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ज्योतिष द्वारा कैसे दूर करें ह्रदय रोग

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पहले हज़ारों लोगों में से किसी एक को होने वाली बीमारियां अब घर-घर की कहानी बनती जा रही हैं। उन्हीं बीमारियों में एक है-हृदयाघात (Heart-attack)। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से अनुदान प्राप्त कर जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञानं संकाय ने जब रिसर्च की, तो पता चला कि भारत में बढ़ी तादात में ह्रदय रोगी हैं। यूजीसी ने जब इस बीमारी का सफल इलाज ढूंढ़ने की ज़िम्मेदारी भी इसी संकाय को सौंपी, तो इस संकाय ने ज्योतिष विद्या के ज़रिए हृदयाघात का सफल इलाज कर चिकित्सा क्षेत्र में उपचार की एक नई विधा की खोज कर डाली।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञानं संकाय प्रमुख प्रोफ़ेसर शत्रुघ्न त्रिपाठी ने 213 ह्रदय रोगियों पर रिसर्च की और ज्योतिष विद्या से ह्रदय रोग का इलाज कर एक नई विधा को जन्म दे दिया। जिसके सहारे आज ह्रदय रोगियों का इलाज सफलतापूर्वक हो रहा है। यहां प्रतिदिन ओपीडी में भीड़ लगी रहती है। यहां मरीज की जन्मपत्री देख कर उनका इलाज किया जाता है। अभी तक किए गए इलाज के आंकड़ों पर भरोसा किया जाए अस्सी प्रतिशत से ज़्यादा मरीजों का इलाज सफल रहा है।
प्रोफ़ेसर त्रिपाठी की माने तो सबसे ज़्यादा रोगी शनि ग्रह के प्रकोप के कारण होते हैं। इसके अलावा गुरु, मंगल, शुक्र और राहू ह्रदयघात के अन्य कारक हैं। ऐसे रोगी जातकों का इलाज करके प्रोफेसर त्रिपाठी ने उन लोगों को ज्योतिष विद्या पर विश्वास करने को विवश कर दिया है, जो इसे अंधविश्वास कह कर इस विद्या का मजाक उड़ाते रहे हैं।
ह्रदय रोग से पीड़ित दिवाकर चौबे ने बताया कि वो इलाज के लिए सभी छोटे-बड़े डाक्टरों और अस्पतालों से निराश हो चुके थे। हर जगह उनके रोग को लाइलाज बताकर उन्हें वापस भेज दिया जाता था। लेकिन यहां आकर उन्हें नई जिंदगी मिल गई।
प्रोफ़ेसर त्रिपाठी की ख्याति बहुत ही जल्द दूर-दूर तक फ़ैल गई है। दूसरे प्रांतों से भी ह्रदय रोगी इलाज के लिए यहां आते हैं। इलाज की इस विधा को भारत सरकार के शिक्षा अनुदान आयोग ने मान्यता भी दे दी है। इस विधा में आध्यात्मिक उपचार के तहत हृदयाघात से बचाने के लिए बजरंग बाण, ललिता स्तोत्र, सहस्त्र नाम का दैनिक पाठ करने, नरसिंह मंत्र, शतचंडी प्रयोग, अमृतेश्वरी मंत्र, बटुक भैरव और महामृत्युंजय मंत्र का उच्चारण करने की सलाह दी जाती है।
इलाज की इस नवीन विधा के लिए प्रोफ़ेसर शत्रुघ्न त्रिपाठी को राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि अब तक उनके द्वारा 213 ह्रदय रोगियों का सफलता पूर्वक उपचार किया जा चुका है। इस विधि में कुंडली से पता चल जाता है कि व्यक्ति को ह्रदय रोग है या नहीं। व्यक्ति का इलाज ग्रहों की चाल पर निर्भर करता है।
