मनुष्य जीवन में सफलता प्राप्त करने के अनेक पहलुओं पर विचार करके उनमें सुधार लाने की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है । जिन में से व्यक्तित्व का सुधार अत्यंत महत्वपूर्ण है जैसा कि हम जानते है व्यक्तित्व के दो महत्वपूर्ण पहलू है ।
1बाहरी स्वरूप
2 आन्तरिक स्वरूप या मानसिक व्यक्तित्व
1बाहरी स्वरूप : बाहरी व्यक्तित्व व्यक्ति के शारीरिक ढाचे उसके रूप रंग उसके अंगों के आकार व प्रकार से बना होता है और वह सभी का जैसा होता है वैसा ही दिखाई देता है बाहरी स्वरूप में सामान्य व्यक्तियो की भांति अधिकतर लोग दिखाई देते है लेकिन कुछ व्यक्तियों में शारीरिक विकास होता है जो की या तो जन्मजात होता है या किसी घटना या दुर्घटना के कारण हो जाता है शारीरिक विकास मनुष्य की कार्य क्षमता पर प्रभाव डालता है ।
2 आन्तरिक स्वरूप या मानसिक व्यक्तित्व : मानसिक व्यक्तित्व किसी भी व्यक्ति की मस्तिष्क की कार्य प्रणाली पक्ष आधारित होता है अर्थात किसी व्यक्ति का मस्तिष्क किस प्रकार कार्य करता है उसके विचार, उसकी भावनाएं, उसकी सोच, उसकी समझने की शक्ति सब कुछ मस्तिष्क की कार्यप्रणाली पर निर्भर होता है अत: व्यक्तित्व में सुधार के लिए हमें दो प्रकार से सचेत होना पड़ता है ।
1भौतिक या शारीरिक
2मानसिक या मनोवैज्ञानिक
उपरोक्त दोनों प्रकार के पहलूओं में सुधार लाने के लिए अनेकानेक प्रक्रियाएं की जाती है जिनका वर्णन निम्न प्रकार है ।
1.भौतिक या शारीरिक सुधार : शरीर माध्यम अर्थात शरीर निश्चय रूप से सभी धर्मो का मुख्य साधन है शारीरिक प्रक्रिया में निम्न प्रकार से सुधार लाये जा सकते हैं ।
1.शरीर की देखभाल या रखरखाव -इसके अन्तर्गत शरीर कं अंगों के निरन्तर देखभाल से हमारा शरीर और उसकी दिखावट ठीक रहती है । सारा दिन कार्य करने के उपरान्त शरीर में थकावट भी होती है और अगले दिन काम लिए शारीरिक क्षमता को बनाये रखना होता है इसके लिए बालों की देखभाल कटिंग, तेल या क्रीम लगाना कंघी करना शामिल है उसके अतिरिक्त आखों को स्वच्छ रखना गुलाब जल सुरमा अथवा काजल आदि का प्रयोग किया जाता है हाथों और पैरों के नाखुन समय-समय पर काटते रहना चाहिए चेहरे की चमक बनाये रखने के लिए क्रीम आदि का प्रयोग कते रहना चाहिए इसी प्रकार शरीर के बाहय अंगों को ठीक प्रकार देखभाल से शारीरिक सुधार होता है । शारीरिक व बाहरी सुधार के लिए निम्न क्रियाएं करनी चाहिए
(क)चिकित्सा : यदि किसी व्यक्ति को किसी प्रकार का रोग या विकार है तो इसे अपने को ठीक रखने के लिए जल्द से जल्द चिकित्सा करानी चाहिए क्योंकि कोई भी रोग या विकार यदि समय रहते नियंत्रित नहीं जिया जाए तो भयंकर रूप ले लेता है ।