॥ श्री देवी खड्गमाला स्तोत्रम् पुरश्चरण साधना विधि ॥
(यह स्तोत्र तंत्रशास्त्र में अत्यंत गोपनीय और शक्तिशाली देवी-स्तोत्रों में से एक है।)
श्रीविद्या उपासना में इसे विशेष स्थान प्राप्त है — यह श्रीचक्र की परिक्रमा समान फलदायक है। इसे सप्तशती से भी तीव्र फलदायक माना गया है।
🔱 १. श्री खड्गमाला स्तोत्र क्या है?
विषय | विवरण |
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📜 स्रोत | ब्रह्माण्डपुराण, ललिता तंत्र, श्रीविद्या संप्रदाय |
🔱 आराध्य | श्रीललिता त्रिपुरसुन्दरी (श्रीचक्रेश्वरी) |
✨ स्वरूप | श्रीचक्र के प्रत्येक आवरण (मंडल) में स्थित देवियों के नामों की माला |
🗡️ “खड्ग” का अर्थ | “ज्ञान की तलवार” (माया, अज्ञान, भय को काटने वाली शक्ति) |
📅 २. कब करें? (उत्तम काल)
समय | कारण |
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🌅 ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4–6) | शक्ति-साधना के लिए उपयुक्त |
🌙 रात्रि 9 बजे के बाद | रात्रि शक्ति की होती है — अत्यंत प्रभावी |
🌑 नवरात्रि, पूर्णिमा, अमावस्या, शुक्रवार | देवी आराधना के विशेष दिन |
👉 विशेषकाल: गुप्त नवरात्रि, माघ/आषाढ़ अमावस्या, शारदीय/वासंतिक नवरात्र
🛕 ३. कहाँ करें? (स्थान)
- एकांत, पवित्र और साफ पूजा स्थल
- श्रीचक्र, श्रीयंत्र, त्रिपुरसुन्दरी चित्र/यंत्र के समक्ष
- दक्षिण की ओर मुख कर के बैठना श्रेष्ठ (तांत्रिक परंपरा में)
📿 ४. कितना करें? (संख्या निर्धारण)
साधना स्तर | पाठ संख्या | अवधि |
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प्रारंभिक (साधक) | 11 × 9 दिन = 99 पाठ | |
मध्यम | 21 × 21 दिन = 441 पाठ | |
पूर्ण पुरश्चरण | 108 × 9 दिन = 972 पाठ या 1008 पाठ | |
परम सिद्धि हेतु | 1008 × 10 = 10,080 पाठ (नित्य न्यास के साथ) |
🌼 ५. क्यों करें? (लाभ)
उद्देश्य | फल |
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त्रिपुरसुन्दरी की कृपा | परम सौंदर्य, प्रसाद, स्फूर्ति |
सिद्धियाँ व रहस्यमयी ज्ञान | मन्त्रसिद्धि, इष्ट दर्शन |
अघोरी बाधा, ग्रह दोष निवारण | शक्तिशाली कवच |
अर्थ-धर्म-काम-मोक्ष में सहायता | चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति |
🧘♂️ ६. कैसे करें? (विस्तृत विधि)
(१) संकल्प लें:
“मम सर्वक्लेश-निवारणार्थं, त्रिपुरसुन्दरीप्रीत्यर्थं श्रीखड्गमाला-स्तोत्रस्य पुरश्चरणं करिष्ये।”
(२) पूजन विधि:
चरण | विधि |
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श्रीगणेश पूजन | “ॐ गं गणपतये नमः” से |
कलश स्थापना | श्री यंत्र या चित्र के समक्ष |
पंचोपचार पूजन | गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य |
श्रीचक्र/श्रीविद्या न्यास (यदि जानें तो) | अंगन्यास, करन्यास, ध्यान |