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निम्नलिखित ग्रह स्थितियां हृदय विकार एवं मानसिक संताप उत्पन्न कर सकती हैं:—-
कुंडली में सूर्य की अवस्था हृदय की स्थिति की सूचक होती है। सूर्य समस्त सृष्टि में ऊर्जा एवं ताप का स्रोत है और यही कारण है कि वह जैविक देह में हृदय का सूचक है।
हृदय रोग की संभावना उस समय बढ़ जाती है जब सूर्य दुष्प्रभावित हो रहा हो। इसके अतिरिक्त सूर्य की राषि सिंह भी महत्वपूर्ण है । हृदय रोग मुख्यतः दो स्वरूपों में दृष्टिगोचर होता है पहला हृदयघात जो कि अकस्मात होता है तथा उसका किसी प्रकार का पूर्वाभास रोगी को नहीं होता और दूसरी समस्या वाल्व संबंधी । हृदय में अनेक छोटे छोटे सूराख सदृश वाल्व हाते हैं जो रुधिर के एकतरफा बहाव को नियंत्रित करते हैं ।
ये वाल्व प्रत्येक हार्ट धड़कन के साथ ही बंद होते हैं तथा रुधिर के पुनरागमन को बाधित करते हुए रक्तचाप को भी नियंत्रित करते हैं । इन वाल्व में उत्पन्न सिकुड़न या इनका बंद होना जानलेवा हो जाता है। हृदय की तरफ जाने वाली सभी धमनियों की स्थिति बुध द्वारा प्रदर्षित होती है तथा शरीर के किसी भी अंग में कोई सिकुड़न या खराबी का कारण शनि होता है ।
व्यक्ति के मस्तिष्क की अवस्था मंगल द्वारा प्रदर्षित होती है तथा रक्त एवं रक्त चाप चंद्रमा एवं कर्क राषि द्वारा देखे जाते हैं। हृदयाघात के अधिकांश प्रकरणों में देखा जा सकता है कि इसका मूल कारण कोई आकस्मिक मानसिक आघात होता है।
इस प्रकार के प्रकरणों में सूर्य एवं चंद्रमा पर मंगल का दुष्प्रभाव देखा गया है । मंगल एवं चंद्रमा संयुक्त रूप से व्यक्ति की मानसिक अवस्था के द्योतक होते हैं।
यदि मंगल युति अथवा दृष्टि से चंद्रमा को दुष्प्रभावित कर रहा हो तो व्यक्ति में असामान्य रक्तचाप की शिकायत देखने में आती है तथा जब यह सूर्य को भी प्रभावित करें और दषा, अंतर्दषा एवं गोचरवष इन तीनों का सामूहिक प्रभाव हो तब व्यक्ति किसी मानसिक आघात से पीड़ित होकर हृदयाघात की अवस्था में चला जाता है ।
इस प्रकार का आघात शनि, राहु एवं केतु भी उत्पन्न कर सकते हैं बषर्ते वे सूर्य एवं चंद्रमा को दुष्प्रभावित कर रहे हों ।
छठे भाव में स्थित ग्रह या उसके स्वामी तथा बाधक स्थानाधिपति या बाधक भाव में उपस्थित ग्रह की दषा, अंतर या प्रत्यंतर में युति कब होती है।
यदि इसके साथ ही प्रबल मारकेष भी किसी रूप में कार्यरत हो रहा है, तो मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट होगा, किंतु एकादषेष या एकादष भाव में उपस्थित ग्रह की भी किसी रूप में दषा, अंतर या प्रत्यंतर हो तो व्यक्ति निःसंदेह उपचार से निरोग हो जाएगा।
यदि दषानाथ, अंतरनाथ या प्रत्यंतरनाथ केतु या शनि हो अथवा केतु से युत कोई ग्रह हो तो ऐसी अवस्था में शल्य चिक्त्सिा के योग बनते हैं, किंतु शल्य चिकित्सा द्वारा रोग ठीक होने के लिए आवष्यक है कि शनि अथवा केतु कंुडली में सकारात्मक अवस्था में उपस्थित हो, अन्यथा शल्य चिकित्सा सफल नहीं हो पाती है तथा अन्य पीड़ाएं भी उत्पन्न हो जाती हैं। बुध पर यदि शनि एवं केतु का प्रभाव हो तो एंजियोग्राफी एवं एंजियोप्लास्टी हो सकती है
