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परीक्षा की तैयारी कैसे करें

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विद्यार्थियों के लिए परीक्षा का समय पास आ रहा है और परीक्षा पास आते ही विद्यार्थियों को उसका भय सताने लगता है। पढ़ाई में मन नहीं लगना, पाठ याद न होना, पुस्तक खुली होने पर भी मन का पढ़ाई में एकाग्रचित्त न होना, रात को देर तक नींद न आना या मध्य रात्रि में नींद उचट जाना आदि परीक्षा के भय के लक्षण हंै।
परीक्षा पढ़ाई का केवल एक मापक है, यह विद्यार्थी के ज्ञान का आकलन मात्र है। व्यक्ति के जीवन में उतार चढ़ाव या लाभ-हानि इसके द्वारा निर्धारित नहीं होते। किसी भी परीक्षा में सफल होने के लिए कुछ सूत्र होते हैं। इन सूत्रों को जान लेने, समझ लेने और उनके उपयोग करने से अच्छी सफलता सहजता से प्राप्त हो सकती है। परीक्षा के भय से मुक्ति के लिए निम्नलिखित सूत्र लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं-
1.पाठ्यक्रम की तैयारी परीक्षा में संभावित प्रष्नों के अनुसार ही करनी चाहिए। अतः पिछले वर्षों के परीक्षा पत्रों का अभ्यास भी उपरोक्त सूत्रों में से एक सूत्र है।
2.पाठ्यक्रम बृहत् होने के कारण यह संभव नहीं होता कि परीक्षा के समय पूरे पाठ्यक्रम को दोहराया जा सके या उसका अभ्यास किया जा सके। अतः महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम के लघुपत्रक बना लेने चाहिए। परीक्षा के समय उनका उपयोग समय की बचत करा सकता है।
3.सबसे पहले क्रमसे अधिक महत्वपूर्ण भागों को निर्धारित कर लें। केवल महत्वपूर्ण अंशों का अध्ययन करें और समय बचने पर ही अन्य अंशों की प़ढ़ाई करें।
4.जब परीक्षा के भय के कारण परीक्षा में मन लगना बिल्कुल बंद हो जाए, तो उस समय केवल एक महत्वपूर्ण पाठ या प्रष्न पर अपना ध्यान केंद्रित करें। उसे पूरी तरह से समझ कर याद कर लें। एक प्रष्न तैयार होने के बाद मन स्वतः ही दूसरे प्रष्न में लगने लगेगा।
5.पढ़ाई में मन नहीं लगने का एक कारण होता है समय का अभाव और पाठ्यक्रम का विस्तृत होना। ऐसे में यदि पाठ्यक्रम का विभाजन कर मुख्य भाग की तैयार कर लें तो 80 प्रतिशत तक की तैयारी 50 प्रतिशत समय में हो जाती है। यदि इस मुख्य भाग पर कोशिश कर अच्छी तैयारी कर ली जाए तो अधिक अंक प्राप्त किए जा सकते हैं।
6.ज्योतिषानुसार षनि की साढ़ेसाती और ढैया भी पढ़ने में अरुचि पैदा कर देती हंै। अतः किसी ज्ञानी पंडित द्वारा विद्यार्थी की पत्री को पढ़वाकर उसके उपाय करना उचित रहता है। इसके लिए सरसों के तेल का छाया दान या षनि की वस्तुओं का दान लाभदायक होता है। षनि के मंत्रों का जप व षनि मंदिर के दर्षन मन को एकाग्रचित्त करते हैं।
7.मन को एकाग्रचित्त करने के लिए प्राणायाम अत्यंत प्रभावशाली पाया गया है। इससे शरीर के अंदर की अशुद्ध वायु बाहर निकल जाती है और स्वच्छ वायु शरीर के स्नायुओं को पुनः क्रियान्वित व ऊर्जित कर देती है। इससे शरीर में शक्ति व स्फूर्ति पैदा होती है और मन एकाग्र हो जाता है। इसके लिए एक समय में केवल 5 से 10 बार सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया को पूरी करें। परीक्षाओं के समय 5 से 10 बार तक अपने पढ़ने के स्थान पर ही प्राणायाम कर लेना लाभदायक होता है।
8.सरस्वती यंत्र की स्थापना और सरस्वती मंत्र का जप भी परीक्षा में उत्तम अंक प्राप्त करने के लिए लाभप्रद है।
9.निम्न देवी के मंत्र का जप विद्या प्राप्ति के लिए अत्यंत उत्तम है।
10.गायत्री मंत्र का जप रुद्राक्ष व स्फटिक मिश्रित माला पर करना श्रेयस्कर है।
11.सरस्वती मंत्र सहित सरस्वती लाॅकेट बुधवार को धारण करें।
12.चार मुखी और छः मुखी रुद्राक्ष युक्त पन्ने का त्रिषक्ति कवच पढ़ाई में ध्यान केंद्रित करने में अत्यंत लाभदायक लाभप्रद है।
13.बुधवार को गणेष जी को लड्डुओं का भोग लगाएं।
14.पढ़ाई के कमरे में मां सरस्वती का चित्र लगाकर रखें।
15.पढ़ते समय अपना मुख पूर्व या ईशान की ओर रखें। इससे मन एकाग्र रहेगा।
16सोते समय अपने पैर उत्तर व सिर दक्षिण दिशा में रखें। इससे नींद गहरी आएगी और प्रातः काल ताजा व ऊर्जावान महसूस करेंगे।
परीक्षा के समय परीक्षा की तैयारी तो अवश्य करें लेकिन कितनेे अंक प्राप्त होंगे इस पर विचार नहीं करना चाहिए क्योंकि फल की आसक्ति ही मनुष्य को कमजोर बनाती है। दूसरे, हम यदि आने वाले अंकों पर विचार भी करेंगे तो इससे अंकों में बढ़ोतरी तो होगी नहीं, बल्कि सोच के कारण मन न लगने से अंक कम अवश्य हो सकते हैं।