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जीवन की रक्षा, समर्पण और मोक्ष के लिए भवानी की कृपा का अद्वितीय उपाय

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॥ भवान्यष्टकम् पुरश्चरण विधि ॥
(श्री आदि शंकराचार्य कृत अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र)
“नाथैः अनाथशरणं…” से प्रारम्भ यह स्तोत्र माँ भवानी की कृपा, रक्षा, आत्म-समर्पण और जीवनोद्धार हेतु अद्वितीय है।


🕉️ 1. पुरश्चरण क्या है?

“पुरश्चरण” का अर्थ है — किसी मंत्र/स्तोत्र का निश्चित नियम, संख्या व विधि से जप/पाठ, साथ में हवन, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन आदि करने का संकल्पपूर्ण अनुष्ठान।
👉 इससे स्तोत्र की पूर्ण सिद्धि और कृपा प्राप्त होती है।


📅 2. कब करें? (श्रेष्ठ समय)

समय कारण
नवरात्र (विशेषकर शारदीय या चैत्र) शक्ति-साधना हेतु श्रेष्ठ
अष्टमी, नवमी तिथि देवी तिथि
सोमवार या शुक्रवार देवी पूजन के प्रिय वार
पूर्णिमा/अमावस्या उपासना सिद्धि हेतु श्रेष्ठ
ब्रह्ममुहूर्त (4:00–6:00 am) उच्च ऊर्जा काल

🏡 3. कहाँ करें? (स्थान)

  • घर में उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा में स्थापित माँ दुर्गा/भवानी की मूर्ति या चित्र के समक्ष
  • शक्तिपीठ, दुर्गा मंदिर, या किसी शांत एकांत साधनास्थल में
  • माँ के समक्ष दीप, कर्पूर, धूप आदि जलाकर स्थान पवित्र करें
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🛕 4. क्यों करें? (लाभ)

उद्देश्य फल
भय, दु:ख, दुर्भाग्य निवारण देवी की कृपा से रक्षा
भक्ति व समर्पण आत्मिक शांति
स्त्री-संतान संबंधी समस्या निवारण मातृत्व व संतोष प्राप्ति
मृत्यु भय, दुर्भाव, आत्म-रक्षा देवी कवच की तरह कार्य करता है

📿 5. कितनी बार करें? (पाठ संख्या व काल)

स्तर पाठ संख्या अवधि
सामान्य 11 × 9 दिन 99 पाठ
मध्यम 108 × 9 दिन 972 पाठ
पूर्ण पुरश्चरण 1008 पाठ कुल + 108 हवन, 10 तर्पण, 1 ब्राह्मण भोजन

🙏 6. कैसे करें? (विस्तृत साधना विधि)

(1) संकल्प:

संकल्प लें —
“मम भय-शमनं, मातृकृपा प्राप्त्यर्थं, भवान्यष्टकपाठस्य पुरश्चरणं करिष्ये।”

(2) देवी पूजन सामग्री:

  • माँ भवानी/दुर्गा की मूर्ति/चित्र
  • लाल वस्त्र, चंदन, कुमकुम, अक्षत, पुष्प, दीप, धूप, नैवेद्य, दुर्गा सप्तशती यंत्र (ऐच्छिक)

(3) पूजन विधि:

  • हाथ में जल लेकर संकल्प करें
  • “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” जप से ध्यान
  • पंचोपचार पूजन करें

(4) पाठ विधि:

  • रुद्राक्ष या चंदन माला (108) से पाठ करें
  • स्पष्ट उच्चारण, मनःपूर्वक श्रद्धा सहित करें
  • हर पाठ के अंत में “ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः” या “ॐ नमो भवत्यै” कहें
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(5) समापन अनुष्ठान:

  • पाठ पूर्ण होने के बाद –
    🔸 1/10 भाग हवन (घी, तिल, गुड़, पुष्प मिश्रित)
    🔸 1/10 भाग तर्पण (जल से “स्वाहा” के स्थान पर “तर्पयामि”)
    🔸 1/10 भाग मार्जन (स्नान जल अभिमंत्रित करके छिड़कें)
    🔸 ब्राह्मण भोजन / कन्या भोजन / वस्त्रदान

🕯️ 7. स्तोत्र पाठ (प्रथम श्लोक):

नाथैः अनाथशरणं त्वं भगिनि‍ति ज्ञात्वा महादेवि शम्भोः
मोक्षाय मां कलय मां तव चरणं सेवामृतं देहि मेऽम्ब॥


⚠️ 8. नियम व सावधानियाँ:

  • सात्त्विक आहार, ब्रह्मचर्य पालन
  • स्तोत्र का उच्चारण स्पष्ट रखें
  • पूरे अनुष्ठान में एक ही स्थान, आसन, समय नियमित रखें
  • नवरात्र में कर रहे हों तो नवदुर्गा पूजन भी जोड़ सकते हैं
  • प्रतिदिन पाठ के पूर्व दीप जलाकर “माँ भवानी” का आवाहन करें

भवान्यष्टकम् 

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।

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न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥१॥

भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः।

कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥२॥

न जानामि दानं न च ध्यानयोगं न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्।

न जानामि पूजां न च न्यासयोगम् गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥३॥

न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।

न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥४॥

कुकर्मी कुसंगी कुबुद्धिः कुदासः कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।

कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहम् गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥५॥

प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्।

न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥६॥

विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।

अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥७॥

अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः।

विपत्तौ प्रविष्टः प्रणष्टः सदाहम् गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥८॥

इति श्रीमच्छड़्कराचार्यकृतं भवान्यष्टकं सम्पूर्णम्।