‘हस्ताक्षर’’ दो शब्दों हस्त+अक्षर से निर्मित शब्द है जिसका अर्थ है हाथों से लिखित अक्षर। वैसे तो वर्णमाला के सभी अक्षरों को लिखने के लिए हाथों का प्रयोग किया जाता है परंतु ‘हस्ताक्षर’ शब्द का प्रयोग प्रमुखतः अपने नाम को संक्षिप्त एवं कलात्मक रूप से व्यक्त करने के लिए ही होता है। हस्ताक्षर को अंग्रेजी भाषा में’ sign’ या ‘Signature’ कहते हैं जिसका अर्थ है “A mark or object to represent one’s name or a person’s name signed by himself” प्रत्येक व्यक्ति हस्ताक्षर करने के साथ ही कुछ निश्चित चित्रों का प्रयोग भी करता ही है जैसे हस्ताक्षर करने के बाद आड़ी तिरछी एक या दो रेखाएं खींचना, बिंदु का प्रयोग अथवा (’) इत्यादि का प्रयोग करना। ये चिह्न एवं इस प्रकार किये हस्ताक्षर व्यक्ति के व्यक्तित्व, मनोव एवं चारित्रिक गुणों को अपने में समाहित किये रहते हैं। देखने में साधारणतया ‘हस्ताक्षर’ एक बहुत ही छोटा सा शब्द है किंतु हस्ताक्षर का प्रत्येक वर्ण एवं प्रत्येक चिह्न कुछ न कुछ अवश्य कहता है। यदि गहराई से किसी भी व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित वर्णों का अध्ययन किया जाए तो उस व्यक्ति विशेष की चारित्रिक विशेषताएं एवं भविष्य का ज्ञान भी सहज ही प्राप्त किया जा सकता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रहों एवं बारह भावों को सर्वसम्मति से मान्यता प्राप्त है। ये नौ ग्रह व्यक्ति की चारित्रिक विशेषताओं के स्पष्ट दर्पण एवं भविष्य की घटनाओं के निपुण वक्ता होते हैं। इन ग्रहों का संबंध भी व्यक्ति की लिखावट, लेखन शैली एवं हस्तलिखित अक्षरों से अवश्य ही होता है। आइये देखें कि कहां तक ज्योतिषीय नौ ग्रहों का किसी भी जातक के हस्ताक्षरों से कितना और किस सीमा तक अन्योन्याश्रय संबंध है। सूर्य ग्रह और हस्ताक्षर जिन जातकों की कुंडली में सूर्य बलवान एवं शुभ अवस्था में होता है, उनके हस्ताक्षर सरल, सीधे व स्पष्ट होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने नामांकित अक्षरों को स्पष्ट रूप से लिखना पसंद करते हैं। ऐसे व्यक्ति सरल स्वभाव व विशाल हृदय के स्वामी होते हैं। ज्योतिष में सूर्य ग्रह को सम्मान, पद, प्रतिष्ठा, आत्मा इत्यादि का कारक माना गया है। अतः जब किसी की कंडली में सूर्य शुभ स्थिति में होगा तो वह ऐसे ही हस्ताक्षर करेगा एवं समाज में प्रतिष्ठित पद भी प्राप्त करेगा। ऐसा व्यक्ति उच्च स्तरीय ज्ञान का स्वामी एवं अच्छा संगठन कर्ता भी होगा। चंद्र ग्रह एवं हस्ताक्षर जन्म कुंडली में चंद्रमा यदि शुभ स्थिति में केंद्र व त्रिकोणस्थ होगा तो जातक के हस्ताक्षरों में स्पष्टता एवं अंत में एक बिंदु रखने की प्रवृ होती है। चंद्रमा को ज्योतिष में मन का कारक माना गया है। शुभ चंद्रमा वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर सजावटी, सुंदर और गोल-गोल होते हैं। ऐसा व्यक्ति जो कार्य प्रारंभ करता है, उसे कुशलता पूर्वक पूर्ण भी करता है। किंतु यदि चंद्रमा पर दूषित प्रभाव है अथवा ‘ग्रहण योग’ की स्थिति कुंडली में बन रही है तो ऐसा जातक हस्ताक्षर के नीचे दो लाइनें खींचता है। ये चिह्न जातक के मन में असुरक्षा की भावना एवं अत्यधिक भावुकता एवं कोमल मन को परिलक्षित करते हैं। ऐसे हस्ताक्षर के व्यक्ति पर नकारात्मक सोच का प्रभाव भी अत्यधिक होता है। मंगल ग्रह और हस्ताक्षर जन्म कुंडली में मंगल ग्रह की स्थिति भी हस्ताक्षरों के संबंध में बहुत कुछ कहती है। लग्न कुंडली में यदि मंगल ग्रह बलवान एवं शुभ होगा तो सामान्यतया देखा गया है कि ऐसे जातक हस्ताक्षरों के नीचे पूरी लाईन खींचते हैं। चूंकि मंगल ग्रह पराक्रम, साहस, क्रोध, इत्यादि का कारक है तो ऐसे हस्ताक्षर वाले जातक अत्यधिक पराक्रमी एवं साहसी होते हैं। आत्म निर्भरता इनमें कूट-कूट कर भरी होती है। अपने साहसी स्वभाव एवं प्रतियोगी शक्ति के आधार पर ऐसे व्यक्ति सामाजिक कार्यों में अग्रणी रहते हैं और यदि दशम भाव भी बलवान है तो इन्हें ख्याति भी खूब मिलती है। बुध ग्रह