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ज्योतिष में विज्ञान की सार्थकता

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विज्ञान ‘कार्य-कारण के सिद्धांत’ पर आधारित है। परंतु असंख्य घटनाएं ऐसी हैं, जिनका कारण समझने में चोटी के वैज्ञानिक अपने आपको सर्वथा असमर्थ पा रहे हैं। सिद्धांतों के व्यभिचार मात्र से ज्योतिष शास्त्र की वैज्ञानिकता का प्रतिवाद नहीं किया जा सकता। ज्योतिष चिरंतर सत्य सिद्धांतों पर आधारित एक विज्ञान है, जिसमें अभी अत्यधिक अनुसंधान की आवश्यकता है। ज्योतिष – जो रहस्य साधारणतः इन्द्रियों की पहुंच से बाहर है अथवा भूत-भविष्य के गर्भ में निहित हैं, वे ज्योतिषशास्त्र द्वारा प्रत्यक्ष जान लिए जाते हैं। हमारे ऋषियों ने उसी शास्त्र की रचना की है जो कि भारत के लिए गौरव की बात है – ज्योतिषा मयनं साक्षाद् यतद् ज्ञान मतीन्द्रियम्। प्रणीतं भवता येन पुमान् वेद परावरम्।। श्रीमद् भागवत पुराण ग्रह गति जन्य प्रभाव से प्रताड़ित समस्त समाज व्यक्ति किवा देश की स्थिति ठीक उस तिनके की भांति ही अनुभव की गई है, जो वायु वेग से प्रताड़ित होकर अपने अस्तित्व को खोकर इधर-उधर भागता फिरता है। नैषधचरित में स्पष्ट लिखा है- ”अवश्य भव्येष्व नवग्रह ग्रहायवा दिशा धावती वेधसः स्पृहा। तृणेन वात्येन तयानु गम्यते लोकस्य चित्तेन भृशा डवशात्मनः।। स्पष्ट है कि उस परोक्ष-अज्ञात अलौकिक शक्ति के परिचायक अन्नत कोटि तारों एवं ग्रहों के अदृश्य संकेत से संचालित ब्रह्मांड में कभी भूकंप समुद्री बर्फानी तूफान, ज्वालामुखी विस्फोट एवं जन जीवन में उग्र विनाशक घटनाएं स्पष्ट अनुभव की गई है। इस प्रकार जगत पिता की अदृश्य आलोकिक शक्ति ही ब्रह्मांड को प्रभावित करती है। संचालित करती है। ग्रह गति जन्य इस परिणाम को हम ‘भवितव्यता’ किवां ‘ईश्वरेच्छा’ कहकर स्वीकार करते हैं। स्त्रीनाशक -बहु स्त्री प्राप्ति के योग 1.शुक्र यदि पाप ग्रहों के बीच में हो या शुक्र से चतुर्थ, अष्टम, द्वादश में पाप ग्रह हो इन तीनों प्रकार की स्थिति के ग्रहों का फल यह है कि जिस पुरुष की कुंडली में यह योग होगा उसकी स्त्री की मृत्यु हो जाती है। जितने दुर्योग अधिक होंगे उतना ही दुष्प्रभाव अधिक होगा। 2.सप्तम् भाव का स्वामी पंचम में हो तो उसकी स्त्री की मृत्यु हो या अपुत्र (पुत्र से हीन) हो। यदि पंचमेश या अष्टमेश सप्तम् भाव में हो तो भी पत्नी का विनाश हो जाता है। यदि क्षीण चंद्रमा पांचवें भाव में हो और पाप ग्रह लग्न सप्तम् और बारहवें भावों में हो तो जातक पत्नीहीन पुत्रहीन होता है। 3.यदि सूर्य और राहु सप्तम् भाव में हो तो स्त्री संग से धन नाश हो। यदि वृश्चिक राशि गत शुक्र सप्तम् में हो या वृष राशिगत बुध सप्तम भाव में हो। मकर राशि में बृहस्पति (गुुरु) संचरण करता हुआ सप्तम भाव में हो या मीन राशि गत मंगल सप्तम में हो। इन योगों में से कोई भी योग हो तो पत्नी की मृत्यु हो जाती है। यदि सप्तम में कर्क राशि हो और उसमें मंगल तथा शनि हो तो उस मनुष्य की सुंदर और सच्चरित्र पत्नी होगी। 