नागों की कृपा, बाधाओं के निवारण, कालसर्प दोष की शांति, सुरक्षा एवं रहस्यमय प्रगति के लिए
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॥ नाग स्तोत्रम् पुरश्चरण साधना विधि ॥
(नागों की कृपा, बाधा निवारण, कालसर्प दोष शांति, रक्षा व रहस्यमय उन्नति हेतु)
🔱 1. पुरश्चरण क्या है?
“पुरश्चरण” का अर्थ होता है — मंत्र/स्तोत्र की पूर्व साधना, जिसमें विशेष संख्या में पाठ, जप, हवन, तर्पण, मार्जन, ब्राह्मण भोजन आदि करके उस स्तोत्र/मंत्र की पूर्ण शक्ति प्राप्त की जाती है। यह साधना विशेष उद्देश्य, भक्ति या सिद्धि हेतु की जाती है।
🐍 2. नाग स्तोत्र पुरश्चरण कब करें?
उत्तम समय:
- श्रावण मास (विशेषकर नाग पंचमी पर आरंभ करें)
- शुक्ल पक्ष में किसी पंचमी, सोमवार, बुधवार को
- राहुकाल में न करें (क्योंकि नागों का काल नियंत्रण से जुड़ा पक्ष है)
- सिद्ध योग, अमृत योग, पुष्य नक्षत्र, शतभिषा, अनुराधा उत्तम
🔥 3. क्यों करें? (लाभ)
उद्देश्य | लाभ |
---|---|
कालसर्प दोष निवारण | कुण्डलीगत बाधा से मुक्ति |
भय, व्याधि, संतान बाधा | नागों की कृपा व रक्षा |
तांत्रिक बाधा/सर्पदोष | रक्षा कवच निर्माण |
गुप्त विद्याओं की सिद्धि | नाग शक्ति का आह्वान |
🧘♂️ 4. कहाँ करें? (स्थान)
- शिव मंदिर या नागदेवता की प्रतिमा के समीप
- घर में पूर्व या उत्तर दिशा में स्वच्छ स्थान
- नाग पाताल चित्र/मूर्ति (सांकेतिक नाग) स्थापित करें
- तांत्रिक साधक पीपल, बिल्व वृक्ष के पास रात्रिकाल में भी कर सकते हैं
🪔 5. कैसे करें? (विधि)
पूजन सामग्री:
- नाग चित्र/मूर्ति
- दुग्ध, कर्पूर, चंदन, बिल्वपत्र
- तांबे का लोटा (जल से भरा)
- कुशा आसन
- दीपक, धूप, नैवेद्य
- रुद्राक्ष माला (108 बीजों वाली)
साधना विधि (विस्तार से):
✅ (1) संकल्प:
“ॐ नमो नागराजाय। आज मैं [अपना नाम] अमुक संख्या में नाग स्तोत्र का पुरश्चरण कर रहा हूँ… [उद्देश्य बताएं]… कृपया सिद्धि प्रदान करें।”
✅ (2) न्यास एवं ध्यान:
ध्यान करें —
“त्रिनेत्रं, नीलवर्णं, सर्पलिप्तं महाबलम्।
नागेश्वरं नमाम्यद्य, सर्वदोष विनाशकम्॥”
✅ (3) स्तोत्र पाठ
प्रत्येक दिन कम से कम 11, 21, 108 बार नाग स्तोत्र का पाठ करें।
(स्तोत्र नीचे दिया जा रहा है)
✅ (4) जप के बाद तर्पण (तुलसी जल या दुग्ध से), दीप दान करें
✅ (5) समापन पर हवन, तर्पण, ब्राह्मण भोजन आवश्यक
📿 6. कितनी बार करें?
पुरश्चरण संख्या (नियम):
- सरल: 11 पाठ प्रतिदिन × 9 दिन
- मध्यम: 108 पाठ प्रतिदिन × 21 दिन
- पूर्ण: 1000 पाठ कुल, + 10% हवन, तर्पण, मार्जन, भोजन
🙏 7. नाग स्तोत्रम् (प्रमुख पाठ)
॥ नाग स्तोत्रम् ॥
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा ॥एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायं काले पठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः ॥तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्॥
📌 इसके अतिरिक्त तांत्रिक साधक “नागगायत्री” या “नागार्जुन स्तोत्र” का भी उपयोग कर सकते हैं।
🧿 8. विशेष नियम व सावधानियाँ:
- ब्रह्मचर्य और सात्त्विक आहार रखें
- झूठ, क्रोध, मांस-मदिरा वर्जित
- रुद्राक्ष या चंदन माला का प्रयोग करें
- नागों का अपमान, चित्र फेंकना आदि न करें
- “नागपंचमी” या “श्रावण सोमवार” पर पूर्णाहुति दें
यदि आप चाहें तो मैं इस नाग स्तोत्रम् पुरश्चरण के लिए
- संपूर्ण दैनिक क्रम
- होम/हवन मंत्र
- तर्पण विधि
भी बना कर दे सकता हूँ।
क्या आप चाहेंगे?
॥ नाग स्तोत्रम् ॥
ब्रह्म लोके च ये सर्पाःशेषनागाः पुरोगमाः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥1॥
विष्णु लोके च ये सर्पाःवासुकि प्रमुखाश्चये।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥2॥
रुद्र लोके च ये सर्पाःतक्षकः प्रमुखास्तथा।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥3॥
खाण्डवस्य तथा दाहेस्वर्गन्च ये च समाश्रिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥4॥
सर्प सत्रे च ये सर्पाःअस्थिकेनाभि रक्षिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥5॥
प्रलये चैव ये सर्पाःकार्कोट प्रमुखाश्चये।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥6॥
धर्म लोके च ये सर्पाःवैतरण्यां समाश्रिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥7॥
ये सर्पाः पर्वत येषुधारि सन्धिषु संस्थिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥8॥
ग्रामे वा यदि वारण्येये सर्पाः प्रचरन्ति च।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥9॥
पृथिव्याम् चैव ये सर्पाःये सर्पाः बिल संस्थिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥10॥
रसातले च ये सर्पाःअनन्तादि महाबलाः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥11॥