह है कि हृदय रेखा से कनिष्ठिका मूल तक के बीच की दूरी को पचास वर्ष की अवधि मानकर उसका विभाजन करके समय की गणना करनी चाहिये। इस संपूर्ण क्षेत्र को बीच से विभाजित करने पर पच्चीस वर्ष की आयु प्राप्त होती है। यदि इस क्षेत्र को चार बराबर भागों मेंं विभाजित करने के लिये इसके बीच मेंं तीन आड़ी रेखाएं खीच दी जायें तो हृदय रेखा के निकट की पहली रेखा वाले भाग से बचपन मेंं विवाह (लगभग 14 से 18वर्ष की अवस्था मेंं) होता है। दूसरी रेखा वाले भाग से युवावस्था मेंं विवाह (लगभग 21 से 28वर्ष की अवस्था मेंं) होता है। तीसरी रेखा वाले भाग से विवाह लगभग 28से 35 वर्ष की अवस्था मेंं होता है, जबकि चौथे भाग अर्थात् तीसरी रेखा व कनिष्ठिका मूल के बीच वाले भाग से प्रौढ़ावस्था मेंं अर्थात् 35 वर्ष की आयु के बाद विवाह समझना चाहिए। विवाह की उम्र का यथार्थ बोध और समय का अनुमान जीवन रेखा, भाग्य रेखा, सूर्य रेखा व उनकी अन्य प्रभाव रेखाओं के द्वारा अधिक यथार्थ और विश्वसनीय ढंग से होता है।
हस्तरेखा के आधार पर वैवाहिक जीवन: विवाह रेखा को अनुराग रेखा, प्रेम संबंध रेखा, ललना रेखा, जीवन साथी रेखा, आसक्ति रेखा आदि नामों से जाना जाता है। विवाह रेखा के स्थान के बारे मेंं प्राचीन विचारक एकमत नहीं थे। कुछ विचारकों ने शुक्र क्षेत्र की रेखाओं को, तो कुछ ने चंद्र क्षेत्र की रेखाओं को विवाह रेखा के रूप मेंं स्वीकार किया है। किंतु अधिकांश प्राचीन ग्रंथों विवेक विलास, शैव सामुद्रिक, हस्त संजीवन, प्रयोग पारिजात, करलक्खन आदि मेंं हृदय रेखा के ऊपर बुध क्षेत्र मेंं स्थित आड़ी रेशाओं को ही विवाह रेखा माना गया है। बुध क्षेत्र के भीतर आड़ी रेखाओं की तरह हों, वे विवाह की सूचक नहीं, बल्कि बुध क्षेत्र के गुणों मेंं विपरीत या दूषित प्रभाव उत्पन्न करती हैं। करतल के बाहर से आकर बुध क्षेत्र मेंं प्रवेश करने वाली सीधी, स्पष्ट और सुंदर रेखाएं ही सुखद वैवाहिक जीवन का संकेत देती है। यदि विवाह रेखा का आरंभ हृदय रेखा के भीतर से हो या उच्च मंगल क्षेत्र से निकलकर बुध क्षेत्र मेंं चाप खंड की तरह प्रवेश करे तो ऐसे जातक का विवाह अबोध अवस्था मेंं हो जाता है। ऐसे विवाह प्राय: बेमेंल होते हैं जो आगे चलकर अस्थिरता या दुख का कारण बनते हैं।
यदि इस योग के साथ जातक के हाथ मेंं मध्य बुध क्षेत्र मेंं दूसरी स्पष्ट विवाह रेखा मौजूद हो तो दूसरे विवाह की संभावना अधिक रहती है। यदि विवाह रेखा कनिष्ठिका के मूल से निकलकर चाप खंड की तरह बुध क्षेत्र मेंं प्रवेश करें तो जातक को वृद्धावस्था मेंं परिस्थितियों के दबाव मेंं विवाह करना पड़ता है। यदि विवाह रेखा का आरंभ द्वीप चिह्न से हो, तो जातक के विवाह के पीछे कोई गोपनीय रहस्य छिपा होता है। यदि किसी महिला के हाथ मेंं इस प्रकार का योग हो, तो उसको फंसाकर या धोखा देकर, मजबूरी मेंं शादी की जाती है, ऐसे मेंं आरंभिक वैवाहिक जीवन कष्टकर होता है। यदि बाद मेंं रेखा शुभ हो, तो परिस्थितियां सामान्य हो जाती हैं। यदि विवाह रेखा के आरंभ की एक शाखा कनिष्ठिका मूल की ओर जाये और दूसरी शाखा हृदय रेखा की ओर झुक जाये तो पति-पत्नी को आरंभिक वैवाहिक जीवन मेंं एक दूसरे से दूर रहना पड़ता है। यदि आगे जाकर ये दोनों शाखाएं मिल गयी हों तो पति-पत्नी का संबंध पुन: जुड़ जाता है। यदि विवाह रेखा सूर्य क्षेत्र मेंं समाप्त हो, तो जातक को विवाह के कारण प्रतिष्ठा और धन-लाभ होता है।
