कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इससे पूर्व लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने के लिए घरों की साफ-सफाई की जाती है। कहाॅ जाता है कि इस दिन भगवान रामचंद्र चैदह वर्ष का वनवास पूरा कर रावण को मारकर अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने खुशी में दीपमालायें जलाकर महोत्सव मनाया था। इसी दिन उज्जैन सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था। तभी से विक्रमी संवत का आरंभ माना जाता है। यह नव वर्ष का पहला दिन होता है। आज के दिन व्यापारी खाते बदल कर नये खातों का आरंभ करते हैं। समय के साथ नये कैलेण्डर वर्ष आ चुके हैं परंतु खातों की पूजा की परंपरा आज भी है। खाता कलम दवात तराजू और तिजोरी आदि की पूजा की जाती है। इस दिन कुछ लोग जुआ भी खेलते हैं। शायद इसका मूल लक्ष्य वर्षभर में भाग्य की परीक्षा करना है। परंतु इस चक्कर में लोगों का दिवाला भी निकल जाता है।
आज के दिन लोग लक्ष्मी, कुबेर, गणेश, इंद्र, विष्णु, सरस्वती एवं काली की पूजा करते हैं। दीपावली के दिन छः मुख वाले दीपक तथा छब्बीस छोटे दीपक जलाने का विधान है। इन सब दीपकों को प्रज्जवलित करके रोली, खिल बताशें चावल, गुड, अबीर गुलाल आदि से भगवान की पूजा की जाती है। धनतेरस में खरीदे हुए लक्ष्मीजी की मूर्ति या अन्य जेवरात सामने रख उसमें लक्ष्मीजी का ध्यान कर पूजन करना चाहिए।
इस दिन पूजनस्थल के मध्य में एक बड़ा अखण्ड दीपक जलाकर रात्रि जागरण एवं ओं हृीं महालक्ष्म्यै नमः इस महालक्ष्मी मंत्र का जप करना चाहिए तथा ब्रम्ह मूहुर्त में घर का कूड़ा रखकर सूपे में रखकर बाहर ले जाना चाहिए, इसे अलक्ष्मी का विसर्जन कहते हैं तथा हाथ-पैर धोकर दरवाजे पर खडे़ होकर महालक्ष्मी का आवाहन करना चाहिए।
एक बार की बात है कि एक साहूकार की बेटी पीपल में पूजा करती थी। उस पीपल में लक्ष्मीजी का वास था। लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से मित्रता कर ली। एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी को अपने घर ले जाकर खूब खिलाया पिलाया और ढेर सारे उपहार दिये। जब वो लौटने लगी तो लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से पूछा कि तुम मुझे कब बुला रही हो। अनमने भाव से उसने लक्ष्मीजी को अपने घर आने का निमंत्रण तो दे दिया किंतु उदास हो गई। साहूकार ने जब पूछा तो बेटी ने कहा कि लक्ष्मीजी के तुलना में हमारे यहाॅ तो कुछ भी नहीं है। मैं उनकी खातिरदारी कैसे करूंगी। साहूकार ने कहा कि हमारे पास जो है हम उसी से उनकी सेवा करेंगे। बेटी ने चैका लगाया और चैमुख दीपक जलाकर लक्ष्मीजी का नाम लेती हुई बैठ गई। तभी एक चील नौलखा हार लेकर वहाॅ डाल गया। उसे बेचकर बेटी ने सोने का थाल, साल दुशाला और अनेक प्रकार के व्यंजन की तैयारी की और लक्ष्मीजी के लिए सोने की चैकी भी लेकर आई। थोड़ी देर के बाद लक्ष्मीजी गणेशजी के साथ पधारीं और उसकी सेवा से प्रसन्न होकर सब प्रकार की समृद्धि प्रदान की।
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