मूल ध्यान मंत्र | “ॐ श्रीमात्रे नमः”, “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ललितायै नमः” |
(३) स्तोत्रपाठ विधि
- स्पष्ट उच्चारण से खड्गमाला स्तोत्र का पाठ करें
- पहले एक बार श्रीचक्र ध्यान करें:
“सर्वानन्दमयी देवी… त्रैलोक्य-मोहनचक्रेश्वरी नमोऽस्तु ते…” - प्रत्येक पाठ के अंत में:
- “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्रीललितायै नमः” × 108
- फिर श्रीसूक्त या कनकधारा यदि चाहें
(४) हवन (पाठ का दशांश)
सामग्री | विवरण |
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आहुति मंत्र | “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं खड्गमालायै स्वाहा” |
सामग्री | नवगंध, तिल, कमलगट्टा, घी आदि |
संख्या | प्रत्येक 100 पाठों पर 10 हवन मंत्र |
(५) तर्पण/मार्जन/दान
- तर्पण — जल से देवी को समर्पण
- मार्जन — मंत्र स्नान
- दान — कन्या भोजन, वस्त्र, सुहाग सामग्री
📏 ७. नियम
नियम | कारण |
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ब्रह्मचर्य, सात्त्विकता | देवी साधना की नींव |
मौन या सीमित वाणी | मंत्र की आंतरिक शक्ति बनी रहे |
नित्य आसन, स्थान और समय | चैतन्य संचय हेतु |
🔚 निष्कर्ष:
खड्गमाला स्तोत्र कोई साधारण स्तुति नहीं — यह श्रीचक्र की मानसिक परिक्रमा है।
जो इसे श्रद्धा और नियम से करता है, वह स्वयं श्रीविद्या की अनुग्रह पात्रता प्राप्त करता है।
मंत्रसिद्धि, रक्षण, लक्ष्मी, सौंदर्य और परमानन्द — सब इसमें समाहित हैं।
श्री देवी खड्गमाला स्तोत्रम्
श्री देवी प्रार्थन
ह्रीङ्कारासनगर्भितानलशिखां सौः क्लीं कलां बिभ्रतीं
सौवर्णाम्बरधारिणीं वरसुधाधौतां त्रिनेत्रोज्ज्वलाम् ।
वन्दे पुस्तकपाशमङ्कुशधरां स्रग्भूषितामुज्ज्वलां
त्वां गौरीं त्रिपुरां परात्परकलां श्रीचक्रसञ्चारिणीम् ॥
अस्य श्री शुद्धशक्तिमालामहामन्त्रस्य,
उपस्थेन्द्रियाधिष्ठायी
वरुणादित्य ऋषयः
देवी गायत्री छन्दः
सात्विक ककारभट्टारकपीठस्थित कामेश्वराङ्कनिलया महाकामेश्वरी श्री ललिता भट्टारिका देवता,
ऐं बीजं
क्लीं शक्तिः
सौः कीलकं
मम खड्गसिद्ध्यर्थे सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः
मूलमन्त्रेण षडङ्गन्यासं कुर्यात् ।
ध्यानम्
तादृशं खड्गमाप्नोति येन हस्तस्थितेनवै ।
अष्टादश महाद्वीप सम्राट् भोत्का भविष्यति ॥
आरक्ताभां त्रिणेत्रामरुणिमवसनां रत्नताटङ्करम्यां
हस्ताम्भोजैस्सपाशाङ्कुश मदन धनुस्सायकैर्विस्फुरन्तीम् ।
आपीनोत्तुङ्ग वक्षोरुह विलुठत्तार हारोज्ज्वलाङ्गीं
ध्यायेदम्भोरुहस्था-मरुणिमवसना-मीश्वरीमीश्वराणाम् ॥
लमित्यादिपञ्च पूजां कुर्यात्, यथाशक्ति मूलमन्त्रं जपेत् ।
लं – पृथिवीतत्त्वात्मिकायै श्री ललितात्रिपुरसुन्दरी पराभट्टारिकायै गन्धं परिकल्पयामि – नमः