4.यदि सातवें भाव का स्वामी या सातवां भाव पाप ग्रहों से दृष्ट या पाप ग्रहों के मध्य हो या सप्तमेश नीच या शत्रु राशि (शत्रु ग्रह की राशि) में स्थित हो, या अस्त हो (सूर्य के समीप होने के कारण) तो स्त्री नष्ट हो जाती है। ये सभी स्त्री नाशक योग है। 5. यदि शुक्र पाप ग्रह के साथ (सूर्य, मंगल, शनि, राहु) पांचवें या सातवें या नवम् भाव में हो तो उस पुरूष की स्त्री रोगिणी (जिसके शरीर का कोई अवयव ठीक तरह से काम न करता हो) होती है या स्त्री सुख के अभाव के कारण विकल रहता है। यदि शुक्र मंगल या शनि के वर्ग में हो या उनसे देखा जाता हो तो अपनी पत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्री में रत रहता है। 6.यदि शुक्र और चंद्रमा से सप्तम् स्थान में मंगल और शनि स्थित हो तो स्त्रीहीन हो, यदि सप्तम् में नपुंशक (बुध, शनि) स्थित हो और ग्यारहवें स्थान में दो ग्रह स्थित हो तो जातक के दो स्त्री हो, यदि शुक्र और सप्तमेश दोनों द्वंद्व राशि में हो तो जातक को दो पत्नी हो, शुक्र जितने ग्रहों से युत और सप्तमेश जितने ग्रहों से युत (अर्थात् सप्तमेश और शुक्र जितने ग्रहों से युक्त हो) उतनी ही स्त्रियों की प्राप्ति (यदि अधिक ग्रहों की युति अर्थात सप्तमेश और शुक्र अधिक ग्रहों से युक्त हो और उतने विवाह की संभावना कम हो तो विवाह के अतिरिक्त स्त्री समागम समझना चाहिए) होती है। 7.जितने ग्रह सप्तम में हो उतनी स्त्रियां होंगी समझना, इन्हीं ग्रहों में जितने पाप ग्रह हो उतनी स्त्रियां नष्ट होंगी और जितने शुभ ग्रहों की स्थिति होगी उतनी कायम (जीवित) रहेंगी। अब कानून द्वारा हिंदुओं में बहु (अधिक) विवाह प्रथा समाप्त हो चुकी है, अतः बहु विवाह वाला ज्योतिष नियम लागू नहीं होगा। क्योंकि ज्योतिष सिद्धांत देश काल और पात्र के अनुसार ही लागू किये जाने पर ही फलित ठीक तरह से होगा, अन्यथा नहीं। 8.यदि सप्तम भाव का स्वामी शुभ ग्रह हो, बलवान भी हो तो साध्वी और पुत्रवती स्त्री प्राप्त हो, यदि पापग्रह भी सप्तम में हो और यदि वह स्वगृही हो तो शुभ फल ही करता है। शुभ ग्रह (यदि वह छठे आठवें या बारहवें भाव का स्वामी न हो) सप्तम भाव में हो तो सुख बढ़ाता है। अर्थात् स्त्री सुख प्रदान करता है। 9. यदि द्वितीय और सप्तम् में अशुभ ग्रह हो या इन स्थानों पर अशुभ ग्रह की दृष्टि हो तो भार्या का नाश (स्त्रीनाश) होता है। इनमें भी (युत्त या विक्षित) क्रूर दृष्टि विशेष अशुभ फल देने वाली होती है। इस प्रकार महिला की कुंडली में सप्तम् या अष्टम दोनों भाव अशुभ ग्रहों से युत या विक्षित हो तो पति के लिए अनिष्ट होगी, अर्थात दोष कारक होता है। किंतु यदि (दोनों भाव से अर्थ है स्त्री की कुंडली में सप्तम और अष्टम स्थान पुरूष की कुंडली में द्वितीय और सप्तम स्थान) दोनों भाव शुभ ग्रहों से युत्त या विक्षित हो तो पति-पत्नी भाग्यवान होते हैं। 