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हृदय रोग के अनेक ज्योतिष योग हैं जोकि इस प्रकार हैं-
—पंचमेश द्वादश भाव में हो या पंचमेश-द्वादशेश दोनों ६,८,१२वें बैठे हों, पंचमेश का नवांशेश पापग्रह युत या दृष्ट हो।
—-पंचमेश या पंचम भाव सिंह राशि पापयुत या दृष्ट हो।
—-पंचमेश व षष्ठेश की छठे भाव में युति हो तथा पंचम या सप्तम भाव में पापग्रह हों।
—-चतुर्थ भाव में गुरु-सूर्य-शनि की युति हो या मंगल, गुरु, शनि चतुर्थ भाव में हों या चतुर्थ या पंचम भाव में पापग्रह हों।
—पंचमेश पापग्रह से युत या दृष्ट हो या षष्ठेश सूर्य पापग्रह से युत होकर चतुर्थ भाव में हो।
—वृष, कर्क राशि का चन्द्र पापग्रह से युत या पापग्रहों के मध्य में हो।
—-षष्ठेश सूर्य के नवांश में हो।
—चतुर्थेश द्वादश भाव में व्ययेश के साथ हो या नीच, शत्राुक्षेत्राी या अस्त हो या जन्म राशि में शनि, मंगल, राहु या केतु हो तो जातक को हृदय रोग होता है।
—-शुक्र नीच राशि में हो तो उसकी महादशा में हृदय में शूल होता है। द्वितीयस्थ शुक्र हो तो भी उसकी दशा में हृदय शूल होता है।
—पंचम भाव, पंचमेश, सूर्यग्रह एवं सिंह राशि पापग्रहों के प्रभाव में हों तो जातक को दो बार दिल का दौरा पड़ता है।
—-पंचम भाव में नीच का बुध राहु के साथ अष्टमेश होकर बैठा हो, चतुर्थ भाव में शत्राुक्षेत्राीय सूर्य शनि के साथ पीड़ित हो, षष्ठेश मंगल भाग्येश चन्द्र के साथ बैठकर चन्द्रमा को पीड़ित कर रहा हो, व्ययेश छठे भाव में बैठा हो तो जातक को हृदय रोग अवश्य होता है।
—–राहु चौथे भाव में हो और लग्नेश पापग्रह से दृष्ट हो तो हृदय रोग जातक को अवश्य होता है।
—-चतुर्थ भाव में राहु हो तथा लग्नेश निर्बल और पापग्रहों से युत या दृष्ट हो।
—-चतुर्थेश का नवांश स्वामी पापग्रहों से दृष्ट या युत हो तो हृदय रोग होता है।
—-लग्नेश शत्राुक्षेत्राी या नीच राशि में हो, मंगल चौथे भाव में हो तथा शनि पर पापग्रहों की दृष्टि हो या सूर्य-चन्द्र-मंगल शत्राुक्षेत्राी हों या चन्द्र व मंगल अस्त हों यापापयुत या चन्द्र व मंगल की सप्तम भाव में युति हो तो जातक को हृदय रोग होता है।
—-शनि तथा गुरु पापगहों से पीड़ित या दृष्ट हों तो जातक को हृदय रोग एवं शरीर में कम्पन होता है।
शनि या गुरु षष्ठेश होकर चतुर्थ भाव में पापग्रह से युत या दृष्ट हो तो जातक को हृदय व कम्पन रोग होता है।
—-तृतीयेश राहु या केतु के साथ हो तो जातक को हृदय रोग के कारण मूर्च्छा रोग होता है।
——चतुर्थ भाव में मंगल, शनि और गुरु पापग्रहों से दृष्ट हों तो जातक को हृदय रोग के कारण कष्ट होता है।
—-स्थिर राशियों में सूर्य पीड़ित हो तो भी हृदय रोग होता है।
अधिकांश सिंह लग्न वालों को हृदय रोग होता है।
—-षष्ठेश की की बुध के साथ लग्न या अष्टम भाव में युति हो तो जातक को हृदय रोग का कैंसर तक हो सकता है।
