
कुम्भ/अर्क विवाह
मंगल दोष: मिथक, सत्य और समाधान
मंगल दोष या मांगलिक दोष वैदिक ज्योतिष का एक प्रमुख विषय है, जिसे अक्सर वैवाहिक जीवन की शांति और स्थायित्व से जोड़ा जाता है। विवाह से पूर्व जब कुंडली मिलान किया जाता है, तो सबसे पहले मंगल दोष को देखा जाता है। परंतु इसके पीछे केवल डर नहीं, बल्कि तर्कसंगत कारण और उपचार भी होते हैं।
🔍 क्या है मंगल दोष?
जब मंगल ग्रह लग्न, चंद्र, सूर्य या सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में स्थित होता है, तब उस व्यक्ति की कुंडली को मांगलिक कुंडली कहा जाता है। इसे वैवाहिक जीवन में संघर्ष, वाद-विवाद, या स्वास्थ्य समस्याओं से जोड़ा जाता है।
❗ मांगलिक से मांगलिक विवाह – क्या यह समाधान है?
सामान्य धारणा है कि मांगलिक व्यक्ति का विवाह केवल मांगलिक से ही करना चाहिए। परंतु यह हर स्थिति में सही नहीं होता। कभी-कभी यह दोष दोगुना भी हो सकता है और अधिक समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।
✅ मांगलिक दोष के परिहार (Exceptions):
आयु 30 वर्ष से अधिक हो जाए, तो दोष प्रभावहीन हो जाता है।
अगर वर/वधु की कुंडली में उसी स्थान पर शनि, राहु, केतु या सूर्य हो, जहाँ दूसरे की कुंडली में मंगल हो – तो दोष का प्रभाव कम हो जाता है।
यदि गुण मिलान में 30 से अधिक अंक मिलते हैं, तो भी मंगल दोष को अनदेखा किया जा सकता है।
मंगल उच्च/नीच स्थिति में हो और असमान हो (उच्च + नीच) – विवाह से बचना चाहिए।
अगर मंगल की स्थिति 29° से 0° के बीच हो, तो यह दोष प्रभावहीन मानी जाती है।
🧘♀️ उपाय (शांति के तरीके):
जब कुंडली में परिहार संभव न हो, तब निम्न उपाय अपनाए जाते हैं:
1. कुंभ विवाह:
वर/वधु का प्रतीकात्मक विवाह घड़े से कराया जाता है और फिर घड़ा तोड़ा जाता है।
2. अश्वत्थ विवाह:
केले के पेड़ से विवाह कर, फिर पेड़ को काटा जाता है।
3. विष्णु विवाह:
वधु का विवाह पहले भगवान विष्णु की मूर्ति से किया जाता है, फिर वर से।
ये विधियाँ प्रतीकात्मक होती हैं, और इनसे विवाह से पूर्व मंगल दोष का प्रभाव बहुत कम हो जाता है।
🔚 निष्कर्ष:
मंगल दोष एक गंभीर विषय अवश्य है, लेकिन यह अविवाह का कारण नहीं बनना चाहिए। सही ज्योतिषीय परामर्श, उचित कुंडली विश्लेषण और उपायों के द्वारा एक सुखद वैवाहिक जीवन सुनिश्चित किया जा सकता है।