अपनी शरीर की आवश्यकताओं को समयनुसार समझना भी कार्य के अनुसार समय-समय पर शारीरिक निरीक्षण करवाते रहना । शरीर के सभी अगो को अपेक्षित प्रकार से संचालित रखना क्योकि कुछ कार्यों में केवल कुछ ही अंगों पर अधिक दबाव रहता है और बाकी अंग निष्क्रिय रहते है अत: निष्क्रिय अंगों का संचालित कर व कार्यशील अंगो को आराम देकर शारीरिक स्वरूप बढाया जा राकता है । कार्य के वातावरण से हानिकारक तत्वों को सीमित करना । कार्य में होने वाले प्रदूषण व् कार्य से उत्पन्न जोखिमों से निपटने के लिए सुरक्षात्मक उपकरण रखना । कार्य के जोखिम के अनुसार उचित प्रशिक्षण प्राप्त करना । शारीरिक योग्यता को बताने के लिए योग्य प्रशिक्षकों से शिक्षण प्राप्त करना । उपकरणों के प्रयोग से पहले उनकी अपेक्षित जाच जिनसे की प्रयोग करते समय दुर्घटना का कारण न बने । अभिभावकों, प्रशिक्षकों की आज्ञा का पालन करना । आपातकालीन सहायता के लिए (फर्स्ट एड) प्राथमिक चिकित्सा का प्रबंध रखना।रहना चाहिए विशेषकर आधुनिक युग में जो जि प्रतिस्पर्धा से ओत-प्रोत है । यदि हम कार्य करने में पीछे रह जाते है तो तेजी से भागते हुए समय को पकड़ना कठिन है ।
(ख).खेल खिलाडी की भावना : जिस प्रकार खेल में हार व जीत दोनो ही दशाओं में खिलाडियों का मनोबल बना रहता है कि उसकी आज की हार कल की जीत है ठीक उसी प्रकार मनुष्य को कार्य अपनी पूर्ण क्षमता से करना चाहिए । यदि आज असफल हुए तो कल सफलता भी प्राप्त होगी । सन्देश है कि जिदगी में असफलता के उपरान्त भी मायुसी नही जानी चाहिए और सफलता की स्थिति में अत्याधिक प्रफुल्लता भी हानिकारक हो सकती है ।
(ग) चिंता छोड़ो सुख से जियो- सुप्रसिद्ध लेखक खेल कारनेगी ने अपनी पुस्तक में स्पष्ट रूप से कहा है जि हमें व्यर्थ की चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि कल की रोटी सुखी है और जो आगे आने वाला कल है वह बिल्कुल अनिश्चित है कुछ भी किसी पल हो सकता है इसलिए हमें आज के दिन सब कूछ ठीकठाक करना चाहिए बिना वजह से चिंता करने से व्यक्ति जलता है क्योकि चिंता चिंता समान है । व्यर्थ की चिंता न करने से हमारी शारीरिक क्षमता बनी रहती है ।
(घ) सामान्य ज्ञान- मानसिक सुधार हेतु सामान्य ज्ञान अर्थात् हमारे आस पास क्या हो रहा है चाहे वह राजनैतिक क्षेत्र हो अथवा आर्थिक या वैज्ञानिक इन सभी के ज्ञान से हम जिदगी में मात नहीं खा राकते एक अच्छे व्यक्तित्व वाला व्यक्ति सामान्य ज्ञान के कारण अंधेरे में नहीं रहता ।
(ड़) व्यावसायिक ज्ञान : व्यक्ति को जीने के लिए कुछ ना कुछ कार्य करना पड़ता है चाहे नौकरी या व्यवसाय । अपने व्यवसाय का पूर्ण ज्ञान आवश्यक है इससे किसी भी प्रकार की चिंता अथवा नुकसान से बचा जा सकता है व्यावसायिक ज्ञान से व्यक्ति के अन्दर आत्मविश्वास जगता है और उसे व्यवसाय करने में भी किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होती है ।
छ. शिक्षण तथा प्रशिक्षण : मानसिक सुधारो में शिक्षा अथवा प्रशिक्षण का होना अनिवार्य है कोई भी व्यक्ति जब शिक्षण प्राप्त करता है तो वह अपना भला बुरा सोच लेता है, दुनिया के सारे समाचार पढ़ कर ज्ञान लेता है । शिक्षित व्यक्ति के व्यवहार में तुलनात्मक दृष्टि से बहुत अन्तर पाया जाता है यही कारण है की आधुनिक युग में शिक्षण तथा प्रशिक्षण की सुविधाओ का बहुत विस्तार हुआ है और अनेक व्यक्ति उसका लाभ जता सकते है ।