—षष्ठ भाव में सिंह राशि में मंगल या बुध या गुरु हो तो हृदय रोग होता है।
—–छठे भाव में कुम्भ राशि में मंगल हो तो हृदय रोग होता है। छठे भाव में सिंह राशि हो तो भी हृदय रोग होता है।
—चतुर्थेश किसी शत्राु राशि में स्थित हो और चौथे भाव में शनि व राहु या मंगल व शनि या राहु व मंगल या मंगल हो एवं शनि या पापग्रह से दृष्ट हो तो हृदय रोग होता है।
—-सूर्य पापप्रभाव से पीड़ित हो तभी हृदय रोग होता है।
हार्टअटैक के लिए राहु-केतु क पाप प्रभाव होना आवश्यक है। हार्ट अटैक आकसिम्क होता है।
हृदय रोग होगा या नहीं यह जानने के लिए कुछ ज्योतिष योगों को समझने- जानने का प्रयास करते हे।
इन योगों के आधार पर आप किसी की कुण्डली देखकर यह जान सकेंगे कि जातक को यह रोग होगा या नहीं। कुछ प्रमुख हृदय रोग संबंधी ज्योतिष योग इस प्रकार हैं—-
—— सूर्य-शनि की युति त्रिाक भाव में हो या बारहवें भाव में हो तो यह रोग होता है।
—– अशुभ चन्द्र चौथे भाव में हो एवं एक से अधिक पापग्रहों की युति एक भाव में हो।
—- केतु-मंगल की युति चौथे भाव में हो।
—- अशुभ चन्द्रमा शत्रु राशि में या दो पापग्रहों के साथ चतुर्थ भाव में स्थित हो तो हृदय रोग होता है।
— सिंह लग्न में सूर्य पापग्रह से पीड़ित हो।
—- मंगल-शनि-गुरु की युति चौथे भाव में हो।
—- सूर्य की राहु या केतु के साथ युति हो या उस पर इनकी दृष्टि पड़ती हो।
—- शनि व गुरु त्रिक भाव अर्थात्‌ ६, ८, १२ के स्वामी होकर चौथे भाव में स्थित हों।
—-राहु-मंगल की युति १, ४, ७ या दसवें भाव में हो।
—– निर्बल गुरु षष्ठेश या मंगल से दृष्ट हो।
——चतुर्थ भाव में मंगल, शनि तथा गुरु का क्रूर ग्रहों से युक्त या दृष्ट होना। चतुर्थ भाव में गुरु, सूर्य तथा शनि की युति का अशुभ प्रभाव में होना। चतुर्थ भाव में षष्ठेश का क्रूर ग्रह से युक्त या दृष्ट होना। चतुर्थ भाव में क्रूर ग्रह होना और लग्नेश का पाप दृष्ट होकर बलहीन होना या शत्रु राशि या नीच राशि में होना। . मंगल का चतुर्थ भाव में होना और शनि का पापी ग्रहों से दृष्ट होना।
—– बुध पहले भाव में एवं सूर्य व शनि षष्ठेश या पापग्रहों से दृष्ट हों।
—- यदि सूर्य, चन्द्र व मंगल शत्रुक्षेत्री हों तो हृदय रोग होता है।
—- चौथे भाव में राहु या केतु स्थित हो तथा लग्नेश पापग्रहों से युत या दृष्ट हो तो हृदय पीड़ा होती है।
—- शनि या गुरु छठे भाव के स्वामी होकर चौथे भाव में स्थित हों व पापग्रहों से युत या दृष्ट हो तो हृदय कम्पन का रोग होता है।
——–शनि का चतुर्थ भाव में होना और षष्ठेश सूर्य का क्रूर ग्रह से युक्त या दृष्ट होना। चतुर्थ भाव में क्रूर ग्रह होना तथा चतुर्थेश का पापी ग्रहों से युक्त या दृष्ट होना या पापी ग्रहों के मध्य (पाप कर्तरी योग में) होना। चतुर्थेश का द्वादश भाव में द्वादशेश (व्ययेश) के साथ होना। पंचम भाव, पंचमेश, सिंह राशि तीनों का पापी ग्रहों से युक्त, दृष्ट या घिरा होना।
