अक्षय तृतीया व्रत –
वैषाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया के रूप में मनया जाता है हमारे धर्मग्रंथों में बहुत से दुखों तथा द्रारिदयहरण का निवारण इस दिन पूजन करने से समाप्त होना माना जाता है। इस दिन व्रत तथा पूजन करने पर जीवन दुखरहित होकर सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति का कारण हेाता है। इस दिन स्नान कर भगवान षिव के पूजन का विधान है। प्रातःकाल किसी नदी या सरोवर पर स्नान कर भगवान शंकर, पार्वती और तुलसी की एक सौ आठ परिक्रमा करें और प्रत्येक परिक्रमा में कोई वस्तु चढ़ायें। इसके पष्चात् वे सभी वस्तुएॅ किसी जरूरतमंद को दान का दिनभर भगवान शंकर के मंत्रों का मानसिक जाप करते हुए सायंकाल पुनः सरसों के तेल का दीपक वृक्ष पर जलाकर व्रत का पारण करें। ऐसा करने पर जीवन से दुख दूर होकर जीवन में सुख तथा विवाद की समाप्ति होकर जीवन र्निविवाद बनता है। आज के दिन भगवान की पूजा भी की जाती है। जीवन में अभाव तथा दरिद्रता से पीडि़त लोग आज के दिन भगवान की उपासना करके सभी अभावों से मुक्त हो सकते हैं। इस दिन प्रातःकाल स्नान संकल्पपूर्वक व्रत करना चाहिए। भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। तथा विष्णुकांता के पुष्प चढ़ाकर भगवान शनि की प्रसन्नता के लिए काले तिल, काली उड़द, लोहे का छल्ला तथा सरसो का तेल एवं शहद और गुड़ का दान करना चाहिए। इस दिन याचकों को यथाषक्ति दान करना चाहिए एवं जरूरतमंदों की अपने हाथो से सेवा करनी चाहिए। ऐसा करने से सभी मनोरथ पूरे होते हैं। इस दिन विवाह या नवीन कार्य प्रारंभ करना भी शुभ माना जाता है।
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