यदि विवाह रेखा ऊपर की ओर मुड़कर सूर्य रेखा से मिल जाये, तो जातक का जीवनसाथी उच्चकुल का तथा प्रतिभा से संपन्न होता है। ऐसा विवाह जातक के लिये शुभ होता है, किंतु आजीवन जीवन साथी के प्रभाव मेंं रहना पड़ता हैं यदि सूर्य क्षेत्र तक जाने वाली विवाह रेखा नीचे मुड़कर सूर्य रेखा को काट दे, तो जातक का वैवाहिक संबंध उससे निम्न कोटि के व्यक्ति के साथ होता है और इस विवाह के कारण उसकी प्रतिष्ठा को हानि पहुंचती है व दुख उठाना पड़ता है। यदि विवाह रेखा शनि क्षेत्र तक चली जाये, तो यह एक बहुत अशुभ योग माना जाता है। ऐसी स्थिति मेंं जातक अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिये जीवन-साथी को घायल करता है या उसे मार डालता है। यदि इस योग मेंं शनि क्षेत्र पर भाग्य रेखा के अंत मेंं क्रास का चिह्न हो, तो जातक को अपने जीवन-साथी की हत्या के आरोप मेंं मृत्युदंड दिया जाता है।
यदि विवाह रेखा नीचे की ओर मुड़कर हृदय रेखा की ओर झुक जाये, तो इस बात की सूचक है कि जातक के जीवन-साथी की मृत्यु उससे पहले होगी। यदि ऐसी रेखा धीरे-धीरे एक ढलान के साथ नीचे की ओर मुड़ जाये तो, ऐसा समझना चाहिये कि जीवन-साथी की मृत्यु का कारण कोई लंबी बीमारी होगी। ऐसी रेखा के ढलान मेंं यदि क्रॉस चिह्न हो या आड़ी रेखा हो तो मृत्यु अचानक किसी रोग या दुर्घटना के कारण होती है। द्वीप चिह्न होने से शारीरिक निर्बलता या बीमारी के कारण मृत्यु होती है। यदि विवाह रेखा शुक्र क्षेत्र मेंं जाकर समाप्त हो, और यह योग सिर्फ बायें हाथ मेंं ही हो, तो वैवाहिक संबंध विच्छेद करने की इच्छा ही व्यक्त करता है। दोनों हाथों मेंं यही योग हो तो निश्चित ही संबंध विच्छेद होता है। यदि विवाह रेखा बुध-क्षेत्र मेंं ऊपर की ओर मुड़ जाये और कनिष्ठका मूल को स्पर्श करने लगे, तो जातक आजीवन अविवाहित रहता है। यदि विवाह रेखा का समापन उच्च मंगल के मैदान मेंं हो तो जीवन साथी के व्यवहार के कारण वैवाहिक जीवन दुखी रहता है। यदि विवाह रेखा का अंत उच्च मंगल के क्षेत्र मेंं हो और समापन स्थान पर क्रॉस चिह्न हो, तो जातक के जीवन-साथी के जीवन मेंं अनियंत्रित ईष्र्या व द्वेष के कारण कोई प्राण घातक दुर्घटना घटित होती है। यदि विवाह रेखा का अंत त्रिशूल चिह्न से हो, तो जातक पहले अपने प्रेम की अति कर देता है और बाद मेंं संबंधों के प्रति उदासीन हो जाता है।