एवं हस्ताक्षर बुध ग्रह को ज्योतिष में लेखन क्षमता, तर्क शक्ति, ज्ञान एवं लेखन का कारक माना गया है। अतः जब भी कोई जातक ऐसे हस्ताक्षर करें जो स्पष्ट एवं गोलाकर बिंदु के रूप में हों तो ऐसे जातक अच्छे चिंतक, विचारक, लेखक एवं सम्पादक होते हैं। ऐसे हस्ताक्षरों वाले जातक, ज्ञानी, विद्वान, शिक्षक, त्याग एवं परोपकार की भावना से पूर्ण होते हैं। उनके जीवन के निश्चित आदर्श एवं लक्ष्य होते हैं और उन्हें प्राप्त करने में उन्हें सफलता भी मिलती है। गुरु ग्रह एवं हस्ताक्षर जैसा कि विदित है कि गुरु ग्रह को ज्योतिष शास्त्र में विवेक, बुद्धिमत्ता एवं दार्शनिकता का कारक माना गया है, तो जिसकी जन्म पत्रिका में गुरु ग्रह शुभ स्थिति में होगा ऐसा जातक हस्ताक्षर करते समय पहला अक्षर बड़ा बनायेगा और हस्ताक्षर नीचे से ऊपर की ओर करेगा। गुरु ग्रह शुभ होने के साथ-साथ भी नवम भाव भी शुभ दृष्टि एवं शुभ प्रभाव में है तो ऐसे हस्ताक्षर वाले जातक महत्वाकांक्षी एवं ईश्वर तथा वृद्ध जनों के प्रति पूर्ण आस्था रखने वाले होते हैं। चूंकि नवम् भाव एवं गुरु ग्रह दोनों ही ईश्वर के प्रति आस्था को दर्शाते हैं तो यदि गुरु ग्रह पर नकारात्मक प्रभाव है तो ऐसे जातक के हस्ताक्षर सदैव ऊपर से नीचे की ओर होंगे जो जातक की संकीर्ण मानसिकता एवं ईश्वर में अविश्वासी प्रवृ को भी परिलक्षित करेंगे। शुक्र ग्रह एवं हस्ताक्षर सुंदर, कलात्मक एवं हस्ताक्षर के नीचे एक गोलाकर स्वरूप लिए हुए एक छोटी पंक्ति दर्शाती है कि जातक का व्यक्तित्व एवं जीवन शुक्र ग्रह से पूर्ण प्रभावी है। ऐसे व्यक्ति मीडिया, फिल्म लाईन, वस्त्र उद्योग एवं कलात्मक क्षेत्र में अत्यंत सफल होते हैं। साथ ही यदि चतुर्थ भाव पर शुभ प्रभाव होगा तो हस्ताक्षर और भी सुंदर एवं कलात्मक होंगे तथा ऐसे जातकों का पारिवारिक जीवन भी पूर्ण सुखी एवं प्रत्येक प्रकार की सुख सुविधा एवं भोग-विलास से युक्त होगा। शनि ग्रह एवं हस्ताक्षर कुंडली में शनि ग्रह का प्रभाव हो तो हस्ताक्षर के नीचे दो रेखाएं खींचने की प्रवृ होती है। शनि ग्रह के स्वामित्व वाले व्यक्ति अन्वेषक प्रवृ के होते हैं। अतः ऐसे व्यक्ति कुछ न कुछ नवीन कार्य एवं शोध करते रहते हैं और यदि भाग्य साथ दे एवं स्वर्णिम अवसरों की प्राप्ति भी हो तो जीवन में इलेक्ट्रानिक, पेट्रोलियम एवं ज्योतिष के क्षेत्र में उच्चस्तरीय सफलता भी प्राप्त करते हैं। राहु-केतु एवं हस्ताक्षर कुछ लोगों के हस्ताक्षर बहुत छोटे एवं हस्ताक्षर के अंत में एक (-) का चिह्न भी होता है। हस्ताक्षर करने की यह दर्शाती है कि जातक पर राहु-केतु ग्रहों का पूर्ण प्रभाव है। ऐसे हस्ताक्षरों में लयबद्धता की कमी होती है। हस्ताक्षर शीघ्रता से एवं काट-छाँट करके स्पष्ट शब्दों में नहीं होते हैं। ऐसा जातक मानसिक तनावग्रस्त रहता है तथा अपने रहस्यों को किसी को नहीं बताना चाहता है। यदि अक्षर बहुत छोटे हैं तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है जन्म कुंडली में केतु का प्रभाव बहुत ज्यादा है। ऐसा जातक गुप्त विद्याओं में रुचि रखेगा, चालाक, धूत्र्त होगा तथा अपनी कुटिल प् के कारण दूसरों को नुकसान पहुंचाना चाहेगा (ऐसा तभी होगा जब केतु ग्रह पर और भी अशुभ ग्रहों का प्रभाव आ जाये)। किंतु यदि केतु पर गुरु ग्रह का प्रभाव है तो हस्ताक्षर भले ही छोटे हों किंतु उनमें भी एक स्पष्टता होगी जो कि जातक की पारदर्शी मानसिकता एवं विवेक शक्ति की परिचायक होगी। यदि जन्मपत्रिका में सूर्य, शनि एवं राहु-केतु आदि सभी क्रूर ग्रह और भी अधिक पाप प्रभाव में हों तो प्रायः देखने में आया है कि जातक के हस्ताक्षर भी शब्दों को घुमाकर, तोड़ मरोड़ कर, दूर-दूर एवं अस्पष्ट होंगे। अतः ऐसे जातक जीवन में निराशा, नकारात्मक एवं अलगाववादी प्रव के स्वामित्व वाले होते हैं। ऐसी परिस्थिति में यदि अष्टम भाव भी पीड़ित है तो जातक के प्रत्येक कार्य में व्यवधान भी आते हैं, उन्नति भी देर से होती है।
Pt.P.S.Tripathi
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