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उपयुक्त आयु में विवाह का योग

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उपयुक्त आयु में विवाह का योग –
बदले और बदलते हुए परिवेष में विवाह एक चिंता का विषय है। ज्यादातर युवा और उनके अभिभावक कैरियर को प्राथमिकता देते हुए एजूकेषन तथा कैरियर के बारे में तो गंभीर होते हैं कि शादी संबंधी विचार टालते रहते हैं, जिसके कारण विवाह की उचित आयु कब निकल जाती है, पता भी नहीं चलता। स्वावलंबी बनने के फेर में साथ ही मनवांछित जीवनसाथी पाने की आष में अपना सामाजिक या आर्थिक स्थिति समकक्ष करने के कारण विवाह में देर कई बार विवाह में बाधा का भी कारण बनता है। किंतु वास्तव में स्थिति इसके विपरीत होती है। विवाह में बाधा का क्या कारण बनना है और विवाह कब होना है। यह सब कुछ कुंडली के अध्ययन से जाना जा सकता है। सप्तमाधिपति यदि सबल शुभग्रह से युत, लग्नस्थ, द्वितीयस्थ, सप्तमस्थ या एकादषस्थ हो तो विवाह उचित समय में होता है। यदि किसी की भी कुंडली में शुक्र पाप रहित होकर मित्र राषिस्थ तथा चंद्रमा से अनुकूल हो तो विवाह का समय उचित होता है अर्थात् भारतीय दर्षन के अनुसार सही समय पर विवाह का कारक बनाता है। उचित समय में विवाह की कामना तथा उत्तम जीवनसाथी की कामना से किसी शुभ मूहुर्त में दस हजार गंधर्वराज मंत्रोपासना कर उसके उपरांत हवन, हवन का दषांष तर्पण तथा तर्पण का दषांष मार्जन, मार्जन का दषांष ब्राम्हण भोजन कराना चाहिए। इससे जीवन की वैवाहिक बाधा दूर हो सकती है।

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