Other Articles

ज्योतिष में अनुसंधान और पुनरुथान

176views

ज्योतिष में पुनरुथान को तीन भागों में बंटा जा सकता है
ज्योतिष के मूल नियम: प्रत्येक ग्रह, भाव, या राशि को ज्योतिष में किसी न किसी का कारक माना गया है, जैसे सूर्य को आखों का, तो चंद्र को मन का, प्रथम भाव को तन का, तो द्वितीय भाव को धन का, मेष को क्रोधी, तो वृष को मेहनती आदि। इसी प्रकार ग्रहों के अपने घर, उनकी मित्रता, उच्च-नीच अंश, दृष्टियां आदि अनेक ऐसे नियम हैं, जो ज्योतिष सीखने की पहली सीढ़ी पर सिखा दिये जाते हैं और सारी ज्योतिष इन्हीं बिंदुओं के चारों ओर चलती रहती है। लेकिन इन नियमों का क्या आधार है, यह शायद कोई नहीं जानता। कुछ विद्वान इन नियमों को केवल किसी कहानी, या किसी बेतार के तार द्वारा जोड़ने की कोशिश करते हैं, जिससे सभी विद्वान सहमत नहीं होते और बुद्धिजीवी, या वैज्ञानिक उन तर्कों को बिल्कुल ही नहीं मानते।
कोई आधार न होने के कारण मूल नियमों में भी विवाद देखने में मिलता है, जैसे पिता के लिए नवां भाव देखें, या दशम लग्न नवें से पंचम होता है, अतः नवम् भाव पिता का हुआ। इसी प्रकार दशम भाव चतुर्थ से सप्तम, अर्थात माता के पति (पिता) को दर्शाता है। वर और कन्या दोनों मंगलीक हों, तो दोष कैसे कट जाता है, बढ़ता क्यों नहीं? उच्च का मंगल दोषहीन है, तो नीच का मंगल क्या है? कौन सी दशा से फलित किया जाए? विंशोत्तरी दशा का इतना महत्व क्यों? ग्रहों के दशामान कैसे स्थापित किये गये हैं? न तो यह उनकी दूरी, न उनके वजन और न उनके परिभ्रमण काल के अनुसार हैं।इस प्रकार ज्योतिष के आधार के बारे में ज्योतिष में बहुत ही कम, या न के बराबर ज्ञान उपलब्ध है। यदि इस का आधार मालूम पड़ जाए, तो बहुत सारी गुत्थियां सुलझ सकती हैं। लेकिन यह काम कठिन है।
ज्योतिष योग
ज्योतिष के मूल नियमों का उपयोग करते हुए हजारों ज्योतिष योग हजारों प्रकार के उत्तर देते हैं, जैसे लग्न का सूर्य मनुष्य को ख्याति देता है; द्वितीय भाव में शुभ ग्रह धन देता है; सप्तम में बुध धनवान ससुराल देता है; या दशम में मंगल डाक्टर और बुध इंजीनियर बनाता है आदि।यह योग कितने ठीक हैं और कौनसा योग देख कर हम निश्चयता से फलित कथन कर सकते हैं? बहुत सारे नये नियमों की आवश्यकता है, जो पुराने ग्रंथो में नहीं थे। जैसे जातक केवल यह नहीं जानना चाहता कि वह डाक्टर बनेगा, या नहीं? वह यह भी जानना चाहता है कि उसकी विशेषज्ञता किसमें होगी? मंत्री जी यह जानना चाहते हैं कि उनको कौनसा विभाग मिलेगा, या कौनसा विभाग उनके लिए उत्तम रहेगा? व्यापारी अपने लिए उत्तम कारोबार की दिशा जानना चाहता है। इस नये युग में बहुत सारे विकल्प हैं और हर विकल्प के लिए ग्रहों के कारक पूर्णरूपेण इंगित नहीं देते। अतः कौनसे ग्रहों के कौनसे योग कितने हद तक फलदायी हैं, इस पर अनुसंधान आवश्यक है।
यदि कुंडली में कुछ कष्ट हैं, तो जातक उनसे निवारण भी अवश्य चाहता है। रत्न, मंत्र, जड़ी-बूटी, दान, पूजा इत्यादि अनेक उपाय हैं। कौनसा उपाय करना चाहिए और कौनसे ग्रह के लिए? ज्योतिष पूर्ण मानव जाति के लिए है, तो दूसरे धर्म के जातक किस प्रकार के उपाय करें? उनके धर्म में तो हिंदू देवी-देवता नहीं हैं; अर्थात पूजा-पाठ का आधारभूत नियम क्या है और इससे जीवन को कैसे खुशहाल बनाया जा सकता है?
उपायों पर अनुसंधान करने में मूल परेशानी एक और भी है। यह कैसे मालूम पड़े कि कार्य सफल हुआ, तो उपाय के कारण हुआ, या उसे सफल होना ही था। इसको सिद्ध करने के ज्योतिषीय नियम बहुत ही पक्के होने चाहिएं। तभी हम सांख्यिकी द्वारा इसका निष्कर्ष निकाल पाएंगे। ज्योतिष में अनुसंधान शुरू करने के लिए ज्योतिष के योगों पर अनुसंधान करना ही उत्तम है। जब हम इस दिशा में परिपक्व हो जाएं, तब मूल नियम एवं उपाय पर शोध किये जा सकते हैं। ज्योतिषीय योगों पर शोध कार्य को निम्न भागों में बांटा जा सकता है:
शोध विषय का चुनाव: विषय केंद्रित और लक्षित होने चाहिएं, जैसे डाक्टर बनने के क्या योग हैं, न कि व्यवसाय का चयन कैसे हो? शास्त्रों में विषय विशेष पर प्राप्त नियमों का संकलन। संबंधित एवं असंबंधित जन्मपत्रियों का संकलन। ये जितने अधिक हों, उतना अच्छा है। लेकिन 200 से 500 तक अवश्य हों। शास्त्रों से प्राप्त नियमों का आंकड़ों पर प्रयोग कर, नियम एवं फल का संबंध ज्ञात करना एवं नये नियम प्रस्तावित करना। शोध पत्र लिखना एवं शोध कार्य का फल चाहे सूत्रों को सही बताता हो, या गलत, पत्रिकाओं में छपवा कर जनसाधारण तक पहुंचाना। इस प्रकार किया गया शोध कार्य समय एवं ऊर्जा अवश्य लेगा। लेकिन यह वैज्ञानिकों को भी अवश्य मान्य होगा। इसके द्वारा हम ज्योतिष शास्त्र की वैज्ञानिकता को भी सिद्ध कर पाएंगे।

ALSO READ  Finest Casinos on the internet Inside the 2024 Which have 100percent Local casino Bonus