1. जैविक कारक
बाल अपराध की उत्पत्ति में वंशानुक्रम तथा शारीरिक दोनों ही प्रकार के जैविक कारकों का योगदान होता है।सीजर लोम्बोसो तथा सिरिल बर्ट नै बाल अपराध की उत्पत्ति में वंशानुक्रम को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना है। लोम्ब्रोसो के अनुसार अपराधी जन्मजात होते है और उनकी कुछ निश्चित शारीरिक व मानसिक विशेषताएँ होती हैँ। बर्ट के विचार भी इसी प्रकार के है। शारीरिक कारकों का बालक के व्यक्तित्व एवं व्यवहार पर गहरा प्रभाव पडता है। यदि शारीरिक विकास असामान्य हो तो बालक के व्यवहार में भी असामान्यता उत्पन्न हो सकती है। शरीर का असन्तुलित विकास, शारीरिक दोष, टी बी, दृष्टिदोष, आदि कारक अपराध को बढावा देते हैँ।
2. सामाजिक कारक-बाल अपराध को बढावा देने वाले सामाजिक कारकों में सर्व प्रमुख है परिवार की दशाएँ। इसके अतिरिक्त विद्यालय तथा समाज की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परिवार व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण से अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाता
है। यदि परिवार का वातावरणा स्वस्थ न हो तो बालक के व्यक्तित्व पर इसका बुरा असर पड़ता है। परिवार में संरक्षक की मृत्यु, माता-पिता के बीच तलाक, धन अर्जित करने वाले व्यक्ति का शराबी हो जाना आदि ऐसी भग्न परिवार की स्थितियों है , जिनमें नियन्त्रण के अभाव के कारण बालक स्वतंत्र और उच्छखल हो जाते है और उनके अन्दर अपराध प्रवृत्ति बढती है। माता-पिता के अशिक्षित होने से बालको को समुचित मार्ग दर्शन नहीँ मिल पाता।
परिवार में यदि माँ-पिता, भाई-बहन या किसी अन्य सदस्य का अनैतिक चरित्र होता है तो उसका भी कुप्रभाव बालकों पर पड़ता है और उनमें आपराधिक प्रवृतियाँ बढती है। माता-पिता द्वारा अपने बालकों के बीच पक्षपात करने से तिरस्कृत बालक के अन्दर विद्रोह की भावना जन्म लेती है जिससे वह आक्रामक हो सकता है। जिन निम्न सामाजिक आर्थिक स्थिति के कारण जब परिवार में बालको की आवश्यकताएँ सामान्य रूप से पूरो नहीं हो पाती तो बालक चोरो आदि की प्रदृत्ति विकसित कर लेते है। विद्यालय में बालक अपने दिन का अधिकांश समय व्यतीत करता है अत: वहीं के वातावरण का प्रभाव बालक के ऊपर विस्तृत रूप से पडता है।
विद्यालय का दूषित भौतिक वातावरण, दूषित, पाठ्यक्रम. शिक्षकों का दुर्व्यवहार, मनोरंजनो के साधनों का अभाव आदि ऐसे अस्वस्थ कारक है जो बालको के अन्दर अपराध प्रवृति उत्पन्न करती है| समाज का दूषित वातावरण भी बालकों को अपराधी बनाने में सहायक होता है। शराब, वेशयावृत्तिद, जुआ, बेमेल विवाह आदि दूषित वातावरण एवं कुप्रथाओं के प्रभाव से भी बालको में अपराध प्रवृत विकसित होती है। समाज का गिरा चरित्र, दूषित वातावरण, दूषित साहित्य, दूषित राजनीति, खराब प्रभाव डालनेवाले चलचित्र, पास पडोस का दूषित वातावरण, मनोरंजन के अत्यधिक साधन होना अथवा अत्यन्त सीमित साधन होना, बुरे साथी, सामाजिक क्रुप्रथाएँ आदि ऐसे सामाजिक कारक है जो बालकों में अपराध के बढावा देते है।
3. मनोवैज्ञानिक कारक-बहुत से ऐसे मनौवैज्ञानिक कारक है जो बालक की अपराध प्रवृति को उत्पन्न करने और विकसित करने मे सहायक होते है। लगभग एक प्रतिशत बाल अपराधियों में अपराध का कारणा मस्तिष्क क्षति पाई गई है। पाच प्रतिशत बाल अपराध का कारण निम्न बुद्धि स्तर पाया गया है। निम्न बुद्धि के कारण बालक अपने व्यवहार के परिणाम को जान सकने में असमर्थ होता है और अपने अज्ञान के कारण ही अपराधी गैंग का शिकार हो जाता है जो उस पर प्रभुत्व जमाते है, उसका शोषण करते है और निरन्तर उसे अपराध कार्यों में लगाये रखते है।
मनस्ताप एवं मनोविक्षिष्टि भी बाल अपराध व्यवहार के साथ सम्बद्ध पाई गई हैं। लगभग तीन से पॉच प्रतिशत बालअपराधी मनस्तापीय विकारों से ग्रस्त होते है। लगभग इतना ही प्रतिशत मनोंविक्षिप्ति से ग्रस्त बाल अपराधियों का है। बाल अपराधियों का व्यक्तित्व मनोविकारी होता है। ये आवेगी अनियत्रित तथा शर्म एवं अपराध भावना से युक्त होते है।
चूंकि इनमें नियन्त्रण का अभाव होता है। ये बिना किसी योजना के, मात्र क्षणिक आवेश में कोई आपराधिक कृत्य कर डालते है जैसे बिना आवश्यकता के कुछ धन चुरा लेना या वे केई कार चुरा लेते है और थोडी दूर तक ले जाकर उसे छोड़ देते है। इनके आवेगी कृत्य कभी-कभी हिसक भी हो जाते है और व्यक्ति अथवा सम्पत्ति को हानि पहुँचाते है। इस प्रकार अनेक जैविक,सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक कारण अपराध की उत्पत्ति एवं उसके विकास में सहायक होते है |