क्रोध पर काबू रखें : अग्रेजी का एक शब्द है डेनजर, जिसमें से यदि पहले शब्द डे को हटा दे तो वह एंगर, अर्थात क्रोध बन जाता है इसका तात्पर्य है की क्रोध बहुत बडा खतरा है यह पाप का मूल है । क्रोधित व्यक्ति सब कुछ भूलकर विनाश की और अग्रसर होता है । एक अच्छे व्यक्ति के लिए यह आवश्यक कि आने वाले क्रोध पर नियन्त्रण रखा जाये ताकि हानि से बचा जा सकें और दूसरे व्यक्तियों को भी परेशानी न हो इसलिए व्यक्ति को सदा शान्त भाव रखना चाहिए क्रोध हमेशा अपने आप को नुकसान देता है दूसरों को नहीं इसलिए हमें चाहिए कि हम क्रोध ना करें अन्यथा क्रोध आने पर उसे नियन्त्रण में रखा जा सके | इसके लिए विषय परिवर्तन, स्थान परिवर्तन, ध्यान परिवर्तन, ठण्डे पानी का प्रयोग अथवा ज्ञान सम्बन्धी पुस्तकों या अध्ययन योगाभ्यास तथा चित्तन आवश्यक है |
इर्षा तथा घृणा को टाले : दूसरों को देखकर जलना अथवा उसके प्रति इर्षा करना व्यक्ति के भौतिक सिद्धांतों के विपरीत है । यह सच है की दूसरे कीं थाली में घी अधिक लगता है किसी की उन्नति या प्रगति से दूसरा व्यक्ति अधिकतर चिंता ओर उससे ईष्यों करने लगता है इंष्यएँ एक मानसिक भावना और इसक दो भिन्न-भिन्न पहलु है । एक तो यदि ईष्यर्र उन्नति अथवा किसी शुभ कार्य के लिए की जाये तो उससे व्यक्ति को शाक्ति मिलती है और यह लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अग्रसर होता है । दूसरे यदि कोई व्यक्ति दूसरे की उन्नति को देखकर जलता है अथवा वह मन ही मन है कुंढता है तो उससे खून जलता है और शक्ति का हास होता है घृणा ईष्यपै का अन्तिम चरण है यह अत्यन्त घातक है घृणा के भयानक परिणामों में शामिल है युद्ध तथा आतंकवाद जिसके कारण मानवता की बहुत क्षति हुई है ।
ट. आत्म विश्वास जगाएं : आत्मविश्वास का प्रत्यक्ष सम्बन्ध व्यक्ति के मानसिक स्थिति से है आत्मविश्वास से तात्पर्य ऐसी मनोस्थिति से है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति अपने ऊपर पूर्ण विश्वास रखकर किसी भी कार्यं को करता है बिना आत्म विश्वास के व्यक्ति या तो कोई कार्य नहीं कर पाता और यदि करने लगता है तो वापस हो जाता है आत्मविश्वास जगाने के लिए यह आवश्कता है की व्यक्ति ओरो के सन्मुख वार्तालाप करें अपने साथियो अथबा सहयोगियों के साथ विचार विमर्श करें, महापुरुषों के उपदेश सुने और सुनाये तथा ऐसे ही अनेक नाम है जिनके अन्तर्गत ज्ञान प्राप्त करना भी शामिल है । आत्म विश्वास उत्पन्न होने पर व्यक्ति किसी भी स्थिति में घबराता नहीं है तथा अटूट विश्वास के साथ कार्य करता है ।
वैश्वीकरण : यह एक नवीनतम अवधारणा है जिसके अन्तर्गत हम अपने घर पर बैठकर समूचे विश्व की यात्रा कर सकते है और सभी प्रकार की सूचनायें संकलित कर सकते है आज दिन हम केवल भारतवर्ष ही नहीं बल्कि विश्व के विकसित और विकासशील देशो से सम्बन्ध स्थापित कर सकते है । उनसे व्यवसाय कर सकते है रोजगार प्राप्त कर सकते है और विपरण भी कर सकते |आधुनिक युग ने व्यक्तित्व का विकास और सुधार वैश्वीकरण के बिना अधुरा है |
Pt.P.S.Tripathi
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