हं – आकाशतत्त्वात्मिकायै श्री ललितात्रिपुरसुन्दरी पराभट्टारिकायै पुष्पं परिकल्पयामि – नमः
यं – वायुतत्त्वात्मिकायै श्री ललितात्रिपुरसुन्दरी पराभट्टारिकायै धूपं परिकल्पयामि – नमः
रं – तेजस्तत्त्वात्मिकायै श्री ललितात्रिपुरसुन्दरी पराभट्टारिकायै दीपं परिकल्पयामि – नमः
वं – अमृततत्त्वात्मिकायै श्री ललितात्रिपुरसुन्दरी पराभट्टारिकायै अमृतनैवेद्यं परिकल्पयामि – नमः
सं – सर्वतत्त्वात्मिकायै श्री ललितात्रिपुरसुन्दरी पराभट्टारिकायै ताम्बूलादिसर्वोपचारान् परिकल्पयामि – नमः
श्री देवी सम्बोधनं (1)
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं सौः ॐ नमस्त्रिपुरसुन्दरी,
न्यासाङ्गदेवताः (6)
हृदयदेवी, शिरोदेवी, शिखादेवी, कवचदेवी, नेत्रदेवी, अस्त्रदेवी,
तिथिनित्यादेवताः (16)
कामेश्वरी, भगमालिनी, नित्यक्लिन्ने, भेरुण्डे, वह्निवासिनी, महावज्रेश्वरी, शिवदूती, त्वरिते, कुलसुन्दरी, नित्ये, नीलपताके, विजये, सर्वमङ्गले, ज्वालामालिनी, चित्रे, महानित्ये,
दिव्यौघगुरवः (7)
परमेश्वर, परमेश्वरी, मित्रेशमयी, षष्ठीशमयी, चर्यानाथमयी, लोपामुद्रमयी, अगस्त्यमयी,
सिद्धौघगुरवः (4)
कालतापशमयी, धर्माचार्यमयी, मुक्तकेशीश्वरमयी, दीपकलानाथमयी,
मानवौघगुरवः (8)
विष्णुदेवमयी, प्रभाकरदेवमयी, तेजोदेवमयी, मनोजदेवमयि, कल्याणदेवमयी, वासुदेवमयी, रत्नदेवमयी, श्रीरामानन्दमयी,
श्रीचक्र प्रथमावरणदेवताः
अणिमासिद्धे, लघिमासिद्धे, गरिमासिद्धे, महिमासिद्धे, ईशित्वसिद्धे, वशित्वसिद्धे, प्राकाम्यसिद्धे, भुक्तिसिद्धे, इच्छासिद्धे, प्राप्तिसिद्धे, सर्वकामसिद्धे, ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारि, वैष्णवी, वाराही, माहेन्द्री, चामुण्डे, महालक्ष्मी, सर्वसङ्क्षोभिणी, सर्वविद्राविणी, सर्वाकर्षिणी, सर्ववशङ्करी, सर्वोन्मादिनी, सर्वमहाङ्कुशे, सर्वखेचरी, सर्वबीजे, सर्वयोने, सर्वत्रिखण्डे, त्रैलोक्यमोहन चक्रस्वामिनी, प्रकटयोगिनी,
श्रीचक्र द्वितीयावरणदेवताः
कामाकर्षिणी, बुद्ध्याकर्षिणी, अहङ्काराकर्षिणी, शब्दाकर्षिणी, स्पर्शाकर्षिणी, रूपाकर्षिणी, रसाकर्षिणी, गन्धाकर्षिणी, चित्ताकर्षिणी, धैर्याकर्षिणी, स्मृत्याकर्षिणी, नामाकर्षिणी, बीजाकर्षिणी, आत्माकर्षिणी, अमृताकर्षिणी, शरीराकर्षिणी, सर्वाशापरिपूरक चक्रस्वामिनी, गुप्तयोगिनी,
श्रीचक्र तृतीयावरणदेवताः
अनङ्गकुसुमे, अनङ्गमेखले, अनङ्गमदने, अनङ्गमदनातुरे, अनङ्गरेखे, अनङ्गवेगिनी, अनङ्गाङ्कुशे, अनङ्गमालिनी, सर्वसङ्क्षोभणचक्रस्वामिनी, गुप्ततरयोगिनी,
श्रीचक्र चतुर्थावरणदेवताः
सर्वसङ्क्षोभिणी, सर्वविद्राविनी, सर्वाकर्षिणी, सर्वह्लादिनी, सर्वसम्मोहिनी, सर्वस्तम्भिनी, सर्वजृम्भिणी, सर्ववशङ्करी, सर्वरञ्जनी, सर्वोन्मादिनी, सर्वार्थसाधिके, सर्वसम्पत्तिपूरिणी, सर्वमन्त्रमयी, सर्वद्वन्द्वक्षयङ्करी, सर्वसौभाग्यदायक चक्रस्वामिनी, सम्प्रदाययोगिनी,