— लग्नेश चौथे हो या नीच राशि में हो या मंगल चौथे भाव में पापग्रह से दृष्ट हो या शनि चौथे भाव में पापग्रहों से दृष्ट हो तो हृदय रोग होता है।
—- चतुर्थ भाव में मंगल हो और उस पर पापग्रहों की दृष्टि पड़ती हो तो रक्त के थक्कों के कारण हृदय की गति प्रभावित होती है जिस कारण हृदय रोग होता है।
—– पंचमेश षष्ठेश, अष्टमेश या द्वादशेश से युत हो अथवा पंचमेश छठे, आठवें या बारहवें में स्थित हो तो हृदय रोग होता है।
—- पंचमेश नीच का होकर शत्रुक्षेत्री हो या अस्त हो तो हृदय रोग होता है।
—–पंचमेश तथा द्वादशेश का एक साथ छठे, आठवें, 11वें या 12 वें भाव में होना। पंचमेश तथा षष्ठेश दोनों का षष्ठम भाव में होना तथा पंचम या सप्तम भाव में पापी ग्रह का होना। अष्टमेश का चतुर्थ या पंचम भाव में स्थित होकर पाप प्रभाव में होना। चंद्र और मंगल का अस्त होकर पाप युक्त होना। सूर्य, चंद्र व मंगल का शत्रुक्षेत्री एवं पाप प्रभाव में होना। शनि व गुरु का अस्त, नीच या शत्रुक्षेत्री होना तथा सूर्य व चंद्र पर पाप प्रभाव होना।
—- पंचमेश छठे भाव में, आठवें भाव में या बारहवें भाव में हो और पापग्रहों से दृष्ट हो तो हृदय रोग होता है।
—- सूर्य पाप प्रभाव में हो तथा कर्क व सिंह राशि, चौथा भाव, पंचम भाव एवं उसका स्वामी पाप प्रभाव में हो अथवा एकादश, नवम एवं दशम भाव व इनके स्वामी पाप प्रभाव में हों तो हृदय रोग होता है।
—- मेष या वृष राशि का लग्न हो, दशम भाव में शनि स्थित हो या दशम व लग्न भाव पर शनि की दृष्टि हो तो जातक हृदय रोग से पीड़ित होता है।
—- लग्न में शनि स्थित हो एवं दशम भाव का कारक सूर्य शनि से दृष्ट हो तो जातक हृदय रोग से पीड़ित होता है।
— नीच बुध के साथ निर्बल सूर्य चतुर्थ भाव में युति करे, धनेश शनि लग्न में हो और सातवें भाव में मंगल स्थित हो, अष्टमेश तीसरे भाव में हो तथा लग्नेश गुरु-शुक्र के साथ होकर राहु से पीड़ित हो एवं षष्ठेश राहु के साथ युत हो तो जातक को हृदय रोग होता है।
—- चतुर्थेश एकादश भाव में शत्राुक्षेत्राी हो, अष्टमेश तृतीय भाव में शत्रुक्षेत्री हो, नवमेश शत्रुक्षेत्री हो, षष्ठेश नवम में हो, चतुर्थ में मंगल एवं सप्तम में शनि हो तो जातक को हृदय रोग होता है।
—- लग्नेश निर्बल और पाप ग्रहों से दृष्ट हो तथा चतुर्थ भाव में राहु स्थित हो तो जातक को हृदय पीड़ा होती है।
—— लग्नेश शत्रुक्षेत्री या नीच का हो, मंगल चौथे भाव में शनि से दृष्ट हो तो हृदय शूल होता है।
—- सूर्य-मंगल-चन्द्र की युति छठे भाव में हो और पापग्रहों से पीड़ित हो तो हृदय शूल होता है।
—- मंगल सातवें भाव में निर्बल एवं पापग्रहों से पीड़ित हो तो रक्तचाप का विकार होता है।
—- सूर्य चौथे भाव में शयनावस्था में हो तो हृदय में तीव्र पीड़ा होती है।
— लग्नेश चौथे भाव में निर्बल हो, भाग्येश, पंचमेश निर्बल हो, षष्ठेश तृतीय भाव में हो, चतुर्थ भाव पर केतु का प्रभाव हो तो जातक हृदय रोग से पीड़ित होता है।