10. यदि स्त्री की कुंडली में चंद्रमा और शनि दोनों सप्तम भाव में हो तो पुनर्विवाह होता है। पुरूष की कुंडली में यह योग हो तो वह स्त्रीहीन या पुत्रहीन होता है। यदि अशुभ ग्रह अपनी नीच या शत्रु की राशि में द्वितीय सप्तम और अष्टम में हो तो यह योग स्त्री जन्म कुंडली में हो तो पति का मरण और पुरूष कुंडली में हो तो पत्नी का मरण हो। 11.यदि लग्न से सप्तम भाव में सम (वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन) राशि हो, सप्तमेश और शुक्र भी सम राशि में स्थित हो और पंचमेश तथा सप्तमेश बली हो और सूर्य से अस्त भी न हो तो स्त्री पुत्र का सुख होता है। 12.यदि द्वितीय सप्तम और द्वादश भाव के स्वामी त्रिकोण या केंद्र में हो और बृहस्पति से देखे जाते हों। सप्तमेश जहां स्थित हों उससे दूसरे सातवें और ग्यारहवें स्थान में सौम्य ग्रह हों तो जातक सुखी, पुत्रवान, कलत्र (स्त्री) वान होता है। 13.पुरूष की कुंडली में यह देखिये कि लग्नेश और सप्तमेश किस राशि और किस नवमांश में है, ऐसी राशि या नवांश की त्रिकोण राशि स्त्री की जन्म राशि होगी, या पुरूष की कुंडली में लग्नेश या सप्तमेश की उच्च या नीच राशि स्त्री की जन्म राशि होगी या पुरूष के चंद्राष्टक वर्ग में जिस राशि में अधिक बिंदु होंगे वह राशि स्त्री की जन्म राशि होगी। 14.पुरूष की कुंडली में यह देखिये कि – 1. सप्तम् भाव में कौन सी राशि है, 2. सप्तमेश कौन सी राशि में स्थित है, 3.शुक्र कौन सी राशि में स्थित है। इन तीनों की राशियों में से किसी एक राशि की दिशा में जनमी लड़की से विवाह होगा। 15.लग्नेश जिस राशि नवांश में है उससे त्रिकोण राशि में जब शुक्र या सप्तमेश गोचर में आता है तब विवाह होता है। 1.जो ग्रह लग्न से सप्तम् भाव में हो, 2.जो ग्रह सप्तम भाव को देखता हो, 3.सप्तमेश – सप्तमस्थ-सप्तम को देखने वाला ग्रह 4.सप्तम भाव में स्थित राशि का स्वामी इन तीनों की जब दशा अंतर्दशा हो और लग्नेश जब गोचरवश जब सप्तम स्थान में आये तब विवाह होता है। 16.जिस राशि में सप्तमेश हो उस राशि का स्वामी तथा जिस नवांश में सप्तमेश हो उसका स्वामी इन दोनों में तथा शुक्र और चंद्रमा में से कौन बलवान है ? जब इस बलवान ग्रह की दशा अंतर्दशा हो, और सप्तमेश जिस राशि या नवांश में हे, उससे त्रिकोण राशि में गोचरवश बृहस्पति आवे तब विवाह होता है। यदि सप्तम स्थान का स्वामी नीच राशि में, शत्रु राशि में, अस्त या पाप ग्रह से दृष्ट हो और सप्तम भाव में पाप ग्रह हो, या सप्तम भाव पाप ग्रहों से विक्षित हो तो कलत्र (स्त्री) की हानि होती है। ऐसा विद्वानों का मत है।