श्रीचक्र पञ्चमावरणदेवताः
सर्वसिद्धिप्रदे, सर्वसम्पत्प्रदे, सर्वप्रियङ्करी, सर्वमङ्गलकारिणी, सर्वकामप्रदे, सर्वदुःखविमोचनी, सर्वमृत्युप्रशमनि, सर्वविघ्ननिवारिणी, सर्वाङ्गसुन्दरी, सर्वसौभाग्यदायिनी, सर्वार्थसाधक चक्रस्वामिनी, कुलोत्तीर्णयोगिनी,
श्रीचक्र षष्टावरणदेवताः
सर्वज्ञे, सर्वशक्ते, सर्वैश्वर्यप्रदायिनी, सर्वज्ञानमयी, सर्वव्याधिविनाशिनी, सर्वाधारस्वरूपे, सर्वपापहरे, सर्वानन्दमयी, सर्वरक्षास्वरूपिणी, सर्वेप्सितफलप्रदे, सर्वरक्षाकरचक्रस्वामिनी, निगर्भयोगिनी,
श्रीचक्र सप्तमावरणदेवताः
वशिनी, कामेश्वरी, मोदिनी, विमले, अरुणे, जयिनी, सर्वेश्वरी, कौलिनि, सर्वरोगहरचक्रस्वामिनी, रहस्ययोगिनी,
श्रीचक्र अष्टमावरणदेवताः
बाणिनी, चापिनी, पाशिनी, अङ्कुशिनी, महाकामेश्वरी, महावज्रेश्वरी, महाभगमालिनी, सर्वसिद्धिप्रदचक्रस्वामिनी, अतिरहस्ययोगिनी,
श्रीचक्र नवमावरणदेवताः
श्री श्री महाभट्टारिके, सर्वानन्दमयचक्रस्वामिनी, परापररहस्ययोगिनी,
नवचक्रेश्वरी नामानि
त्रिपुरे, त्रिपुरेशी, त्रिपुरसुन्दरी, त्रिपुरवासिनी, त्रिपुराश्रीः, त्रिपुरमालिनी, त्रिपुरसिद्धे, त्रिपुराम्बा, महात्रिपुरसुन्दरी,
श्रीदेवी विशेषणानि – नमस्कारनवाक्षरीच
महामहेश्वरी, महामहाराज्ञी, महामहाशक्ते, महामहागुप्ते, महामहाज्ञप्ते, महामहानन्दे, महामहास्कन्धे, महामहाशये, महामहा श्रीचक्रनगरसाम्राज्ञी, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमः ।
फलश्रुतिः
एषा विद्या महासिद्धिदायिनी स्मृतिमात्रतः ।
अग्निवातमहाक्षोभे राजाराष्ट्रस्यविप्लवे ॥
लुण्ठने तस्करभये सङ्ग्रामे सलिलप्लवे ।
समुद्रयानविक्षोभे भूतप्रेतादिके भये ॥
अपस्मारज्वरव्याधिमृत्युक्षामादिजेभये ।
शाकिनी पूतनायक्षरक्षःकूष्माण्डजे भये ॥
मित्रभेदे ग्रहभये व्यसनेष्वाभिचारिके ।
अन्येष्वपि च दोषेषु मालामन्त्रं स्मरेन्नरः ॥
तादृशं खड्गमाप्नोति येन हस्तस्थितेनवै ।
अष्टादशमहाद्वीपसम्राड्भोक्ताभविष्यति ॥
सर्वोपद्रवनिर्मुक्तस्साक्षाच्छिवमयोभवेत् ।
आपत्काले नित्यपूजां विस्तारात्कर्तुमारभेत् ॥
एकवारं जपध्यानं सर्वपूजाफलं लभेत् ।
नवावरणदेवीनां ललिताया महौजनः ॥
एकत्र गणनारूपो वेदवेदाङ्गगोचरः ।
सर्वागमरहस्यार्थः स्मरणात्पापनाशिनी ॥
ललितायामहेशान्या माला विद्या महीयसी ।
नरवश्यं नरेन्द्राणां वश्यं नारीवशङ्करम् ॥
अणिमादिगुणैश्वर्यं रञ्जनं पापभञ्जनम् ।
तत्तदावरणस्थायि देवताबृन्दमन्त्रकम् ॥
मालामन्त्रं परं गुह्यं परं धाम प्रकीर्तितम् ।
शक्तिमाला पञ्चधास्याच्छिवमाला च तादृशी ॥
तस्माद्गोप्यतराद्गोप्यं रहस्यं भुक्तिमुक्तिदम् ॥
॥ इति श्री वामकेश्वरतन्त्रे उमामहेश्वरसंवादे देवीखड्गमालास्तोत्ररत्नं समाप्तम् ॥