यदि इस योग के साथ जातक के हाथ मेंं मध्य बुध क्षेत्र मेंं दूसरी स्पष्ट विवाह रेखा मौजूद हो तो दूसरे विवाह की संभावना अधिक रहती है। यदि विवाह रेखा कनिष्ठिका के मूल से निकलकर चाप खंड की तरह बुध क्षेत्र मेंं प्रवेश करें तो जातक को वृद्धावस्था मेंं परिस्थितियों के दबाव मेंं विवाह करना पड़ता है। यदि विवाह रेखा का आरंभ द्वीप चिह्न से हो, तो जातक के विवाह के पीछे कोई गोपनीय रहस्य छिपा होता है। यदि किसी महिला के हाथ मेंं इस प्रकार का योग हो, तो उसको फंसाकर या धोखा देकर, मजबूरी मेंं शादी की जाती है, ऐसे मेंं आरंभिक वैवाहिक जीवन कष्टकर होता है। यदि बाद मेंं रेखा शुभ हो, तो परिस्थितियां सामान्य हो जाती हैं। यदि विवाह रेखा के आरंभ की एक शाखा कनिष्ठिका मूल की ओर जाये और दूसरी शाखा हृदय रेखा की ओर झुक जाये तो पति-पत्नी को आरंभिक वैवाहिक जीवन मेंं एक दूसरे से दूर रहना पड़ता है। यदि आगे जाकर ये दोनों शाखाएं मिल गयी हों तो पति-पत्नी का संबंध पुन: जुड़ जाता है। यदि विवाह रेखा सूर्य क्षेत्र मेंं समाप्त हो, तो जातक को विवाह के कारण प्रतिष्ठा और धन-लाभ होता है।
यदि विवाह रेखा ऊपर की ओर मुड़कर सूर्य रेखा से मिल जाये, तो जातक का जीवनसाथी उच्चकुल का तथा प्रतिभा से संपन्न होता है। ऐसा विवाह जातक के लिये शुभ होता है, किंतु आजीवन जीवन साथी के प्रभाव मेंं रहना पड़ता हैं यदि सूर्य क्षेत्र तक जाने वाली विवाह रेखा नीचे मुड़कर सूर्य रेखा को काट दे, तो जातक का वैवाहिक संबंध उससे निम्न कोटि के व्यक्ति के साथ होता है और इस विवाह के कारण उसकी प्रतिष्ठा को हानि पहुंचती है व दुख उठाना पड़ता है। यदि विवाह रेखा शनि क्षेत्र तक चली जाये, तो यह एक बहुत अशुभ योग माना जाता है। ऐसी स्थिति मेंं जातक अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिये जीवन-साथी को घायल करता है या उसे मार डालता है। यदि इस योग मेंं शनि क्षेत्र पर भाग्य रेखा के अंत मेंं क्रास का चिह्न हो, तो जातक को अपने जीवन-साथी की हत्या के आरोप मेंं मृत्युदंड दिया जाता है।
यदि विवाह रेखा नीचे की ओर मुड़कर हृदय रेखा की ओर झुक जाये, तो इस बात की सूचक है कि जातक के जीवन-साथी की मृत्यु उससे पहले होगी। यदि ऐसी रेखा धीरे-धीरे एक ढलान के साथ नीचे की ओर मुड़ जाये तो, ऐसा समझना चाहिये कि जीवन-साथी की मृत्यु का कारण कोई लंबी बीमारी होगी। ऐसी रेखा के ढलान मेंं यदि क्रॉस चिह्न हो या आड़ी रेखा हो तो मृत्यु अचानक किसी रोग या दुर्घटना के कारण होती है। द्वीप चिह्न होने से शारीरिक निर्बलता या बीमारी के कारण मृत्यु होती है। यदि विवाह रेखा शुक्र क्षेत्र मेंं जाकर समाप्त हो, और यह योग सिर्फ बायें हाथ मेंं ही हो, तो वैवाहिक संबंध विच्छेद करने की इच्छा ही व्यक्त करता है। दोनों हाथों मेंं यही योग हो तो निश्चित ही संबंध विच्छेद होता है। यदि विवाह रेखा बुध-क्षेत्र मेंं ऊपर की ओर मुड़ जाये और कनिष्ठका मूल को स्पर्श करने लगे, तो जातक आजीवन अविवाहित रहता है। यदि विवाह रेखा का समापन उच्च मंगल के मैदान मेंं हो तो जीवन साथी के व्यवहार के कारण वैवाहिक जीवन दुखी रहता है। यदि विवाह रेखा का अंत उच्च मंगल के क्षेत्र मेंं हो और समापन स्थान पर क्रॉस चिह्न हो, तो जातक के जीवन-साथी के जीवन मेंं अनियंत्रित ईष्र्या व द्वेष के कारण कोई प्राण घातक दुर्घटना घटित होती है। यदि विवाह रेखा का अंत त्रिशूल चिह्न से हो, तो जातक पहले अपने प्रेम की अति कर देता है और बाद मेंं संबंधों के प्रति उदासीन हो जाता है।